रविवार, 21 नवंबर 2021

इंसानियत

 भावों से भावना का जब हो विवाद

तथ्य तलहटी से तब गंभीर संवाद

उचित लगे या अनुचित कृत्य वंशावली

आस्थाओं की गुम्बद से हो निनाद


धुंध भरी भोर में दब जाती रोशनी

सूरज भी ना उभर पाए ले प्रखरवाद

अपेक्षाएं चाहें सुरभित, सुगंधित सदा

संभव है क्या जी पाना बिन प्रतिवाद


प्रकृति की तरह व्यवहार लगे परिवर्तित

तथ्य रहे सदा अपरिवर्तित निर्विवाद

यह कहना कि वक़्त का है खेल यह

इंसानियत यूँ ही कब हो सकी आबाद।

धीरेन्द्र सिंह

साथ निभाना

 साथ चलना

और साथ निभाना

यह सोच

क्या लगे न बचकाना !

नवंबर के अंतिम सप्ताह में

मेरे शहर रात्रि बारिश

मेघ गर्जना

विद्युत की किलकारियां

शीतल चला पवन

कितना  विपरीत मौसम,

दिन भर शहर में उमस

शाम तका आसमान

थी बदरियों की गलबइयाँ

झूमते,लहराते बादलों के झुंड

यूँ लगे जैसे एकाकार का

प्रदर्शन श्रेष्ठ,

आजीवन साथ निभाने का वादा

हां यही तो था आसमान

बहका नहीं हूं भाव ज्यादा,

पवन की बदली गति

व्योम की पलटी मति

टकराने लगी बदरिया

ले अपनी-अपनी जल गगरिया,

गर्जन, विद्युत नर्तन

क्या अहं का था टकराव,

क्या यही आजीवन निभाव,

एक-एक कर टूट गयी

गगरिया सारी बरस गयी,

आज की बारिश ने बताया

अकेला ही चल जीवन में 

अहं का न हो छलावा

या स्वार्थ पूर्ति का शोषण,

टूट जाएगा वरना

खुद से कर खुद का पोषण।


धीरेन्द्र सिंह


बुधवार, 3 नवंबर 2021

दीपोत्सव मंगलमयी


पता नहीं क्यों

पता मिला कैसे

बस्तों को बांचते

पुरातत्व खंगालते

आरंभ पुनर्निर्माण

संस्कृति के वह द्वार

सभ्यता की पुकार

हिंदुत्व की हुंकार,

राम मंदिर;


सरयू भी उठी खिल

वर्ष 2021 से मिल

हिंदुत्व निर्विवाद

संस्कृति पर कैसा विवाद

असंख्य दीप जल उठे

प्रकाशित विश्व द्वार

दीपावली दिव्य प्रखर

अनुगूंज दिव्य अनंत,

राम मंदिर;


भारत में हिंदुत्व

हिन्दू हर भारतवासी

बहु धर्म का समझे मर्म

नव चेतना विन्यासी

बारह लाख दीपों में

शुभकामनाएं

आलोकित सब इससे

पूर्ण हों अर्चनाएं

अयोध्या जग जगमगाए,

राम मंदिर।


धीरेन्द्र सिंह

शनिवार, 16 अक्टूबर 2021

छुवन तुम्हारी

 छुवन तुम्हारी चमत्कारी एहसास है

सूखते गले में कुछ बूंदें तो टपकाईये

प्यास लिए आस वह लम्हा लगे खास

पास और पास एक विश्वास तो बनाइये


प्यार उन्माद में कभी आप तो तुम कहूँ

बहूँ अनियंत्रित भाव लहरें ना छलकाईये

मेरी मंत्रमुग्धता सुप्तता आभासित करे

जागृत जीवंत मनन आराध्य तो बन जाईये


कोमल काया को बंधनी स्पर्श दे उत्कर्ष

सहर्ष बिन सशर्त प्रेम सप्तक तो जगाइए

मेरे शब्दों में अर्चना है प्रीत धुन लिए नई

अपने स्वरों में ढाल कभी मुझे तो गुनगुनाइये।

गुरुवार, 14 अक्टूबर 2021

दशहरा


दशानन का शमन

वमन हुआ वह कहकहा

यही है दशहरा


विभीषण कहें या खुफिया

विशाल शक्ति ढहाढहा

यही है दशहरा


स्वयं में है रावण

या परिवेश दे रावण, भरभरा

यही है दशहरा


अपनों में भरे रावण

धनु राम का हुंकार भरा

यही है दशहरा


एक संकल्प ले शपथ

सोच से परे दांव फरफरा

यही है दशहरा


जीवित रावण बहुरूपिया

राम तीर अग्नि सुनहरा

यही है दशहरा।


धीरेन्द्र सिंह



मंगलवार, 5 अक्टूबर 2021

भींगे ही रहें

 प्रियतम प्यारे

आप ऐसे ही भींगे रहें


भावनाओं के वलय

बूंद बन तन-मन बहें,

अर्चनाएं सघन मन

प्रभु कृपा से कहें,

मन एकात्म यूँ डिगे रहें

आप ऐसे ही भींगे रहें;


ज्ञात भी अज्ञात भी

मनभाव तथ्य यही गहें,

सर्जनाएँ प्रीत की हम

शब्दों में गहि-गहि कहें,

प्यार की राह में यूँ टिके रहें

आप ऐसे ही भींगे रहें।


धीरेन्द्र सिंह



सोमवार, 4 अक्टूबर 2021

तरंग

 तुम तर्क की कसौटी पर

हवा दिशा बहती

अद्भुत तरंग हो,

मैं

भावनाओं की गहनता में

स्पंदनों की तलहटी तलाशता

प्रयासरत

एक भंवर हूँ।


धीरेन्द्र सिंह