गुरुवार, 8 मई 2025

माटी

 युद्ध है शस्त्र धरो योद्धा

देश हमारा माटी है श्रद्धा


बम गूंज भरे टेलीविजन

ब्लैक आउट उनका जीवन

जज़्बा उनका ढूंढ रहा कंधा

देश हमारा माटी है श्रद्धा


आतंकी पालता पोसता देश

अब बता क्या बचा है शेष

शहर-शहर टूटा झुका मत्था

देश हमारा माटी है श्रद्धा


भारतीय सेना जीत लिए पैना

लक्ष्य लहका दें सत्य यह है ना

टूटा वह देश हो तिहाई अद्धा

देश हमारा माटी है श्रद्धा।


धीरेन्द्र सिंह

09.05.2025

07.46



बुधवार, 7 मई 2025

योद्धा

 संघर्ष ही है जीवन कहे मानव इतिहास

धरा कहे व्योम से कर इसपर विश्वास


हर सांस जीवन युद्ध है और बुद्ध हैं

संघर्ष से जो गुजरे वही जीव शुद्ध हैं

बौद्धिकता ही नहीं सामाजिकता सायास

व्यक्ति हौसले को कहे लक्ष्य कर तलाश


नित अंग संचालन स्वास्थ्य का आधार

नित्य अप्रासंगिक त्यजन सुखद संसार

बाधाएं प्रगति की करें दुखद जो सायास

हर वेदना कहे निर्मूलन शीघ्र हो काश


हर व्यक्ति योद्धा की तरह सौष्ठव रहे

जब जीत जाता कहता चलो उत्सव करें

हर व्यक्ति का अस्त्र-शस्त्र करे उल्लास

योद्धा जो सुप्त व्यक्ति में हो कहां उजास।


धीरेन्द्र सिंह

07.05.2025

06.01



मंगलवार, 6 मई 2025

पानी न दी

 (नई दिल्ली, एनसीआर में घटित एक सत्य घटना पर आधारित रचना जहां कुछ पुरुषों ने मिलकर एक उभरती सशक्त रचनाकार को ऐसा भरमाया की उसने लेखन बंद कर दिया और सर्जनात्मक रूप से बिखर गई जिसका खेद है।)


दरवाजे से लौटा दी मांगा पानी न दी

ऐसा भी करती हैं साहित्य सेवी महिला

दोष इतना सा था कि बहकने से रोका

अब मौन है अज्ञात है जो थी पहिला


एक उड़ीसा की लेखिका पूजती रहती

नासमझ वह क्या जानें उत्तर का किला

पंजीकृत संस्था है निष्क्रिय, प्रकाशक शांत

गलियारों में साहित्य का रहा मौन खिलखिला


कहता था मर जाओगी भ्रमित जाल में

झूठी प्रशंसा, उपहारों ने दिया मन हिला

अब सर्वेश्वर की कविता यूट्यूब पर पढ़ें

खुद की काव्य पुस्तक कर रही है गिला


हर उभरती साहित्यिक महिला को मशवरा

लेखन रहे सतत अन्य गौण सिलसिला

एक प्रतिभाशाली लेखिका, मौन हो गयी

दर्द सह सका न अब तो, दिया चिल्ला।


धीरेन्द्र सिंह

02.05.20२5

17.17



सोमवार, 5 मई 2025

भाव जगाने

 कुचले गए हैं भाव निभाने को तराने

कुचलन करे उछलन वही भाव जगाने


स्तब्ध जब किया जप्त हुई भावनाएं

सुलगती राख हो गयी कई कामनाएं

ढांढस बंधाए लेकर तरीके कई मनाने

कुचलन करे उछलन वही भाव जगाने


हर व्यक्ति पास हैं कुचले हुए कुछ भाव

जिंदगी की जरूरत का था तब निभाव

अब समय गया बीत वह सबक भुनाते

कुचलन करे उछलन वही भाव निभाने


थक गया है जीवन दाग छुपते-छुपाते

खुद से कितना भागना लुकते-लुकाते

वही दौर फिर जगेगा सूनी चाह जगाने

कुचलन करे उछलन वही भाव निभाने।


धीरेन्द्र सिंह

05.05.2025

13.54



रविवार, 4 मई 2025

गमन

 साँसों पर होती उन कदमों की थिरकन

फूलों का खिलना उन नगमों की सिहरन

महकती फिजां में यह सोच हो खड़ी कहे

पुष्प है या कि है उनकी यह नई महकन


उन्हें देखकर लगा देखा ही नहीं है उन्हें

एक झोंका गुलाबी उड़ा पहनकर पैरहन

एकटक यकायक सबकुछ घटा समझ परे

सांसें महक उठी पकड़ लय की गिरहन


जब थीं जुड़ी ऑनलाइन अंदाज़ गज़ब था

एहसास भाव ताश खेलता करता रहा नमन

मेरी दीवानगी को समझ बैठी मेरी आवारगी

बाद उसके जो हुआ प्रभाव उसका है गहन


अब सांस रह गयी हैं वो कहता जमाना

बेगाना मान बैठी हैं हँस दिल करे सहन

प्यार अधिकार कब बन जाता पता नहीं

तुम भी बढ़ रही चल रहा मैं, कैसा गमन।


धीरेन्द्र सिंह

04.05.2025

20.36



शुक्रवार, 2 मई 2025

सदा

 नादानियाँ नहीं तो उम्र का क्या मजा

जो वर्ष गिनना जानें दें उम्र को सजा


कब चढ़ती उम्र कब ढलती है जवानी

ढूंढा इसे बहुत कह न पाई जिंदगानी

मन जवां तन बूढ़ा आजकल दें धता

प्यार की है परिधि जमाना रहा जता


दिल के जो जानकार पढ़ते हैं तरंगे

मिल अँखियों से अँखियाँ रचे उमंगें

दिल-दिल से पूछता चैट का समय बता

छुप-छुप किशोरावस्था की पाएं अदा


नयनों में भक्ति है बसते हैं आराध्य

बातों में भजन है हर वेदना का साध्य

तन भी तो मंदिर है मन हवनकुंड सदा

भावों को क्यों दबाना दे दीजिए सदा।


धीरेन्द्र सिंह

01.05.2025

13.33



गुरुवार, 1 मई 2025

मैं

 यदि मैं प्रतीत हूँ तो प्यार का प्रतीक हूँ

यदि मैं व्यतीत हूँ तो यार का अतीत हूँ

यदि मैं अनदेखा तो खुद से करूँ धोखा

यदि भीड़ का गुमशुदा तो शोर संगीत हूँ


एक संबंध का मन से मन का गीत हूँ

सर्जन से अर्जन जो उसीका मैं प्रीत हूँ

मन छुआ रचना मेरी एक डोर बंध गयी वहीं

मंद सुलगन राख दबी वही लिए रीत हूँ


जो भी मिले जो जुड़े लिए उनकी शीत हूँ

अभिव्यक्तियाँ उत्तुंग लिए भाव का भीत हूँ

इंद्रधनुष की ऋचाओं की शोध मिलकर करें

भावरंग भर चला हूँ साधना का क्रीत हूँ।


धीरेन्द्र सिंह

01.05.2025

12.32