शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

एक खयाल

एक खयाल भाग उठा उस दिशा की ओर
जिस तरफ से प्रीत की सदाएं आ रहीं
कल्पनाएं, भावनाएं हो रहीं अधीर अब
धड़कनें अनुराग का हैं गीत गा रहीं

आगमन को मन व्याकुल चलता घुल-घुल
बुलबुलों संग फूटती हैं भावनाएं बन हंसीं
पल यह ढूंढे व्यग्रता से आपका संदेशा धवल
गगन संग समीर डोले धरती धूरी में फसीं

अर्चना निजतम है प्रेम की गुहार अप्रतिम
ढूंढता है मन है क्या जाने क्या कहीं-कहीं
टुकड़े-टुकड़े जोड़कर ज़िंदगी संवरती बढ़े
राह की कठिनाईयों संग आप पर है यकीं

कौन किसको कब भाए कहा ना जाए
एक ही सम्पर्क में हो जाए दिलबसीं
कितने रिश्ते बंधनों में दे सके परिपूर्णता
तृष्णा से हार अग्नि में शबनम फंसी.






भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

बसंत पंचमी और वेलेंटाइन

सत्य के अलाव में सौंदर्य की अनुभूति
उष्मामयी जीवन का प्यारा अभिनंदन है
बसंत पंचमी में लग रही नव वासंती हो
चिहुंक उठा मन वेलेंटाइन का जो क्रंदन है

ऋतु बसंत में सुगंधमय परिवेश उन्मुक्त
बावरे चमन में कली,भ्रमर लगे सघन हैं
प्रीति का व्यापारिकरण कर रहा वेलेंटाइन
वासंती रूनझुन में खोया मन मगन है

बदल रहा मौसम संग बदल रही अमराई
बहक रहे बादल संग मुखर यह जीवन है
सृष्टि के बहाव संग ढल रही भावनाएं
महक-महक रोम उठा सज उठा गगन है

नयन भर प्यार मेरा छलक-छलक बुलाए
रूप को निहार लूं प्रीत का जगवंदन है
आ गया बसंत अब आ भी तो जाईए
पुष्प रंध्र मार्ग है आह बनी चंदन है।


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

जीवन संघर्ष


विगत प्रखर था या श्यामल था
इस पहर सोच कर क्या करना
है लक्ष्य खड़ा लगे प्रतिद्वंदी बड़ा
अब चिंतन में ना निर्झर हना

पल-छिन में होते हैं परिवर्तन
फिर क्या सुनना और क्या कहना
ठिठके क्षण को क्यों व्यर्थ करें
हो मुक्त समीर सा बहते रहना

एक संग बना जीवन प्रसंग है
तब जीवन से क्या है हरना
उड़ने की यह अभिलाषा प्रबल
विहंग सा उमंग से क्या डरना

रहे कुछ ना अटल, है बस छल
कलछल से क्यों यौवन भरना
है एक प्रवाह के पार पहुंचना
मांझी के सोच से क्या करना.



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
 अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

निज भाव

शब्दों में पिरोया भाव तो अभिव्यक्ति बन गई
सम्प्रेषण का हुआ असर कि नई प्रीत बन गई

ई-मेल, टिप्पणियॉ या कि रचनाएं नई-नई
उन तक पहुंचने की कोशिशें गम्भीर बन भई

मन में भरे सतरंग तो निगाहों में है इज़्जत
आकर्षण का हलफनामा बन तीर तन गई

नित नए कौशल लिए प्रतिभा करे करिश्मा
रूचिकर लगे उनको तो मानो तकदीर बन गई

हर भाव की मंज़िल है अपना ही निज भाव
प्रस्ताव हो अपवाद तो नई लकीर बन गई.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
 

सोमवार, 31 जनवरी 2011

अब तुम्ही बतलाओ

 आखिर में तय कर लिया दिल ने कि
चाहत के हुलास का
मन के गुलाब का
नज़रों के शबाब का
कोई विवेचनात्मक तर्क नहीं होता है,
प्यार का संकल्प होता है
पर
दीवानगी का कोई विकल्प नहीं
इसलिए
अब तुम्ही बतलाओ
तुम्हे पाने की ज़िद में
यह दीवानगी
किस तर्क को मानेगी
तुम्हारे सिवा
क्या समझेगी क्या जानेगी
इसलिए या तो तुम
मेरा हुलास, गुलाब और शबाब
बन जाओ
या फिर
मेरी दीवानगी को यूँ ही रहने दो,
याचनाओं के बल पर
प्रीति की रीत नहीं बना करती,
प्यार को प्रश्न की तरह सुलझाना  
मात्र एक बौद्धिक छलावा है.



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

भोर आज छू गई

भोर आज छू गई हौले से
मुस्कराई दूब पर फैली नमी
चहचहाती चिड़ियों का वृंद गान
खिल गई है छटामयी ज़मीं

झूमती डालियों में नेह निमंत्रण
यादें संग हैं बस आपकी ही कमी
लालिमा लगा इतरा रह है आसमान
दौड़ गले आकर मिली धूप कुनकुनी

मंदिरों की घंटियॉ और मस्ज़िदों के अजान
दे रहे आशीष अनुपम प्रार्थनाएं हैं जमीं
नयन बने दीप मेरे आज प्रात:
नैवेद्य लिए गति मेरी है थमी

जाग उठा परिवेश ले अपना भेष
ज़िंदगी की लयबद्धता हो रही घनी
प्रीत का पग दौड़ चला उस ओर
ठौर है तुम्हारा जहां अहसास रेशमी.



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 27 जनवरी 2011

आपका चेहरा

आपका चेहरा ना देखा कुछ ना देखा
बोल की मिश्री ना तो कैसी मिठास
चांद चलता चांदनी ले चुलबुली
लहरें तट पर दौड़ती कर अट्ठहास

तृप्ति का अनुभव जो मरूस्थल करे
बदली भर बूंदों का पा अहसास
आपका रूप अप्रतिम बस गया
अब ना जीवन से चाहिए खास

सुरभित, सुगम, सुनहरा सौंदर्य है
लगे निज जलप्रपात जैसी प्यास
शबनमी अहसास में पुलकित पंखुड़ियां
सृष्टि को समेट लिया हो मधुमास

आपका चेहरा या मेरी दृष्टि है
खूबसूरती में कैसी यह तलाश
एक जीवन जी ल्न् की ललक
दूरियां कम कर हो सकें पास.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.