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खत्म करे दूरियां
न जाने कब
परिचित लगने लगता है
एक अनजाना नाम
एक अनचीन्हा चेहरा
और बन जाता है
प्यार का धाम,
शब्द लेखन से
होती अभिव्यक्तियाँ
करती हैं
नव अनुभूति नियुक्तियां
मन होने लगता है
जागृत और सचेत,
होता है अंकुरित प्यार
दूरियों के मध्य,
रहते दोनों सभ्य,
बदलते परिवेश में
बदल रही सभ्यता
कुछ संस्कार
उत्सवी त्यौहार
और
मानवीय प्यार
ढंपी-छुपी चौखट
खुला हुआ द्वार
बदलने को आमादा
दीवारों की टूटन8
और
टूटता मन।
धीरेन्द्र सिंह
11.07.20२5
06.21