गुरुवार, 27 जून 2024

इतिहास

 जो हमने पढ़ा है और सुना है
उनमें तुम हो कहीं भी नहीं
इतिहास भी तो छुपाता बहुत.
भला बिन तुम्हारे इतिहास कहीं
 
तुम्हें ही तो पड़ता रहा हूँ हमेशा
भले प्रश्नपत्र कभी सुलझता नहीं
तुम्हीं अब बताओ क्या सुलझाएं
इतिहास चर्चा तुम्हारी करता नही
 
राष्ट्र गरिमा में छूटे हैं कई पक्ष
लेखनी इतिहास सत्य बताता नहीं
एक परिवर्तन नव इतिहास में करें
जहां तुम नहीं पठन जिज्ञासा नहीं।
 
धीरेन्द्र सिंह
27.06.2024
19.09


 

बुधवार, 26 जून 2024

श्रमिक

 राहें हैं पर उनपर विरले पथिक हैं
तेज गति वाहनों की लगती होड़ है
श्रमिक भी अब दिखते बहुत कम
मशीनों से मेहनत होती जी तोड़ है

खेत हो खलिहान हो गेहूं या धान हो
हर कार्य मशीन कहें किसानी बेजोड़ है
गांव ढूंढे श्रमिक नहीं, मशीन बुलाइए
शीघ्र कार्य पूर्ण हो फुरसत ताबड़तोड़ है

शहर बना मशीन, संग लेकर संचालक
श्रमिक को कार्य नहीं इसका न तोड़ है
गली-कूचा या हो विस्तृत मैदान कहीं
मशीन सर्वज्ञ अभियांत्रिकी निचोड़ है।

धीरेन्द्र सिंह
27.06.2024
11.24




भ्रम



अर्धनारीश्वर

 पनघट पर बालाओं की बदली सी चाल

मटकी भार संतुलन था या कान्हा तान


कटि पर गगरी कांधे मटकी थी सबकी

कंकड़ियां से फूटी मटकी बाला हंस दी

कान्हा दृष्टि चयन से उभरा एक गुमान

मटकी भार संतुलन था या कान्हा तान


लचक-मटक कर गोपियाँ, राह रिझाएं

एक कन्हैया सबका खेवैया, रोज बुझाएं

चंचलता थी शोखी थी और गहन सम्मान

मटकी भार संतुलन था या कान्हा तान


चलचित्र नायिका, विश्व सुंदरी गह गोपियाँ

पनघट बालाओं की लिए चाल युक्तियां

कटि तन लोच, उद्गम स्त्रोत, पनघट ज्ञान

मटकी भार संतुलन था या कान्हा तान।


धीरेन्द्र सिंह

25.06.2024

18.04



पनघट ज्ञान

 पनघट पर बालाओं की बदली सी चाल

मटकी भार संतुलन था या कान्हा तान


कटि पर गगरी कांधे मटकी थी सबकी

कंकड़ियां से फूटी मटकी बाला हंस दी

कान्हा दृष्टि चयन से उभरा एक गुमान

मटकी भार संतुलन था या कान्हा तान


लचक-मटक कर गोपियाँ, राह रिझाएं

एक कन्हैया सबका खेवैया, रोज बुझाएं

चंचलता थी शोखी थी और गहन सम्मान

मटकी भार संतुलन था या कान्हा तान


चलचित्र नायिका, विश्व सुंदरी गह गोपियाँ

पनघट बालाओं की लिए चाल युक्तियां

कटि तन लोच, उद्गम स्त्रोत, पनघट ज्ञान

मटकी भार संतुलन था या कान्हा तान।


धीरेन्द्र सिंह

25.06.2024

18.04



सोमवार, 24 जून 2024

मन रे कुहूक

 अच्छा, कहिए बात कहीं से

सच्चा करिए साथ यहीं से

व्योम भ्रमण नहीं भाता है

नात गाछ हरबात जमीं से


मन उभरा, रही संयत प्रतिक्रिया

कहे अभिव्यक्ति कोई कमी है

शब्द बोलते, है बात अधूरी

सत्य बोलना कहां कमी है 


अलसाए भावों को, आजाती नींद

अधखिले वाक्य कहें जैसे गमी है

पुलकना चहकना जिंदगी का चखना

मन रे कुहूक, ऋतुएं थमी हैं।


धीरेन्द्र सिंह

25.06.2024

11.05

नैन