शक्ति, सामर्थ्य मिले शौर्य स्वतः आए
श्रेष्ठता स्वमेव कीर्ति पताका पा जाये
भस्मासुर मानिंद जब
करे वह परीक्षण 
कारवां में अबोला हताशा
छा जाये 
व्यक्ति की ओजस्विता सिमटी सीमित परिधि 
समूह की तेजस्विता
बनकर हर्षाए 
निजता की भँवर में
परिवेश को समेटना
स्वयं की गति में गति हो जाये 
बड़प्पन मिलती कहाँ हैं बड़े बहुत यहाँ 
महानता के आगे सब नत हो जाएँ
प्रत्यक्ष रहें मुग्धित
अप्रत्यक्ष गुनगुनाएँ
एक आदर्श बना क्रमिक ढलते जाएँ 
जो हैं पदांध करते बेवजह आक्रांत 
प्रशांत को कर उद्वेलित मुसकाए 
नासमझ प्रकृति न्याय समझ ना पाएँ 
भेड़चाल
में संग कारवां दे डुबाय । भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
 
 
 
बहुत सुन्दर शब्द संयोजन... सुन्दर अभिव्यक्ति...
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