शनिवार, 25 अक्टूबर 2025

मन उचटता है

 कल्पनाओं में वही सूरज उगता है

मन उचटता है


याद है प्रातः आठ बजे की नित बातें

ट्रेन दौड़ती स्टेशन छूटता है न यादें

मन बौराया वहीं अक्सर भटकता है

मन उचटता है


कैसे पाऊं फिर वही सुरभित सी राहें

कहां मिलेगी हरदम घेरे रसिक वह बाहें

कभी-कभी तड़पन देता आह उछलता है

मन उचटता है


अब भी बोलता मन है अक्सर भोर में

तुम क्या सुन पाओगी हो तुम शोर में

यादों की टहनी पर नया भोर तरसता है

मन उचटता है।


धीरेन्द्र सिंह

26.10.2025

07.11

पीयूष पांडेय

 शब्दों की थिरकन पर सजा भावना की आंच

पीयूष पांडेय लिखते जग मुस्कराते रहता बांच


भारतीय विज्ञापन का यह गुनगुनाता व्यक्तित्व

सरल शब्दों में प्रचलित कर दिए कई कृतित्व

हिंदी को संवारे विज्ञापन की दुनिया में खांच

पीयूष पांडेय लिखते जग मुस्कराते रहता बांच


हिंदी न उभरती न होती आज ऐसी ही महकती

विज्ञापन की हो कैसी भाषा हिंदी न समझती

जो लिख दिए जो रच दिए अमूल्य सब उवाच

पीयूष पांडेय लिखते जग मुस्कराते रहता बांच


दशकों से हिंदी जगत में पीयूष की निरंतर चर्चा

इतने कम शब्दों में सरल हिंदी का लोकप्रिय चर्खा

आदर, सम्मान, प्रतिष्ठा से हिंदी विज्ञापन दिए साज

पीयूष पांडेय लिखते जग मुस्कराते रहता बांच।


धीरेन्द्र सिंह

26.10.2025

05.41


शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2025

भक्ति भाव

भक्ति में डूबी वह बोलीं

हम कुछ दूरी रखते हैं

मैंने कहा जिसे मन चाहा

हम तो करीबी रखते हैं


धन्यवाद कर प्रणाम इमोजी

बोलीं भाव कदर करते हैं

पढ़कर रहे सोचते  हम

भक्ति किसे सब कहते हैं


उन्होंने कहा करीबी गलत

खुद पर कंट्रोल रखिए

भक्ति कंट्रोल संग हो कैसे

अचल हैं क्या जी, कहिए


भक्ति में अब भी लिंगभेद

पुरुष-स्त्री विभक्त रहिए

मन कहां वश में जानें

साधना और गहन करिए।


धीरेन्द्र सिंह

24.10.2025

18.41

गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025

प्रेम और प्यार

  ईश्वर की कामना की जितनी अभिलाषा
 मानवीय प्यार की उतनी ही प्रबल आशा  

मंदिरों के विग्रह भक्ति, आस्था, समर्पण                                       जीव वहां जाता श्रद्धा देती स्नेहिल दर्पण
देवी-देवता से प्यार नहीं प्रेम सबल नाता
मानवीय प्यार की उतनी ही प्रबल आशा

प्रेम अति व्यापक अलौकिक अनुभूति है
प्यार अति सूक्ष्म लौकिक जन रीति है
आत्मसंवेदनाओं का है जो चपल ज्ञाता
मानवीय प्यार की उतनी ही प्रबल आशा

प्यार करते-करते प्रेम भी दीप्त हो जाता
प्रेम करते-करते लीन होना ही हो पाता
मानव से करो प्यार वही है सफल खासा
मानवीय प्यार की उतनी ही प्रबल आशा।

धीरेन्द्र सिंह
23.10.2025
18.56

मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

सामर्थ्य

प्यार कहे बोल दे पर बोल भी नहीं पाए
सामर्थ्य सोया सा लगे जब प्यार हो जाए

हर गगन में चांद की अठखेलियाँ ही लगें
तारों के बीच भी बादल बहेलियां ही लगें
चांदनी की शीतलता हवा को भी भरमाए
सामर्थ्य सोया सा लगे जब प्यार हो जाए

तुम अतीत तुम व्यतीत तुम ही तो मेरे मीत
भावनाएं गुनगुनाती शब्द सज बनते हैं गीत
कौन तुमसे जुड़कर भी मुडकर बहक पाए
सामर्थ्य सोया सा लगे जब प्यार हो जाए

तुम कब एक व्यक्तित्व में समा जानेवाली
तुम एक तरंग हो महत्व की दिया बाती
तुमको सोचे तुमको जिए तुमको ही गाए
सामर्थ्य सोया सा लगे जब प्यार हो जाए।

धीरेन्द्र सिंह
22.10.2025
00.10

सोमवार, 20 अक्टूबर 2025

मझधार

पहले द्वार रंगोली और द्वार श्रृंगार
फिर दिया, पूजन भक्त भक्ति दुलार
लौ की दुनिया सज गई ऊर्जा लेकर
दिया हो सक्रिय निःशब्द देता आधार

कितनी पूजा किसने की ईश्वर जानें
आरती में किसका कितना लयधार
इन बातों से अलग सोचती आराधना
जनमानस का कितना कैसे हो सुधार

अपनी अभिव्यक्ति को पूर्ण कर चुका
लगता कुछ शेष नहीं रुकी वही पुकार
खड़ा हो गया सोचता नव ज्योति लिए
जबतक है जीवन खत्म कहां मझधार।

धीरेन्द्र सिंह
20.10.2025
21.39