शनिवार, 12 जुलाई 2025

पहली बारिश

 जब पहली बारिश की बूंद मेरे चेहरे से टकराई

हवा महक दौड़ी सरपट भर अंग सुगंध अमराई

पहली छुवन तुम्हारी चमकी शरमाती सी घबड़ाई

बारिश प्यार का मौसम लगता नयन भरी चतुराई


चेहरा चिहुंक उठा यह कैसा गज़ब छुवन आभास

बूंद ठहर पल सरकी मृदु कोमल बोली ना दो दुहाई

सावन का यह अल्लहड़पन है पहली झमक बरसात

बदली डोली धरती बोली लो खिली प्रकृति अंगड़ाई


जब गहरे भावों से नयन तके मेरे चेहरे को अपलक

तब लगे बूंद टप्प गाल गूंजकर रोम-रोम सहलाई

तुम मिलती हो छा जाती घटा भाव बदलियां घनेरी

बारिश तो बस एक प्रतीक है तो मेरी सावनी दुहाई।


धीरेन्द्र सिंह

13.07.2025

08.57



लोकप्रियता

 यह लोकप्रियता यह साख यह प्रसिद्धियाँ

यह सक्रियता यह लाभ यह युक्तियाँ

कर्म का है पक्ष जिसको नकारना कठिन

व्योम में गुजर रही हैं असंख्य सूक्तियाँ


सद्प्रयास कुप्रयास दोनों की ही दौड़ बड़ी

व्यक्ति है दबा उलझा लिए मन नियुक्तियां

एक पहचान विधान बढ़ाए निज गुमान

शक्ति के मुक्ति की संयुक्त मन रिक्तियां


लक्ष्य की गंभीरता जड़ों की ओर खींचे

प्रशस्ति की गूंज बीच ख्याति अठखेलियाँ

कर्म है भ्रमित मूल ऊर्जा लगे शमित

धर्म के अध्याय में प्रचलित लोकोक्तियाँ


ए आई ऊपर से समेट रहा सृष्टि सजग

प्रौद्योगिकी प्रगति से चढ़ी व्यक्ति भृकुटियां

बुलबुले की ख्याति खातिर के प्रयत्नशील

प्रतिभा खंडित हो यूं बंटी बन टुकड़ियाँ।


धीरेन्द्र सिंह

12.07.2025

13.47




शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

नैतिकता

 आदर्श

अंतर्मन का संग्रहित

सत्य

सिद्धांत

समय के ठोकरों से

निर्मित अनुभव

नैतिकता

सामाजिक संचालन का

अधिसंख्य सीकृति रूप,

ऐसे में डोलता है, कांपता है

उछलता है दिल

और चाहता है

अपने सोच अनुरूप

आदर्श, सिद्धांत, नैतिकता;


ऐसे लोग जो नहीं समझ पाते

साहित्य की विभिन्न विधाएं

जो नहीं कर पाते विश्लेषण

देह-आत्मा-परमात्मा और

लोक-परलोक का

उन्हें अश्लील लगती है रचनाएं

आए वह मौन रहते हैं

खिलखिलाती रचना

साहित्य तुरही संग 

रहती है मुस्कराती,


आत्मा और परमात्मा की

बात करनेवाले लोग

देह को समझते हैं हेय,

आश्चर्य होता है कि

अनेक समूह छोड़

साहित्य मंथन

नैतिकता का पाठ

पढ़ा रहे हैं,


साहित्य ऐसे समूह में

घुट रहा है,

बौद्धिक लेखन अनजानेपन,

अज्ञानता 

साहित्यिक संभावना को

लूट रहा हैं।


धीरेन्द्र सिंह

11.07.2025

20.07



मंगलवार, 8 जुलाई 2025

न जाने कब

 सोशल मीडिया

खत्म करे दूरियां

न जाने कब

परिचित लगने लगता है

एक अनजाना नाम

एक अनचीन्हा चेहरा

और बन जाता है

प्यार का धाम,


शब्द लेखन से

होती अभिव्यक्तियाँ

करती हैं

नव अनुभूति नियुक्तियां

मन होने लगता है

जागृत और सचेत,

होता है अंकुरित प्यार

दूरियों के मध्य,

रहते दोनों सभ्य,


बदलते परिवेश में

बदल रही सभ्यता

कुछ संस्कार

उत्सवी त्यौहार

और

मानवीय प्यार

ढंपी-छुपी चौखट

खुला हुआ द्वार

बदलने को आमादा

दीवारों की टूटन8

और

टूटता मन।


धीरेन्द्र सिंह

11.07.20२5

06.21





जनक

 तुम भावनाओं की जनक हो

तुम कविताओं की सनक हो

तुम व्याप्त सभी रचनाकारों में

तुम लिए साहित्य की खनक हो


आप संबोधन लिख न सका, चाहा

"तुम में" अपनापन की दमक हो

याद बहुत आ रही, झकोरा बन

तुम रचना पल्लवन की महक हो


जो रच पाता, सज पाता वह तुम

जग गाता वह गीत ललक हो

रचनाकार की तुम्हीं कल्पनाशक्ति

शब्दों की गुंजित मनमीत चहक हो।


धीरेन्द्र सिंह

09.07.2025

09.29






चैटिंग

 चैटिंग करते-करते

जब तुम बिन बोले

भाग जाती हो, तो

थम जाता हूँ मैं,

तुम्हारे भागने से

नहीं होती है हैरानी

तुम्हारी अदा है यह,


समेट लेता हूँ

सभी शब्द चैटिंग के

और करता हूँ गहन

विश्लेषण उनका कि

किस वाक्य ने तुम्हें

दौड़ने पर विवश किया

और किस शब्द से

लजा, घबड़ा भाग गई,


बन जाती है

एक कविता और

इस तरह

अक्सर तुम

भावनाओं से गुजर

चैटिंग के शब्दों को

दे जाती हो

भाव दीप्ति।


धीरेन्द्र सिंह

09.07.2025

23.25





सोमवार, 7 जुलाई 2025

जब भी

 जब भी

देखता हूँ आपका फोटो

उभरती है

एक नई कथा जिसमें

उल्लास की

परत दर परत रहती है

छिपी कोई व्यथा

इसीलिए फोटो

करते रहता है

मुझसे बातें, यह बोलते

क्या छुपाएं, क्या बांटे,


नहीं देखता मैं

रूप का सौंदर्य और

नहीं रचता कोई रचना

आपकी फोटो पर

बस मैं पढ़ता हूँ नित

एक नया अध्याय

है मेरे व्यक्तित्व का स्वभाव,


अपने लेखन में

दबा जाती हैं जो भाव

बोल देते हैं फोटो

सहजता से,

बीत जाता है दिन

सहजता से,


गज़ब का प्रभाव

छोड़ जाती है

दुनियादारी के झंझावात से

ताकती, बातें करती

मुस्कराहट।


धीरेन्द्र सिंह

08.07.2025

07.08