संविधान के आधार पर
क्या कर सकी राजभाषा
राष्ट्र हित उपकार ?
कहिए श्रीमान
मेरे आदरणीय
भारत देश के नागरिक,
सार्थकता प्रश्न में है,
अर्थ उपयोगिता का है,
समस्या दिशा का है,
क्या राजभाषा हिंदी
अकुलाई दिखती है
14 सितंबर को
या
फिर
संविधान की आठवीं अनुसूची में
दर्ज समस्त भाषाएं,
ठगी खड़ी हैं
सभी भारतीय भाषाएं,
अंग्रेजी का अश्वमेध घोड़ा
गूंज मचाते अपने टाप से
ढांक रहा है
समस्त भारतीय भाषाएं,
हाथ बढ़ रहे अनेक
पकड़ने को लगाम
पर लगाम तक पहुंचे हाथ
जाते हैं सहम,
न जाने क्यों
असुलझा है यह
यक्ष प्रश्न,
राजभाषा नीति
हंसती है, मुस्कराती है
करती है प्रोत्साहित,
चीखती है एक बार फिर
14 सितंबर को
देश की भाषिक दिशाएं,
देख भाषिक अभिनय
अधर मुस्काए,
वक्तव्य भ्रामक, कल्पित।
धीरेन्द्र सिंह
संविधान के आधार पर हिंदी न ही राजभाषा बन सकी न राष्ट्रभाषा किंतु लाखों-करोड़ों दिलों में बसती है हिंदी की अभिलाषा!
जवाब देंहटाएंराजभाषा तो बन चुकी है पर प्रचलित न हो सकी है। धन्यवाद।
हटाएंसंविधान बनाने और देश को चलाने वालों की इच्छा की कमी रही जो हिंदी अभी तक प्रतिष्ठित नहीं हो सकी ।
जवाब देंहटाएंसच कह रही हैं आप। अंग्रेजी के प्रति मोह या एक सामाजिक प्रतिष्ठा का भाव भी है। धन्यवाद।
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