बुधवार, 11 अक्टूबर 2023

चांद बांचता

 चांद देखा झांकता भोर में बांचता

रात भर कुछ सोचता रहा जागता


ग्रह-नक्षत्र से जग भाग्य है संचालित

सूर्य-चांद से जीव-जंतु है चालित

कौन सी ऊर्जा चांद निरंतर है डालता

रात भर कुछ सोचता रहा जागता


आ ही जाता चांद झांकता बाल्कनी

छा ही जाता मंद करता भूमि रोशनी

तारों से छुपते-छुपाते मन को टांगता

रात भर कुछ सोचता रहा जागता


यूं ना सोचें चांद का यही तौर है

चांदनी बिना कैसा चांद का दौर है

कह रहा है चांद या कुछ है मांगता

रात भर कुछ सोचता रहा जागता।


धीरेन्द्र सिंह


12.10.2023

05.53

मंगलवार, 10 अक्टूबर 2023

लूटकर

 

बहुत कुछ लूटकर, दिल ना लूट पाए

यूं तो मित्रों में अपने, हंसे मुस्कराए

 

प्रणय का पथ्य भी होता है सत्य

प्यार के पथ पर, असुलझे कथ्य

प्रीत की डोर पर बूंदे ही सुखा पाए

यूं तो मित्रों में अपने, हंसे मुस्कराए

 

विकल्पों के मेले में लगा बैठे ठेले

भावनाएं बिकती हैं कोई भी ले ले

विपणन चाह की क्या कर ही पाए

यूं तो मित्रों में अपने, हंसे मुस्कराए

 

उत्तम छवि आकर्षण, हृदय में घर्षण

करीब है उसका, अभी कर दे तर्पण

नए को पाकर भी, क्या खिलखिलाए

यूं तो मित्रों में अपने हंसे मुस्कराए।

 

धीरेन्द्र सिंह

10.10.2023

19.31

सोमवार, 9 अक्टूबर 2023

हमास

 

युद्ध में जर्मन युवती नग्न लाश

झमाक, धमाक, नापाक यह हमास

 

अचानक रॉकेट से ताबड़तोड़ हमला

मोसाद से भी यह घात नहीं संभला

लाशों और घायलों की हो रही तलाश

झमाक, धमाक, नापाक यह हमास

 

मज़हब के नाम पर यह कैसी बेअदबी

बच्चों की मौत औरतों पर यौन सख्ती

यह युद्ध है या मौत पर अस्तित्ब आस

झमाक, धमाक, नापाक यह हमास

 

हर जान को मुमकिन करीब बंकर

हर जिंदगी को बना दिए मिट्टी कंकड़

यह युद्ध करके मिलेगा क्या खास

झमाक, धमाक, नापाक यह हमास

 

युद्ध कब प्रबुद्ध का रहा है हथियार

क्या मज़हब सिखाता जुल्म अत्याचार

मौत के तांडव में टूटेगा गलत विश्वास

झमाक, धमाक, नापाक यह हमास।

 

धीरेन्द्र सिंह

09.10.2023

16.31

 


सोमवार, 2 अक्टूबर 2023

दरवाजा न खुलेगा

 आप गए, लिस्ट नया नाम बोलेगा

क्यों आए ? दरवाजा न खुलेगा


मेरे संपर्क के हैं कई दीवाने

आप जैसा न साहित्य तराने

करें नहीं बात वरना भेद खुलेगा

क्यों आए ? दरवाजा न खुलेगा


लूटा है मीत मन और अर्थ भी

होकर दुखी छोड़ आए हैं सभी

एक और टूटन है, दर्द ख़ौलेगा

क्यों आए ? दरवाजा न खुलेगा


मिला है नया धोखा कोई न बात

मुझको मिला मैं भी प्रदाता आघात

मैं हूँ उड़नखटोला न थाह मिलेगा

क्यों आए ? दरवाजा न खुलेगा


खूब सेंक ली साहित्यिक रोटियां

खेलने को है विभिन्न दो प्रतियां

अब चुक गए हो, न चाह हिलेगा

क्यों आए ? दरवाजा न खुलेगा


आधुनिकता में कैसी यह भावनाएं

दिल की जो सुने आती है यातनाएं

जो साथ है अभी उसे न दिल भूलेगा

क्यों आए ? दरवाजा न खुलेगा।


धीरेन्द्र सिंह

02.10.2023

14.30



बुधवार, 13 सितंबर 2023

हिंदी दिवस 2023

 आज बहुत जग धूम मचाए, हिंदी

आ सहला दूं सिर थोड़ा सा, हिंदी


बार-बार फिर एकबार तू मंचाधीन

कहें लोग तू सशक्त तू है प्रवीण

भारत के माथे की तू ही अटल बिंदी

आ सहला दूं सिर थोड़ा सा, हिंदी


मृदुल यातना का दिन है यह पर्व

झूठ कितना दर्शाता है मंचों का गर्व

तू यह सुनते-सुनते हो जाती चिंदी-चिंदी

आ सहला दूं सिर थोड़ा सा, हिंदी


तू असत्य वादों की, स्वीकृत सत्य है

विचलित भावों का भी, अमूर्त कथ्य है

तुझको तुझसे लूट रहे, भाषा की हदबंदी

आ सहला दूं सिर थोड़ा सा, हिंदी


चाहा था चुप रहूं और परिवेश गहूं

नए वायदे, संग पुरानी धार बहूँ

तेरी बेचैनी ने तोड़ा निर्मित तटबंदी

आ सहला दूं सिर थोड़ा सा, हिंदी।


धीरेन्द्र सिंह

14.09.2023

10.08


हिंदी दिवस

 बोली में घुली मिश्री लेखन में अंग्रेजी

हिंदी दिवस यही देवनागरी की तेजी


संविधान से लिपटकर बन गई राजभाषा

कार्यालयों में क्यों यह अक्सर लगे तमाशा

विभाग गठित कर, देती है रोजी-रोटी

हिंदी दिवस यही देवनागरी की तेजी


चापलूस अधिकतर सम्मेलन की क्यारी

चाटुकारिता ही है अब हिंदी की लाचारी

वर्षों से हिंदी दिवस पर हिंदी सतेजी

हिंदी दिवस यही देवनागरी की तेजी


मोबाइल, कंप्यूटर पर लिपि रोमन दहाड़

देवनागरी में टाइपिंग सबको लगे पहाड़

लेखन में देवनागरी लिपि सतत निस्तेजी

हिंदी दिवस यही देवनागरी की तेजी


जिह्वा पर शब्द हिंदी राज्य शब्द मिलाएं

जब बोलें ठीक तो, शुद्ध हिंदी कहलाएं

लिपि देवनागरी प्रयोग क्यों भाषा भदेसी

हिंदी दिवस यही देवनागरी की तेजी ?


धीरेन्द्र सिंह

13.09.2023

कुहुक

 मन की कुहुक निगाहों से हो ध्वनित

अभिव्यक्तियों के यूं नज़र हो गईं

देखा भी न देखा आंखों की नमी

जिंदगी अघोषित एक ग़दर हो गयी


कुहुक है नयन का अनसुना सा ताल

ध्वनि हर डगर यूं बसर कर गई

पत्ता-पत्ता लगा झूमने पा नई ताल

डालियों पर नज़र जो असर कर गयी


बिन बोले बिन जाने लगते अनजाने

अपनेपन की ऐसी ध्वजा फहर गई

यूं चलते कदम लगने लगे हों नज़म

गंगा कदमों को छू जिंदगी तर गयी


कुहुक निगाह है अथाह ले गहनतम चाह

छाहँ वह राहगीरों की दर हो गई

सब पुजारी ले पाठ उमड़ने लगे

नयनों की बांसुरी जो अधर हो गयी।


धीरेन्द्र सिंह

13.09.2023

12.2