जल में प्रवाहित ज्योति
होती है आस्था
और माटी का दीपक
एक आधार,
तट इसी प्रक्रिया से
हो उठता है
विशिष्ट, महत्वपूर्ण
और पूजनीय भी,
चेतना की लहरों पर
प्रज्ञा की लौ
और मानव तन,
सृष्टि है सुगम
सृष्टि है गहन।
धीरेन्द्र सिंह
15.01.2025
23.20
जल में प्रवाहित ज्योति
होती है आस्था
और माटी का दीपक
एक आधार,
तट इसी प्रक्रिया से
हो उठता है
विशिष्ट, महत्वपूर्ण
और पूजनीय भी,
चेतना की लहरों पर
प्रज्ञा की लौ
और मानव तन,
सृष्टि है सुगम
सृष्टि है गहन।
धीरेन्द्र सिंह
15.01.2025
23.20
फेसबुक अब “पुश पोस्ट” का आसमान हो गया
समूह की पोस्ट पढ़ना कठिन अभियान हो गया
अनचाहे वीलॉग, पेज, विज्ञापन हैं धमक जाते
पढ़ना ही पड़ेगा कितना दौड़े कोई चाहे वह भागे
ब्लॉक करना इनको हर दिन का काम हो गया
समूह की पोस्ट पढ़ना कठिन अभियान हो गया
यह भी है उपाय समूह पृष्ठ को ही पढ़ा जाए
फेसबुक में हैं और सपने उसे कैसे गढ़ा जाए
शुल्क देकर इन सामग्रियों का गुणगान हो गया
समूह की पोस्ट पढ़ना कठिन अभियान हो गया
व्यापार अब साहित्य में अपनी बढ़त है बना रहा
शुल्क का साहित्य है पुरस्कार भी पढ़ा ना पढ़ा
कबीले से कुछ हिंदी समूह का चर्चित नाम हो गया
समूह की पोस्ट पढ़ना कठिन अभियान हो गया।
धीरेन्द्र सिंह
14.01.2025
11.08
बहुत बोझ लगती हैं अब तो किताबें
नयन आपके भी तो कहते बहुत हैं
पन्ने पलटने से मिलते वही सब कुछ
जो आपकी नजरों से बिखरते बहुत हैं
जैसे रुपए से सब कुछ है मिलता नहीं
प्रस्तुतियां भी भरमाती पुस्तकें बहुत हैं
आप ही हैं भरोसा हमें परोसा किए जो
आपकी भी दुनिया में हादसे बहुत हैं
छोड़िए किन पचड़ों में हम घिर गए
बैठिए आपके नयन में आसरे बहुत हैं
होंठ, जिह्वा, अदाएं हैं युग को सताए
एक मर्म मातृत्व का पुकारे बहुत है।
धीरेन्द्र सिंह
12.01.2025
13.58
मत आइएगा मैसेंजर पर मेरे
तासीर आपकी मुझको है घेरे
एक दौर मिला था बन आशीष
किस तौर बातें जाती थीं पसीज
यूं मैसेंजर देखूं सांझ और सवेरे
तासीर आपकी मुझको है घेरे
इंटरनेट पर भी खेत सरसों फूल
पुष्पवाटिका जिसमें चहचाहट मूल
हम थे चहचहाये लगा अपने टेरे
तासीर आपकी मुझको है घेरे
भावनाओं की डोली का नेट कहार
दुर्गम राह पर भी चले कदम मतवार
वो बातें वो लम्हे जैसे आम टिकोरे
तासीर आपकी मुझको है घेरे।
धीरेन्द्र सिंह
09.01.2025
07.13
वैश्विक हिंदी दिवस पर मिला उनका संदेसा
थी कोमल शिकायत नव वर्ष संदेसा न भेजा
क्या करता, क्या कहता, उन्होंने ही था रोका
कुछ व्यस्तता की बातकर चैट बीच था टोका
सामने जो हो उनको सम्मान रहता है हमेशा
थी कोमल शिकायत नव वर्ष संदेसा न भेजा
कहां मन मिला है किसमें उपजी है नई आशा
लगन लौ कब जले संभव कैसे भला प्रत्याशा
कब किसके सामने लगे गौण होता न अंदेशा
थी कोमल शिकायत नव वर्ष संदेसा न भेजा
हृदय भर उलीच दिया तरंगित वह शुभकामनाएं
नयन भर समेट लिया आलोकित सब कामनाएं
नव वर्ष उत्सव मना चैट द्वार पर भाव विशेषा
थी कोमल शिकायत नव वर्ष संदेसा न भेजा।
धीरेन्द्र सिंह
10.01.2025
22.17
विश्व हिंदी दिवस
दस जनवरी
बोल रहा है
बीती विभावरी,
अब न वह ज्ञान
न शब्दों के प्रयोग
नव अभिव्यक्ति नहीं
विश्व हिंदी कैसा सुयोग,
घोषित या अघोषित
यह दिवस क्या पोषित
क्या सरकारी संरक्षण
या कोई भाव नियोजित,
न मौलिक लेखन
न मौलिक फिल्माकंन
ताक-झांक, नकल-वकल
क्या है अपने आंगन ?
हिंदी की विभिन्न विधाएं
कभी प्रज्वलित तो फडफ़ड़ाएं
भाषा संवर्धन पड़ा सुप्त
हिंदी की मुनादी फिराएं।
धीरेन्द्र सिंह
09.01.2025
15.44
न कोई बरगलाहट है न कोई सुप्त चाहत है
वही ढल जाता शब्दों में जो दिल की आहट है
बहुत बेतरतीब चलती है अक्सर जिंदगानी भी
बहुत करीब ढलती है अविस्मरणीय कहानी भी
मन नहीं हारता तन में अबोला अकुलाहट है
वही ढल जाता शब्दों में जो दिल की आहट है
कर्म के दग्ध कोयले पर होते संतुलित पदचाप
भाग्य के सुप्त हौसले पर ढोते अपेक्षित थाप
कभी कुछ होगा अप्रत्याशित यह गर्माहट है
वही ढल जाता शब्दों में जो दिल की आहट है
बहुत संकोची होता है जो अपने में ही रहता
एक सावन अपना होता है जो अविरल बरसता
अंकुरण प्रक्रिया में कामनाओं की गड़गड़ाहट है
वही ढल जाता शब्दों में जो दिल की आहट है।
धीरेन्द्र सिंह
07.01.2025
11.01