मंगलवार, 8 जुलाई 2025

न जाने कब

 सोशल मीडिया

खत्म करे दूरियां

न जाने कब

परिचित लगने लगता है

एक अनजाना नाम

एक अनचीन्हा चेहरा

और बन जाता है

प्यार का धाम,


शब्द लेखन से

होती अभिव्यक्तियाँ

करती हैं

नव अनुभूति नियुक्तियां

मन होने लगता है

जागृत और सचेत,

होता है अंकुरित प्यार

दूरियों के मध्य,

रहते दोनों सभ्य,


बदलते परिवेश में

बदल रही सभ्यता

कुछ संस्कार

उत्सवी त्यौहार

और

मानवीय प्यार

ढंपी-छुपी चौखट

खुला हुआ द्वार

बदलने को आमादा

दीवारों की टूटन8

और

टूटता मन।


धीरेन्द्र सिंह

11.07.20२5

06.21





जनक

 तुम भावनाओं की जनक हो

तुम कविताओं की सनक हो

तुम व्याप्त सभी रचनाकारों में

तुम लिए साहित्य की खनक हो


आप संबोधन लिख न सका, चाहा

"तुम में" अपनापन की दमक हो

याद बहुत आ रही, झकोरा बन

तुम रचना पल्लवन की महक हो


जो रच पाता, सज पाता वह तुम

जग गाता वह गीत ललक हो

रचनाकार की तुम्हीं कल्पनाशक्ति

शब्दों की गुंजित मनमीत चहक हो।


धीरेन्द्र सिंह

09.07.2025

09.29






चैटिंग

 चैटिंग करते-करते

जब तुम बिन बोले

भाग जाती हो, तो

थम जाता हूँ मैं,

तुम्हारे भागने से

नहीं होती है हैरानी

तुम्हारी अदा है यह,


समेट लेता हूँ

सभी शब्द चैटिंग के

और करता हूँ गहन

विश्लेषण उनका कि

किस वाक्य ने तुम्हें

दौड़ने पर विवश किया

और किस शब्द से

लजा, घबड़ा भाग गई,


बन जाती है

एक कविता और

इस तरह

अक्सर तुम

भावनाओं से गुजर

चैटिंग के शब्दों को

दे जाती हो

भाव दीप्ति।


धीरेन्द्र सिंह

09.07.2025

23.25





सोमवार, 7 जुलाई 2025

जब भी

 जब भी

देखता हूँ आपका फोटो

उभरती है

एक नई कथा जिसमें

उल्लास की

परत दर परत रहती है

छिपी कोई व्यथा

इसीलिए फोटो

करते रहता है

मुझसे बातें, यह बोलते

क्या छुपाएं, क्या बांटे,


नहीं देखता मैं

रूप का सौंदर्य और

नहीं रचता कोई रचना

आपकी फोटो पर

बस मैं पढ़ता हूँ नित

एक नया अध्याय

है मेरे व्यक्तित्व का स्वभाव,


अपने लेखन में

दबा जाती हैं जो भाव

बोल देते हैं फोटो

सहजता से,

बीत जाता है दिन

सहजता से,


गज़ब का प्रभाव

छोड़ जाती है

दुनियादारी के झंझावात से

ताकती, बातें करती

मुस्कराहट।


धीरेन्द्र सिंह

08.07.2025

07.08


रविवार, 6 जुलाई 2025

मन

 मन अगन लगन का गगन

मन दहन सहन का बदन


प्रतिपल अनंत  की ओर उड़े

प्रति नयन गहन रचे तपोवन

प्रतिभाव निभाव का आश्वासन

प्रतिचाह सघन का रचे सहन


मन हर चाह को है अर्पण

मन हर आह का करे मनन

मन चाहे मन में डूबना हर्षित

मन संग व्यक्ति बहे बन पवन


मन मुग्धित होकर कहे मनभावन

मन समझे ना यह पुकार लगन

मन मेरा लिए आपका मन भी

दें अनुमति मन करे मन आचमन।


धीरेन्द्र सिंह

07.07.2025

10.47



मन उपवन

 चेतनाओं की है चुहलबाजियाँ

कामनाओं की है कलाबाजियां

एक ही अस्तित्व रूप हैं अनेक

अर्चनाओं की है भक्तिबातियाँ


एक-दूजे का मन सम्मान करे

हृदय से हृदय की ही आसक्तियां

मन अपने उपवन खोजता चले

विलय मन से मन में हो दर्मियां


यूं ही कदम बढ़ते नही किसी ओर

कोई खींचे जैसे लिए प्यार सिद्धियां

एक पतवार प्यार की धार में चले

कोई सींचे जैसे सावन की सूक्तियाँ।


धीरेन्द्र सिंह

07.07.2025

06.32







शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

हिंदी

 चलिए हम मिलकर प्रयास करें

मद्धम हो रही हिंदी विकास करें


एक आभा थी कहीं खो रही

हिंदी पत्रकारिता भी सो रही

हिंदी दैनिक में अंग्रेजी खास भरें

मद्धम हो रही हिंदी विकास करें


यह सत्य है हिंदी देती नौकरी

अर्थ से हिंदी की रिक्त सी टोकरी

एम.ए. हिंदी में न छात्र, आस करें

मद्धम हो रही हिंदी विकास करें


हिंदी और मराठी लिपि देवनागरी

बोल मराठी तू बोल गूंज इस घड़ी

महाराष्ट्र में मराठी भाषा साँच भरे

मद्धम हो रही हिंदी विकास करें


हम सब लिखते हैं नहीं यह काफी

देवनागरी लिपि बढ़े यही है साफी

आपका साथ हो नव विश्वास भरें

मद्धम हो रही हिंदी विकास करें।


धीरेन्द्र सिंह

04.07.2025

18.19