बुधवार, 30 जुलाई 2025

रीता है

 सब लोग कहें कुशल-मंगल सब बीता है

कौन जाने किसके जीवन में क्या रीता है


सभी प्रयास सभी सावधानियां नियमावली

बढ़ते कदम अथक पर घुमाती रही वही गली

कभी कर्म कभी भाग्य कहीं प्रारब्ध लीला है

कौन जाने किसके जीवन में क्या रीता है


कर्म के मर्म को समझ धर्म निरखें नर्म-गर्म

भाग्य के भाष्य में साक्ष्य के पथ्य पार्श्व कर्म

कर्मवाद भाग्यवाद बहुविवाद कौन जीता है

कौन जाने किसके जीवन में क्या रीता है


हर व्यक्ति कर भक्ति किसी नशे से कर आसक्ति

शालीन कोई अशालीन नशे से चाहे दर्द मुक्ति

शिष्ट और अशिष्ट व्यक्ति परिस्थितियों का छींटा है

कौन जाने किसके जीवन में  क्या रीता है।


धीरेन्द्र सिंह

30.07.2025

21.18


मंगलवार, 29 जुलाई 2025

भूंरी पत्ती

हवा के झोंके से आ गयी चिपक

भूंरी सी कम नमी वाली वह पत्ती

चिहुंक मन जा जुड़ा वहीं पर फिर

जहां जलती ही रहती भाव अगरबत्ती


थोड़ी कोमल थोड़ी खुरदुरी सी लगे

उम्र भी हो गयी देह की अपनी सूक्ति

हल्की खड़खड़ाहट से बोलना चाहे

मुझको छूते चिकोटी काटते भूंरी पत्ती


खयाल भी अकड़ जाते हल्के से जैसे

हवा संग दौड़ती-भागती यह भूंरी पत्ती

कभी लगता वही कोमलता सिहरन वही

अब सब ठीक लगे भटका दी भूंरी पत्ती


अचानक उड़ गई झोंका हवा का था तेज

रोकना, पकड़ना चाहा हवा से करते आपत्ति

कितनी गहराई से हम मिले वर्षों बाद जी

कहीं खोती ने दिल की हो गयी संपत्ति।


धीरेन्द्र सिंह

30.07.2025

08.55 

सोमवार, 28 जुलाई 2025

अविरल

 हरे पत्ते पर तैरता दीया

लय में बहती लहरें मंथर

भाव मेरे दीपक मान लो

और तुम लहरों सी निरंतर


समय हवा सा बहते जाता

दीया की लौ लचक धुरंधर

आस्था का गुंजन आह्लादित

तुम लगती हो कोई मंतर


लहरें खींचे और दीया बढ़े

लहर स्वभाव में गति अंतर

लौ की लपक चाहे कहना

लहर उचकती पढ़ने जंतर


दीया में है लौ जिया

लहरों में रही तृष्णा फहर

जीवन प्रवाह अविरल कलकल

चाहें भी तो ना पाएं ठहर।


धीरेन्द्र सिंह

29.07.2025

09.53





रविवार, 27 जुलाई 2025

ज्योति कालरा

 उम्र वरिष्ठता की सोच धर्म अब आसरा

53 वर्ष में करती हैं मुग्ध ज्योति कालरा

न तो उम्र छुपातीं न रंग बाल हैं छकाती

स्वयं पर ध्यान विशिष्ट स्वाभाविक माजरा


किसी व्यक्ति पर लिखना मतलब श्रेष्ठ है

उम्र की वरिष्ठता में आकर्षण ला धरा

सहज, स्वाभाविक नारी की अदाएं लिए

जीवन को जी रहीं कर पहल स्वभरा


नृत्य में निपुणता अभिव्यक्ति की भरमार

उम्र कुछ नहीं होता कहें विचारिए परंपरा

आज ही कुल चार वीडियो जो देखा तो

वरिष्ठों की बदलती सोच हैं ज्योति कालरा


गरिमा भी है गहनता भी और शोखियाँ

आसक्ति स्वयं पर अभिव्यक्ति भाव भरा

क्या खूब एक जीवंत वरिष्ठ पतंग सी लगें

मोहिनी हैं, आसक्त असंख्य ज्योति कालरा।


धीरेन्द्र सिंह

27.07.2025

13.27

शनिवार, 26 जुलाई 2025

हिंदी अज्ञानी

 अपशब्द कहिए हिंदी साहित्यकारों को

हिंदी में नया सार्थक करना कठिन है

गुटबंदी, चाटुकारिता विभिन्न विशेषण

सत्तर के दशक से हिंदी के यही दिन है


हिंदी और उर्दू को सगी बहन रहिए कहते

हिंदी की लिपि हिंदी के लगे दुर्दिन है

ना मंच मिला ना ही उद्घोषणा अवसर

अब हिंदी अंग्रेजी मिश्रित ताकधीन हैं


न्यायालयों और थाने की भाषा रही उर्दू

हिंदी उपेक्षा सतत हाशिए की गाभिन है

सभ्यता और संस्कृति से सीधे जुड़ी भाषा

वर्तमान में हिंदी कुछ राज्य में दीन है


हिंदी साहित्य का इतिहास चिंतन प्रथम

भारतीय संविधान राजभाषा नीति साथिन है

पाठ्यपुस्तकों की हिंदी की गुणवत्ता देखिए

चुनौतियां बहुत पर हिंदी किस अधीन है


वर्षों सीधे हिंदी प्रयोग से जो हैं जुडें

वह कर्म करते आरोपों के ना भिन-भिन हैं

अपनी योग्यता से हिंदी को समर्थित करें

अधूरे हिंदी ज्ञानियों की गूंजती धुन है।


धीरेन्द्र सिंह

26.07.2025

23.55

घूंघट

 बौद्धिकता में निहित नव हर्षिता

मनुष्यता का मुकुट है पारदर्शिता

बुद्धिमत्ता से संबंधों में भी घूंघट

विरले ही खुलकर जीते अर्पिता


स्पष्ट प्रदर्शन स्वयं की निमित्तता

क्लिष्ट जीवन क्यों क्या रिक्तिता

साफ-साफ कह दे वह ना मुहंफट

जितना स्वयं को खोलें उन्मुक्तता


दुनियादारी में पर्देदारी है कायरता

जैसा हैं वैसा दिखाएं स्व दग्धता

क्या मिलेगा जीवन में लेते करवट

चतुराई स्व से गैरों को न फर्क पड़ता


धर्म के बड़बोले धर्म की आतुरता

कर्म का दिखावा सोच में निठुरता

बहुसंख्यक घूंघट में बेसुरे खटपट

जैसा हो वैसा कहो स्व में मधुरता।


धीरेन्द्र सिंह

26.07.2025

15.20


शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

क्षमायाचना

 कड़वाहट भरे शब्द से दिया धिक्कार

"समय नहीं मिला" था उनका प्रतिकार

लंबा लिख अंग्रेजी में हम कुपित हो गए

"सॉरी" अंग्रेजी में लिख वह चुप हो गए


बैठा था अंधड़ था लड़खड़ाते कई विचार

"खेद पहुंचाना उद्देश्य न था" आंग्ल विचार

मेरे समर्पण मेरी गहनता से क्यों खेल गए

"एक्सीडेंट कल हुआ था" सहज बोल गए


यह नारी किस क्यारी की निर्मित प्रकार

समझें भी तो कैसे युग करता रहा विचार

मेरी उग्रता का वह गहन शमन कर गए

कुछ शब्द नहीं निकला ऐसे वह ढह गए


एक पीड़ा भाव क्रीड़ा सांस पश्चाताप हुंकार

नारीत्व विशालता समक्ष पुरुषत्व लगे कचनार

ईश्वर से प्रार्थना उन्हें कर स्वस्थ करें नए

करबद्ध क्षमायाचना हम यह क्या कर गए।


धीरेन्द्र सिंह

25.07.2025

14.44