शनिवार, 14 दिसंबर 2024

मर-मर जीने में

 कोई जब याद करता है बरसते भाव सीने में

वही वादी लगे खाईं है लरजते मर-मर जीने में


हर घड़ी प्यार की पुचकार भरी जग आशाएं

क्या पड़ी किसपर कोई भला क्यों बतलाए

सजाता रचकर ऐसे विश्वास पहने नगीने में

वही वादी लगे खाईं है लरजते मर-मर जीने में


कहां से बांधकर लाती हवाएं यादों के बस्ते

कहां से भाव आ जाते कसक यादों से सजते

यह यादें भी हैं कैसे जानती बरसना सीने में

वही वादी लगे खाईं है लरजते मर-मर जीने में


कोई छूटकर भी छूटता नहीं लगे छूट गया

नयन भाव फूटकर भी फूटता नहीं बने नया

एक अंकुर निर्जला गुल खिलाता सुगंध सीने में

वही वादी लगे खाईं है लरजते मर-मर जीने में।


धीरेन्द्र सिंह

15.12.2024

13.06



कौआ

 कौआ चला हंस की चाल

गिरगिट ऑरकेस्ट्रा दे तान

लगे गिलहरी सा यह जीवन

पेड़, डालियाँ जीवन अनुमान


गिरगिट सा रंग बदलता ऑरकेस्ट्रा

तीन धारियां ब्रांड अभिमान

कौआ इसमें चपल बन गया

हंस लगे बस तिरते अभिज्ञान


जो जीता है वही सिकंदर

कांव-कांव कौआ आत्मज्ञान

हंस छवि सुंदर सा खुश है

और बनाए कौआ नित मचान।


धीरेन्द्र सिंह

14.12.2024

11.35




शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

पीठासीन

 सत्य की अर्जियां तो दीजिए

कथ्य की मर्जियाँ भी लीजिए

प्रजातंत्र की है यह स्वतंत्रता

बरसते भाव रीतियों से भीगिए


आप विजेता नेता सा चल रहे

ठाठ में तो बाट को तो देखिए

कल तलक जयकारा लगानेवाला

किस कदर अनदेखा हुस्न हिए


दिल की संसद में है वाद-विवाद

शोर अनियंत्रित कुछ तो कीजिए

प्यार में पक्ष-प्रतिपक्ष द्वंद्व चरम

समर्पित है प्रणय पीठासीन लीजिए।


धीरेन्द्र सिंह

13.12.2024

19.30




गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

चेहरा

 बहुत भोला सा निष्कपट चेहरा

देखते बोला नयन लिपट चेहरा


जीवन चुनौतियों की सिमटी हवाएं

संघर्ष नीतियों की विजयी पताकाएं

शालीनता से गर्वित चले फहरा

देखते बोला नयन लिपट चेहरा


दृष्टि देख रही थी बांधे बवंडर

भृकुटि लगे बांधे हुए समंदर

अवलोकन में तेजस्विता दोहरा

देखते बोला नयन लिपट चेहरा


हर चेहरा लगे ब्रह्मांड का एक विश्व

बंद अधर लगे सूचनाओं के अस्तित्व

हर चेहरे को प्रणाम भाव गहरा

देखते बोला नयन लिपट चेहरा।


धीरेन्द्र सिंह

12.12.2024

20.47 




बुधवार, 11 दिसंबर 2024

जीवन

 जीवन

एक प्यास

एक आस

एक तलाश

पर क्या यह है सच?

खरगोश सा है

अधिकांश जीवन

एक बनाई परिधि में

निर्द्वंद्व भटकना

और रहना प्रसन्न

उसी परिवेश में

जाने-पहचाने चेहरे बीच;


कौन तोड़ निकल पाता है

दायरा अपना

एक अनजानी चुनौती

का करने सामना,

आए चुनौतियां

दौड़े अपने 

सम्प्रदाय धर्म स्थली

कामना-थाम ना;


अधिकांश जीवन

अपनी मुक्ति का

करता है भक्ति,

एक उन्मुक्त उड़ान की

कामना में,

जीवन-जीवन को छलते

यूं ही

गुजर जाता है।


धीरेन्द्र सिंह

12.12.2024

08.41



शुक्रवार, 6 दिसंबर 2024

सीढियां

 एक युवती घुटनों बल चढ़ रही थी सीढियां

वह शक्ति नहीं था स्वभाव दे गई पीढियां


कई वयस्क हांफ रहे थे चढ़ते हुए लगातार

सदियों पुरानी, भारतीय पुरातत्व की झंकार

कितनों की मन्नत पूरी हुई जानती सीढियां

वह शक्ति नहीं था स्वभाव दे गई पीढियां


एक युवक लिए थैला दे रहा था उसका साथ

महिला ही होती हैं पकड़े जीवन के विश्वास

पथरीली थी कुछ अनगढ़ सीढ़ी समेटे कहानियां

वह शक्ति नहीं था स्वभाव दे गई पीढियां


आस्था और विश्वास का ही जग में उल्लास

अदृश्य ऊर्जा कोई कहीं पाए उसकी है आस

परालौकिक ऊर्जाओं में रुचि लगता बढ़िया

वह शक्ति नहीं था स्वभाव दे गईं पीढियां।


धीरेन्द्र सिंह


06.12.2024

19.38


गुरुवार, 5 दिसंबर 2024

झुरमुट

 झुरमुटों को पंख लग गए हैं

बिखरकर प्रबंध रच गए हैं

हवा न बोली न सूरज बौराया

अब लगे झुरमुट ही ठंस गए हैं


झुनझुनाहट झुरमुटों का स्वभाव है

झुंड ही विवेचना कर गए हैं

आंख मूंद उड़ रहे हैं झुरमुट

उत्तुंग कामना स्वर भए हैं


रेंग रहीं चींटियां झुरमुटों पास

दीमक उभर आग्रह कर गए

पंख लगे झुरमुट क्या यथार्थ है

प्रश्न उभरे दुराग्रह धर गए


विकास की विन्यास की प्रक्रिया

परिवर्तन साध्य समय कह गए

चिंतनीय जीवंतता जहां हुई क्षीण

संस्कार, संस्कृति, समाज बह गए।


धीरेन्द्र सिंह

05.12.2024

19.05

पुणे