शनिवार, 8 नवंबर 2025

देह और दीप

 देह मंदिर सा लगे है

नेह लगे अति समीप

भावना की हवा बहे

हृदय लौ बन दीप


कल्पनाओं की बजे घंटियां

कामनाओं के भजन गीत

अर्चना थाली सा मन बने

वर्जनाएं मिटें मिल दीप


ओस सा मुख निर्मल

कजरारी आंखों की रीत

गाल डिम्पल गहन गूढ़

चेतना चपल मिल मीत


एक आकार से साकार

देह भक्ति मन प्रीत

साकार में ही संसार

देह ध्येय तन दीप।


धीरेन्द्र सिंह

09.11.2025

11.38




भगवती

 भगवती माँ की नित करे अर्चना

सहमति जग की कृति करे अर्चना

सनातन राह पर अटल चले जो

हिन्दू संस्कृति की होए निज सर्जना


मातृ शक्ति स्वरूपा भारत देश हमारा

सिंह आरूढ़ शस्त्र धारिणी की गर्जना

सर्वधर्म को आश्रय यहां विस्मित है जहां

हिन्दू संस्कृति इतर धर्म की ना करे भर्त्सना


माँ भगवती विविध रूप में सब में समाई

जिसने माँ को पा लिया मील दिव्य अंजना

भगवती की कृपा रहे भक्तों पर फलदायी

नत होकर आत्मा करे माँ भगवती की अर्चना।


धीरेन्द्र सिंह

09.11.2025

08.23

मैं और कविता

 मैं कभी नहीं लिखता

कविता

नहीं है संभव किसी के लिए

लिख पाना कविता,

स्वयं कविता चुनती है

रचनाकार और ढल जाती है

रचनाकार के शब्दों में

बनकर कविता,


जीवन के विभिन्न भाव

छूते हैं मन को

और मस्तिष्क लगता है सोचने

वह भाव,

मन की तरंगें उठती हैं

लहराती हैं

और देती हैं मथ

मनोभावों को

और जग उठती है कविता,


रचनाकार उस भाव तंद्रा में

पिरो देता है

उन भावनाओं को

अपने शब्दों में,

संवर जाती है कविता,


रचनाकार नहीं लिखता

अपने आप को

निर्मित कर किसी भाव को,

ऐसे नहीं लिखी जाती

कविता,

भाव के भंवर जब

बन जाते हैं लहर

शब्दों में लिपट

जाती है कविता संवर।


धीरेन्द्र सिंह

08.11.2025

20.04




शुक्रवार, 7 नवंबर 2025

अर्धरात्रि

अर्धरात्रि हो चली है

और मन

किसी महिला से

चैट करने को आमादा है,

प्रयास मेसेंजर को

खंगाल लिया पूरा

कोई भी ऑनलाइन नहीं,


कामनाएं पुष्पित हो

चाहत की सुगंध

कर रही हैं प्रसारित,

कोई भी ऑनलाइन नहीं

यही तथ्य है

और सुविचारित,


अर्धरात्रि को मन

प्यार की बात करे

यह पुरानी सोच है,

कोई मिले अपने सा

जिससे कह दें

भावनाओं में मोच है,

बड़े कारगर होते हैं

नारीत्व के विवेक धावक

कर देते हैं व्यवस्थित

चुटकियों में

सबकुछ,


एक बार फिर टटोला

मेसेंजर को

कोई नारी ऑनलाइन नहीं,

इसे ही कहते हैं भाग्य

प्रारब्ध के संवाहक यही,

हंसी आ रही है आपको

हम यूँ एकल बह जाएं

इससे अच्छा कि

हम सो जाएं।


धीरेन्द्र सिंह

07.11.2025

23.26



गुरुवार, 6 नवंबर 2025

धुंध

 धुंध और गहरा हो रहा है

जीवन फिर भी

नहीं थमा है,

यह जीवन दृश्य है

व्यक्ति फिर भी

नहीं रमा है,


संबंधों की सर्दियां

ऐंठ रही है उन्मत्त

गर्माहट संघर्षरत है

तापमान संतुलन में,

एक अलाव जल नहीं रहा

सुलग रहा है

जिसका उठता धुआं

धुंध की कर रहा सहायता,


व्यक्ति इन जटिलताओं में

बना रहा पुष्पवाटिका

चहारदीवारी के बीच

और सोच रहा कि

जो खटखटाएगा

प्रवेश पाएगा,

सब कुछ गोपनीय है

पुष्पवाटिका भी

और सुगंध भी,


संबंधों की सर्दियों

गहराता कोहरा

अलाव से उठता धुआं

सब अस्पष्ट सा, अनचीन्हा सा

फिर भी व्यक्ति

हथेलियों में ऊष्मा छुपाए

भित्ति सा खड़ा है

ठिठुरते

एक पहल की

प्रतीक्षा में।


धीरेन्द्र सिंह

07.11.2025

05.22

बुधवार, 5 नवंबर 2025

आवाज

 सुनता हूँ प्रायः

अपने भीतर की आवाज़ें

जो मात्र मेरी ही नहीं

उन अनेक लोगों की है

आवाज

जो गुजरे हैं मेरे हृदय से,


अनेक छूट गए हैं

जीवन राह में,

अनेक शत्रु बन गए हैं 

अनेक तटस्थ भाव में हैं

जो पहले अभिन्न हुआ करते थे,

इनमें से कोई नहीं बोलता

कोई मोबाइल पर नहीं पुकारता

फिर भी

आती है आवाज,


आवाज ?

कोई बोलता नहीं तो

किसकी आवाज ?

कैसी जिह्वा ध्वनि?

यहां उभरा प्रश्न

क्या मात्र जिह्वा ही

माध्यम है ध्वनि का ?


हृदय में अनेक पदचिन्ह

बोलते हैं,

स्मृतियों के झोंके

कर जाते हैं बातें,

अब नहीं सुहाते

जिव्हा के बोल

क्योंकि मिलावट होने लगी है

शब्दों में, अर्थहीन, प्रयोजनहीन

इसलिए सच्ची लगती हैं

आ0ने भीतर की आवाज।


धीरेन्द्र सिंह

05.11.2025

21.40



गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025

धर्मनिरपेक्ष

कभी अनुभव किया है आपने

धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में

धर्म के स्पंदन,

होते हैं ऊर्जावान

नीतिवान

और सृष्टि संचयन में

निमग्न,


कभी देखा है आपने

धर्मों के धर्मपालक को

एक विशिष्ट रंग,

एक विशिष्ट ढंग,

एक अभिनव कार्यप्रणाली,

देते यथोचित उत्तर

यदि पूछे

कोई जिज्ञासू भक्त,


बदल दिए जाते हैं अर्थ

सार्थक अभिव्यक्तियों के,

चुपचाप बढ़ते पदचाप

और जतलाते हैं

वसुधैव कुटुंबकम को

विश्व जीतने का ख्वाब,

धर्म को दृढ़ता से

करना होगा स्थापित

अपनी परिभाषाएं,


अर्थ का अनर्थ न हो

अपने मन से क्यों अर्थ गढ़ो,

रोकता है धर्मनिरपेक्ष विचार,

नींव मजबूत है पर

होनी चाहिए सशक्त दीवार।


धीरेन्द्र सिंह

39.10.2025

19.33