बुधवार, 22 अक्टूबर 2025
मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025
सामर्थ्य
प्यार कहे बोल दे पर बोल भी नहीं पाए
सामर्थ्य सोया सा लगे जब प्यार हो जाए
सामर्थ्य सोया सा लगे जब प्यार हो जाए
हर गगन में चांद की अठखेलियाँ ही लगें
तारों के बीच भी बादल बहेलियां ही लगें
चांदनी की शीतलता हवा को भी भरमाए
सामर्थ्य सोया सा लगे जब प्यार हो जाए
तुम अतीत तुम व्यतीत तुम ही तो मेरे मीत
भावनाएं गुनगुनाती शब्द सज बनते हैं गीत
कौन तुमसे जुड़कर भी मुडकर बहक पाए
सामर्थ्य सोया सा लगे जब प्यार हो जाए
तुम कब एक व्यक्तित्व में समा जानेवाली
तुम एक तरंग हो महत्व की दिया बाती
तुमको सोचे तुमको जिए तुमको ही गाए
सामर्थ्य सोया सा लगे जब प्यार हो जाए।
धीरेन्द्र सिंह
22.10.2025
00.10
सोमवार, 20 अक्टूबर 2025
मझधार
पहले द्वार रंगोली और द्वार श्रृंगार
फिर दिया, पूजन भक्त भक्ति दुलार
लौ की दुनिया सज गई ऊर्जा लेकर
दिया हो सक्रिय निःशब्द देता आधार
कितनी पूजा किसने की ईश्वर जानें
आरती में किसका कितना लयधार
इन बातों से अलग सोचती आराधना
जनमानस का कितना कैसे हो सुधार
अपनी अभिव्यक्ति को पूर्ण कर चुका
लगता कुछ शेष नहीं रुकी वही पुकार
खड़ा हो गया सोचता नव ज्योति लिए
जबतक है जीवन खत्म कहां मझधार।
धीरेन्द्र सिंह
20.10.2025
21.39
रविवार, 19 अक्टूबर 2025
छोटी दीवाली
देहरी पर दिये की झूम रही लौ
प्रहरी घर भर दिये ऊर्जा नव पौ
प्रहरी घर भर दिये ऊर्जा नव पौ
शुभता भी शक्ति है दिव्य आसक्ति
शुभ्रता मनभाव लिये नव्य युक्ति
ठहरी क्रन्दिनी वंदिनी हस्त भरे जौ
शुभ्रता मनभाव लिये नव्य युक्ति
ठहरी क्रन्दिनी वंदिनी हस्त भरे जौ
प्रहरी घर भर दिये ऊर्जा नव पौ
छोटी दिवाली की रात्रि दीप पटाखे
ब्रह्मोस्त्र की खेप बुद्धि मीत सखा रे
सीमाएं रहें शांत सुखी ना टेढ़ी भौं
प्रहरी घर भर दिये ऊर्जा नव पौ
मेरे पड़ोसी मुस्लिम घर जलीं लड़ियाँ
निकलें बाहर मिल जलाएं फुलझड़ियाँ
अनेकता में एकता लौ को गुण सौ
प्रहरी घर भर दिये ऊर्जा नव लौ।
धीरेन्द्र सिंह
19.10.2025
21.41
अस्तित्व उदय
उदित होता अस्तित्व
होता हरदम सिंदूरी
उदित गोद में हो
या हो समय की दूरी
प्रसन्नता हो अपरम्पार
द्वार किरण मनधूरि
एक उल्लास मिले खास
एक तलाश हो पूरी
दीये की लौ नर्तन
बर्तन बजते बन मयूरी
दिवस प्रारम्भ ले आशाएं
परिवेश सजा है सिंदूरी
उदित हो जाना जीवन
सज्जित समुचित लोरी
प्यार कहीं आराधना भी
कामना होती तब पूरी।
धीरेन्द्र सिंह
19.10.2025
14.35
शनिवार, 18 अक्टूबर 2025
धनतेरस
सांध्य बेला हो चुकी प्रकाश में बदले बेरस
पूजा-अर्चना घर-घर गूंजे कुहूका धनतेरस
अत्यावश्क हुई खरीद भक्ति भाव अविरल
कथ्यों पर युग बढ़ चला होता भाव विह्वल
आस्था जीवन को मढ़ी हर पीड़ा कर बेबस
पूजा-अर्चना घर-घर गूंजे कुहूका धनतेरस
समरसता की दृष्टि निरंतर होती विकसित
भारत भूमि इसीलिए जग करे आकर्षित
धन-धान्य सुख-वैभव की प्रसारित कर रस
पूजा-अर्चना घर-घर गूंजे कुहूका धनतेरस
दिया लौ द्वार से लेकर घर के कोने-कोने
हर घर में खुशियां छलकाए नयन-नयन दोने
जो भी कामना आशीष देकर ईश्वर प्रेम बरस
पूजा-अर्चना घर-घर गूंजे कुहूका धनतेरस।
धीरेन्द्र सिंह
18.10.2025
20.06
शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025
जगमगाते
जगमगाते दीपों की तैयारी है
झालरों में ज्योति अँकवारी है
झालरों में ज्योति अँकवारी है
बाती बनकर दीप में सज जाइए
ज्योतिपुंज प्रबल अति न्यारी है
भींग जाने दो दिया जल में अभी
कुम्हार कौशल आपकी बारी है
केवट चरण पखार पाए मुक्ति द्वार
दीपमालाएं सजें विश्वकारी हैं
स्वच्छ चहक किलके चहारदीवारी
ज्योतिपुंज प्रज्ज्वलन गुणकारी है
तमस दूर हो समझ में होए वृद्धि
उत्सवी परिवेश समृद्धिकारी है
देहरी की प्रथम लौ झूम धाए
दिया लिए प्रकाश चमत्कारी हैं
बाती बन आप दिए से जुडें तो
इससे बड़ा कौन हितकारी है।
धीरेन्द्र सिंह
17.10.20२5
19.35
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