गीत लिखो कोई भाव सरणी बहे
मन की अदाओं को वैतरणी मिले
यह क्या कि तर्क से जिंदगी कस रहे
धड़कनों से राग कोई वरणी मिले
अतुकांत लिखने में फिसलने का डर
तर्कों से इंसानियत के पिघलने का डर
गीत एक तरन्नुम हम_तुम का सिलसिले
नाजुक खयालों में फूलों के नव काफिले
एक प्रश्न करती है फिर प्रश्न नए भरती
अतुकांत रचनाएं भी गीतों से संवरती
विवाद नहीं मनोभावों में अंदाज खिलमिले
गीत अब मिलते कहां अतुकान्त में गिले।
धीरेन्द्र सिंह
अब ज़िन्दगी में गिले ही गिले तो रह गए फिर गीत कैसे मिलें ?
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 14 जून 2021 को साझा की गई है ,
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।संगीता स्वरूप
अतुकांत रचनाएं भी गीतों से संवरती
जवाब देंहटाएं–सत्य कथन
वक़्क़ह बहुत ही सुंदर आदरणीय
जवाब देंहटाएंउव्वाहहह..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन..
सादर..
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंभावों की अवरुद्ध हुई नलिकाएँ
जवाब देंहटाएंझर गयी असमय नवकलिकाएँ
तुकांत-अतुकांत के प्रश्न हैं गौण
मुरझाये मन से कैसे गीत लिखे?
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क्षमा चाहे़गे आदरणीय आपकी रचना पर कुछ पंक्तियाँ अनायास ही फूट पड़ी।
आपकी रचना बहुत अच्छी लगी।
सादर।
सुंदर रचना
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