सोमवार, 5 मार्च 2018

व्यक्तित्व

खुद से बने वो प्राचीर हो गए
अनुगामी जो रहे तामीर हो गए

स्वनिर्माण भी है बुनियादी संस्कार
पखारा किए खुद को और धो गए

बेजान ही प्रवाह में उछलता खूब
आते हैं जाते हैं अनेकों खो गए

स्वनिर्माता खुद का विधाता भी
पढ़ने की कोशिशों में लोग रो गए

खुद को गढ़ने, पढ़ने में हो व्यतीत
अतीत दर्शाता कहे लो वो गए

फौलाद सी सख्ती मक्खनी कोमलता
ऐसे ही लोग उर्वरा बीज बो गए।

धीरेन्द्र सिंह

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