टहनियां पुष्प की लचक अदाएं दिखलाती
कलियां खिल उठें मंद पवन सुगंधित चले
धमनियों में दौड़ पड़ो अलमस्त सी इठलाती
हृदय की धक-धक की पग लय जुड़ी थाप
सरगमी इतनी तुम कि धुन नई रच जाती
हृदय वाटिका झंकृत होकर झूमने लगता
पदचाप की छुवन अक्सर लगती मदमाती
आत्मा से आत्मा का प्यार अधूरा कथन है
देह से देह परिचय में नवरंग है झूम आती
आत्मिक परिणय की तुम हो जीवन संगिनी
हृदय वाटिका में बेहिचक नेह सी छा जाती।
धीरेन्द्र सिंह
06.31