बहुत जी लिए ऐसे जीवन को कसके
समय जा रहा छूकर यूं हंसते-हंसते
कभी दिल न सोचा सौगात क्या है
हसरती दुनियादारी की औकात क्या
है
कहां पर हैं पहुंचे यूं सरकते-सरकते
समय जा रहा छूकर यूं हंसते-हंसते
प्रणय पाठ का वह जीवन भी अलग
था
समय ज्ञात था पर करम ही विलग
था
समर्पण रंग रहा नए स्वांग भरते-भरते
समय जा रहा छूकर यूं हंसते-हंसते
जो साथ वह तो हैं भी कितने साथ
पास जो राह रहे हैं भी कितने
पास
बीच अपनों में खुद को तलाशते
बचते-बचते
समय जा रहा छूकर यूं हंसते-हंसते।
धीरेन्द्र सिंह
05.12.2023
15.30
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