शनिवार, 29 नवंबर 2025

काया

 एक काया अपनी सलवटों में भर स्वप्न

जीवन क्या है समझने का करती यत्न

झंझावातों में बजाती है नवऋतु झांझर

अपने सुख-दुख भेदती रहती है निमग्न


सृष्टि का महत्व अपने घनत्व तक तत्व

शेष सब निजत्व सबके अपने हैं प्रयत्न

कौन मुंशी किसकी आढ़त सत्य सांखल

देह अपनी अर्चना से दृष्टि गढ़ती सयत्न


अनुभूतियों की ताल पर देह का ही नृत्य

आत्मा अमूर्त अदृश्य मोक्ष भाव से संपन्न

अभिलाषाएं ले अपनी कुलांचें झूठे सांचे

कोई कहे तृप्ति लाभ तो कोई कहे विपन्न


काया ने भरमाया या काया से सब करपाया

मोह का तमगा लगा देह उपेक्षित आसन्न

आत्मा के पीछे दौड़ ईश्वर पर निरंतर तौर

काया, आत्मा भरमाती फिर भी सब प्रसन्न।


धीरेन्द्र सिंह

01.12.2025

07.53







शुक्रवार, 28 नवंबर 2025

प्रणय और परिणय

 उम्र में बांटकर हुआ क्या कभी प्यार

बीच फर्क उम्र का क्यों जतलाती यार


आत्मा से आत्मा का होता है जब अनुराग

तब कहीं तन्मयता से उभरती है प्रेम आग

प्यार एक संवेग है जिसपर कठिन अधिकार

बीच फर्क उम्र का क्यों जतलाती यार


कौन अति सम्पन्न कौन आत्मिक है पल्लवित

प्रणय की एक चिंगारी तत्क्षण  करे समन्वित

प्रणय है सीमा परे हृदय पर हृदय अधिकार

बीच फर्क उम्र का क्यों जतलाती यार


प्रणय और परिणय में होता है व्यापक अंतर

प्रणय असीमित परिणय है सामाजिक मंतर

परिणय को प्रणाम प्रणय उन्मुक्तता का द्वार

बीच फर्क उम्र का क्यों जतलाती यार।


धीरेन्द्र सिंह

28.11.2025


21.36


बुधवार, 26 नवंबर 2025

एकल बच्चा

 बच्चे लड़ें सहज जीवन पढ़ें

अभिभावक ना आपस में नड़े


बच्चे खेलते हैं लड़ते-झगडते हैं

जीवन को समझते ऐसे बढ़ते हैं

यह स्वाभाविक विकास ना पचड़े

अभिभावक ना आपस में नडें


व्यस्त अभिभावक एक बच्चे तक

अभिभावक व्यस्त एकाकी बच्चे तक

भावनाएं मित्रों बीच लडखडाये, उड़े

अभिभावक ना आपस में लड़ें


एक बच्चे का बढ़ता हुआ है चलन

ख़र्चे बच्चे का रोकते हैं आगे जनन

बाल सुलभ चंचलता बाल संग बढ़े

अभिभावक ना आपस में लड़ें


दूसरों के घर दो बच्चे देख हो मुग्धित

सोचे वह होता दो नोक-झोंक समर्थित

एकल संतान अपनी भावनाओं से जड़े

अभिभावक ना आपस में लड़ें।


धीरेन्द्र सिंह

27.11.2025

05.47



मंगलवार, 25 नवंबर 2025

ज्वालामुखी

 ज्वालामुखी

कब दिखती है रौद्र

पहाड़ के भीतर

अपनी प्रक्रिया में 

अनवरत

रहती है खौलती

ललक में,


क्रिया की प्रतिक्रिया 

अथवा

प्रक्रिया की स्वक्रिया

शोधार्थी सक्रियता से

इस तूफानी उठान की

कर रहे विभिन्न खोज,

ज्वालामुखी क्रिया

निरंतर हर रोज,


फूटती हैं हृदय 

हृदय की भी ज्वालामुखी

लक्षित प्यार पर

छा जाती है

राख की बादल बन,

एक आग संजोया है दिल

उमड़ती-घुमड़ती

चिंगारियों को समेटे,


सर्जना, अर्चना

शोध, प्रतिशोध

पाते अवरोध,

रचते -बसते-फड़कते

घूमते रहते हैं भीतर

व्यक्ति चलते रहता है

भीतर ज्वालामुखी संजोए,


ज्वालामुखी सक्रिय पहाड़

रहते हैं विभिन्न निगरानी में

यही तथ्य है जुड़ा

मानव की जिंदगानी में,

निष्क्रय पहाड़ को

स्थिर औंधे पाते हैं

इसीलिए यह पहाड़

प्रायः रौंदे जाते हैं।


धीरेन्द्र सिंह

26.11.2025

05.13





सोमवार, 24 नवंबर 2025

धर्मेंद्र - श्रद्धांजलि

 बार-बार हृदय देखे नयन वह बसा है

गबरू जवान यौवन धर्मेंद्र का नशा है

अपनी ही मस्तियों से बस्ती को हंसाए

सत्तर दशक की फ़िल्म की यही दशा है


स्वभाविक बदन सौष्ठव हृदय ही घड़कनें

धर्मेंद्र पुरुष पूर्ण थे उन्मुक्तता के कहकहे

शायरी कवित्व में उनके लगे फलसफा है

सत्तर दशक की फ़िल्म की यही दशा है


स्वप्न सुंदरी जिसका कई दशक रहा दीवाना

धर्मेंद्र और हेमा का था मुग्धित नया तराना

नृत्य इनका कब गीत-संगीत बीच फंसा है

सत्तर दशक की फ़िल्म की यही दशा है


अलमस्त हमेशा व्यस्त सब कुछ करते थे व्यक्त

गठीले बदन भीतर कवि हृदय हरदम आसक्त

एक बांकपन से जीवन में मथा कई नशा है

सत्तर दशक की फ़िल्म की यही दशा है।


धीरेन्द्र सिंगज

24.11.2025

19.16



रविवार, 23 नवंबर 2025

सजिए खूब

विवाह का समय है यह तो

सभी करते हैं भरपूर श्रृंगार

डॉक्टर भी कितने नासमझ

कहें सर्दी कारण हृदय विकार


पुरुष भी सलोन में जाकर सजते

अबके पुरुष छवि को देते संस्कार

नारी पारंपरिक सज्जा आधिकारिणी

कैसी लग रही हूँ पूछें होकर तैयार


सौंदर्य सुनियोजित प्रायः है बोलता

दृष्टि प्रशंसात्मक बिन यौन विकार

चाह कर भी बोल न पाए "क्या बात"

कान उमेठ देगा सामाजिक आचार


हृदय के लचीलेपन की है परीक्षा

वैवाहिक दिन में ऐसी होती झंकार

सजिए खूब चमकिए पर्व इसी का

स्वयं की सुघड़ प्रस्तुति भी अधिकार।


धीरेन्द्र सिंह

23.11.2025

19.22



शनिवार, 22 नवंबर 2025

इनबॉक्स

 इनबॉक्स में आपसे चैट करना

कुछ होता निर्मित कुछ का ढहना

क्यों अच्छी लगती आपकी बातें

आप मित्र बन गईं अब क्या कहना


बच्चों जैसी होती उन्मुक्त सी बातें

करतीं आप अनुरोध प्यार ना कहना

अब तक आप पर ही बातें सभी हुईं

खुश हैं आप तो और मुझे क्या करना


मात्र परिचय समूह पोस्ट से हमारी

चेहरा, परिचय अज्ञात लगे यह सपना

आह्लादित, अंजोर हृदय अद्भुत लगता

लंबी-लंबी चैट हमारी कुहूक का गहना


प्यार आप ठुकराती कहती मित्र हैं हम

क्या मित्रता प्यार रहित होती है अंगना

दूरस्थ ऑनलाइन द्वारा शब्द भाव उभरे

जीवन कैसे मोड़ ले रही ओ मेरी सपना।


धीरेन्द्र सिंह

23.11.2025

06.20