बुधवार, 19 नवंबर 2025

हिंदी भगवान

सुन रहा हूँ सत्य के अभिमान को

गुन रहा हूँ कथ्य के नव मचान को

आप केंद्र में एक संभावना बन सुनें

कुछ प्रवक्ता चैनल के भव विद्वान को


चैनलों के कुछ एंकर भूल रहे हिंदी

कुछ प्रवक्ता सक्रिय भाषा अपमान को

आप जनता हैं तो सुनिए यही प्रतिदिन

कौन कहे मीडिया के भाषा नादान को


हिंदी को करता दूषित है हिंदी चैनल

हिंदी शब्द बलि चढ़े अंग्रेजी मान को

कुछ एंकर कुछ प्रवक्ता लील रहे हिंदी

आप कहीं ढूंढिए अब हिंदी भगवान को।


धीरेन्द्र सिंह

19.11.2025

19.22

रविवार, 16 नवंबर 2025

गुठलियां

सर्दियों में सिहर गईं गुठलियां

माटी भी ऊष्मा अपनी खोने लगी

ऋतु परिवर्तन है या आकस्मिक

घाटी भी करिश्मा से रोने लगी


सर्दियों की बनी थीं कई योजनाएं

कामनाएं गुठली को संजोने लगी

वादियों की तेज हवा मैदानी हो गयी 

भर्तस्नायें जुगत सोच होने लगीं


सुगबुगाहट युक्ति की प्रथम आहट

सर्दियां थरथराहट आदतन देने लगी

गुठलियां जुगत की जमीन रचीं

उर्वरक अवसाद भाव बोने लगीं


मौसम परास्त कर न सका गुठलियां

पहेलियां गुठली नित रच खेने लगीं

कल्पना के चप्पू से दूर तलक यात्रा

गुठलियां जमीन को स्वयं पिरोने लगीं।


धीरेन्द्र सिंह

19.08

17.11.2025






नारी रुदन

पोषण है कि शोषण रहे हैं उलझाए

एयरपोर्ट पर नारी रुदन चिंता जगाए

मौन हैं दुखी है या निरुत्तर है मायका

नेतृत्व परिवार नेतृत्व क्यों सकपकाए


अंग अपना दान करती पिता को पुत्री

उसी अंगदान को भंगदान कह चिढाएं

मीडिया के सामने अविरल बही अश्रुधारा

मायका रहा शांत जो सुना वह बुदबुदाए


भैया की कलाई पर अटूट विश्वासी राखी

मस्तक रचि तिलक मुहँ मीठा बहन कराए

कर त्याग मायके का कदम उठाए नारी यदि

अटूट रिश्ता है दरका समाज कैसे संवर पाए।


धीरेन्द्र सिंह

16.11.2025

21.38



शनिवार, 15 नवंबर 2025

आराधना

 हृदय का हृदय से हो आराधना

पूर्ण हो प्रणय की प्रत्येक कामना

आप निजत्व के महत्व के अनुरागी

मैं प्रणय पुष्प का करना चाहूं सामना


तत्व में तथ्य का यदि हो जाये घनत्व

महत्व एक-दूजे का हो क्यों धावना

सामीप्य की अधीरता प्रतिपल उगे

समर्पण की गुह्यता को क्यों साधना


छल, कपट, क्षद्म का सर्वत्र बोलबाला

पहल भी कैसे हो वैतरणी है लांघना

कल्पना की डोर पर नर्तक चाहत मोर

प्रणय का प्रभुत्व ही सर्वश्रेष्ठ जागना


कहां गहन डूब गए रचना पढ़ते-पढ़ते

मढ़ते नहीं तस्वीर यूँ यह है भाव छापना

अभिव्यक्तियाँ सिसक जब मांगे सम्प्रेषण

निहित अर्थ स्वभाव चुहल कर भागना।


धीरेन्द्र सिंह

15.11.2025

23.15



शुक्रवार, 14 नवंबर 2025

मस्त

तन मय होकर हो जाते हैं तन्मय

मन मई होकर सज जाते हैं उन्मत्त

यही जिंदगी की चाहत है अनबुझी

इसको पाकर तनमन हो जाते हैं मस्त


तन की सेवा तन की रखवाली प्रथम

मन क्रम, सोच से हो जाता है बृहत्त

इन दोनों से ही हर संवाद है संभव

बिन प्रयास क्या हो जाता है प्रदत्त


चेहरे की आभा में सम्मोहन आकर्षण

नयन गहन सागर मन मोहित आसक्त

प्यार की नैया के हैं खेवैया लोग जमीं के

जी लें खुलकर ना जाने कब हो जाए अस्त।


धीरेन्द्र सिंह

15.11.2025

07.48



गुरुवार, 13 नवंबर 2025

ब्रेकअप ?

ब्रेकअप कहां की संस्कृति है

एक्स है कहना प्रगति रीति है

प्यार होकर टूट भी जाता है कहीं

कौन जाने किस जग की नीति है


आकर्षण को समझ लेते जो प्यार

प्यार की यही सबसे बड़ी कुरीति है

लुट गया लूट लिया दिल किसी का

कभी न भूल पाए आत्मा का गीत है


प्रणय का समय संग होते हैं प्रकार

अभिव्यक्ति बदलती वैसी संगति है

आत्मा का आत्मा में विलय हो जाता

समर्पित होती उसी प्रकार मति है


एक से अधिक प्यार संभव हो गया

प्रौद्योगिकी की भी इसमें सहमति है

एक बार प्यार हुआ छूटता कभी नहीं

चाहत की दुनिया में यही सम्मति है।


धीरेन्द्र सिंह

13.11.2025

22.39




बुधवार, 12 नवंबर 2025

हिन्दू संस्कृति

 कभी इधर कभी उधर, दृष्टि से गये उतर

सर्वधर्म समभाव डगर, सृष्टि में दिखे किधर


हिन्दू संस्कृति को हिन्दू हैं कितना जानते

हिंदुत्व का प्रवाह प्रखर कई नहीं जानते

कर्म आकृति हिंदुत्व अखंड भारत का सफर

सर्वधर्म समभाव डगर, सृष्टि में दिखे किधर


धर्म की नहीं बात करें, लोग समझते अपराध

धर्म की परिभाषा गलत, लक्ष्य कुछ रहे साध

हिन्दू राष्ट्र भारत है, इसे बोलने में कांपे अधर

सर्वधर्म समभाव डगर, सृष्टि में दिखे किधर


एक वर्ग भटक रहा जबकि बेजोड़ घटक रहा

सर्वधर्म हो पल्लवित स्वाभाविक हिन्दू राष्ट्र कहा

राष्ट्र लय में सब मिल थिरकें धर्म का करते कदर

सर्वधर्म समभाव डगर, सृष्टि में दिखे किधर।


धीरेन्द्र सिंह

12.11.2025

19.34