शनिवार, 26 जुलाई 2025

हिंदी अज्ञानी

 अपशब्द कहिए हिंदी साहित्यकारों को

हिंदी में नया सार्थक करना कठिन है

गुटबंदी, चाटुकारिता विभिन्न विशेषण

सत्तर के दशक से हिंदी के यही दिन है


हिंदी और उर्दू को सगी बहन रहिए कहते

हिंदी की लिपि हिंदी के लगे दुर्दिन है

ना मंच मिला ना ही उद्घोषणा अवसर

अब हिंदी अंग्रेजी मिश्रित ताकधीन हैं


न्यायालयों और थाने की भाषा रही उर्दू

हिंदी उपेक्षा सतत हाशिए की गाभिन है

सभ्यता और संस्कृति से सीधे जुड़ी भाषा

वर्तमान में हिंदी कुछ राज्य में दीन है


हिंदी साहित्य का इतिहास चिंतन प्रथम

भारतीय संविधान राजभाषा नीति साथिन है

पाठ्यपुस्तकों की हिंदी की गुणवत्ता देखिए

चुनौतियां बहुत पर हिंदी किस अधीन है


वर्षों सीधे हिंदी प्रयोग से जो हैं जुडें

वह कर्म करते आरोपों के ना भिन-भिन हैं

अपनी योग्यता से हिंदी को समर्थित करें

अधूरे हिंदी ज्ञानियों की गूंजती धुन है।


धीरेन्द्र सिंह

26.07.2025

23.55

घूंघट

 बौद्धिकता में निहित नव हर्षिता

मनुष्यता का मुकुट है पारदर्शिता

बुद्धिमत्ता से संबंधों में भी घूंघट

विरले ही खुलकर जीते अर्पिता


स्पष्ट प्रदर्शन स्वयं की निमित्तता

क्लिष्ट जीवन क्यों क्या रिक्तिता

साफ-साफ कह दे वह ना मुहंफट

जितना स्वयं को खोलें उन्मुक्तता


दुनियादारी में पर्देदारी है कायरता

जैसा हैं वैसा दिखाएं स्व दग्धता

क्या मिलेगा जीवन में लेते करवट

चतुराई स्व से गैरों को न फर्क पड़ता


धर्म के बड़बोले धर्म की आतुरता

कर्म का दिखावा सोच में निठुरता

बहुसंख्यक घूंघट में बेसुरे खटपट

जैसा हो वैसा कहो स्व में मधुरता।


धीरेन्द्र सिंह

26.07.2025

15.20


शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

क्षमायाचना

 कड़वाहट भरे शब्द से दिया धिक्कार

"समय नहीं मिला" था उनका प्रतिकार

लंबा लिख अंग्रेजी में हम कुपित हो गए

"सॉरी" अंग्रेजी में लिख वह चुप हो गए


बैठा था अंधड़ था लड़खड़ाते कई विचार

"खेद पहुंचाना उद्देश्य न था" आंग्ल विचार

मेरे समर्पण मेरी गहनता से क्यों खेल गए

"एक्सीडेंट कल हुआ था" सहज बोल गए


यह नारी किस क्यारी की निर्मित प्रकार

समझें भी तो कैसे युग करता रहा विचार

मेरी उग्रता का वह गहन शमन कर गए

कुछ शब्द नहीं निकला ऐसे वह ढह गए


एक पीड़ा भाव क्रीड़ा सांस पश्चाताप हुंकार

नारीत्व विशालता समक्ष पुरुषत्व लगे कचनार

ईश्वर से प्रार्थना उन्हें कर स्वस्थ करें नए

करबद्ध क्षमायाचना हम यह क्या कर गए।


धीरेन्द्र सिंह

25.07.2025

14.44

गुरुवार, 24 जुलाई 2025

उलाहना

 "भूल गए लगता"

पढ़ क्या कहता

व्यस्तता कारण नहीं

प्यार रहता हंसता


लिख रहा आध्यात्मिक

चिंतन वहीं रहता

ऐसा यदि बोलूं

प्यार क्यों करता


चूके जाएं चपड़ियाएँ

कौन है सहता

चाहत बन चकोर

मेरा संदेश तकता


शालीन सी शिकायत

शंखनाद सा विचरता

समर्पण ही साध्य

प्यार ऐसे निखरता


वह रहें शांत

उनका संदेश धीरता

पहल नहीं करतीं

भाव चटपटा बिखरता।


धीरेन्द्र सिंह

24.07.2025

18.41



बुधवार, 23 जुलाई 2025

साहित्य

 एक शब्द

ओढ़े हुए

अर्थ का वस्त्र,

ढूंढ रहा था

उपयुक्त भाव,


एक भाव

अभिव्यक्ति का

असर मिले

ढूंढ रहा था 

उपयुक्त शब्द,


संप्रेषण

टेबल पर

रखी चाय का

उड़ता महकता

वाष्प,


रचयिता

तल्लीनता से

रच रहा था

नव रचना

करता समृद्ध साहित्य,


साहित्य

पाठक मन में उड़ता

पुस्तकों में घुमड़ता

सितारों की तरह

टिमटिमा रहा है।


धीरेन्द्र सिंह

23.07.2025

19.13



मंगलवार, 22 जुलाई 2025

आत्मपैठ

मुझे मजबूर करती है मोहब्बत तुम्हारी

कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी


प्रणय के पल्लवन पर है तुम्हारी चंचलता

हृदय तुमको सराहा है लिए व्याकुलता

हृदय कहता है तुम ही हो नमन दुलारी

कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी


मुझे मालूम हैं समवेत सामाजिक चपलता

मेरी आत्मा करे प्रसारित निज धवलता

मोहब्बत कुछ नहीं कुछ चाहतों की तैयारी

कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी


वही फिर ठौर अपना वही उभरे चंचलता

दिलफेंक हूँ जो प्यार पर अक्सर लिखता 

आध्यात्मिक यात्रा में आत्मपैठ की खुमारी

कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी।


धीरेन्द्र सिंह

23.07.2025

08.31




शनिवार, 19 जुलाई 2025

रिश्ते

चेहरे प्रसन्न दिखें अंतर्मन रहे सिसकते

तार-तार हो गए पर हैं तार से अब रिश्ते


मोबाइल से बात है कम खुशी या गम

उड़ रहा है उड़ता जा देखते हैं अब दम

एक चुनौती प्रतियोगिता सब अंदर रिसते

तार-तार हो गए पर हैं तार से अब रिश्ते


दोनों छोर तार की पकड़ जर्जर ले अकड़

एक बैठा देखते कब दूजा चाहे ले पकड़

मानसिक द्वंद्व है ललक मंद है खिसकते

तार-तार हो गए पर हैं तार से अब रिश्ते


इलेक्ट्रॉनिक सुविधाओं में घुल रहे संबंध

खानदानी समरसता जैसे भटका विहंग

अविश्वासीआंच पर संबंध जलते सिंकते

तार-तार हो गए पर हैं तार से अब रिश्ते।


धीरेन्द्र सिंह

19.07.2025

19.44