शुक्रवार, 6 जून 2025

लाईक कमेंट्स

 लेखन कितना क्षुब्ध हो गया

चाहे हरदम खुश इठलाने को

लाईक, टिप्पणियों के अधीन

सर्जना लगे सुप्त बिछ जाने को


रचनाकार सशक्त सजीव संजीव

रचना मन अंगना खिल जाने को

मिलते रहते पाठक और प्रशंसक

रचना गुणवत्ता ओर खींच जाने को


सर्जन का है कर्म-धर्म अभिव्यक्ति

लेखन का स्वभाव मन छू जाने को

पाठक प्रशंसक के अधीन यदि लेखन

प्रथम संकेत है लेखन चुक जाने को


एक विचार हो एक प्रवाह हो लेखक

है कर्म निरंतर लेखन जग जाने को

एक चुम्बक है लेखन सबको ले खींच

लाईक, कमेंट्स में क्यों उलझ जाने को।


धीरेन्द्र सिंह

07.06.2025

05.39





गुरुवार, 5 जून 2025

उम्र

 प्यार यदि देह है फिर क्या नेह है

कुछ भी संभव कहीं भेद लिए देह है


एक उम्र आते ही कहते बस हुआ

ईश्वर की भक्ति करो उम्र को छुआ

देह तो तब भी प्यार करना खेद है

कुछ भी संभव कहीं भेद लिए देह है


प्यार पर लिख रहे उम्र भी तो देखिए

लोग क्या कहेंगे गरिमा के जो भेदिए

लेखन में पड़े कुछ करते नहीं गेय है

कुछ भी संभव कहीं भेद लिए देह है


अधेड़ उम्र में प्यार क्यों हैं करते

भक्ति लो मुक्ति लो अचानक हैं मरते

परलोक की सोचें देह नश्वर विदेह है

कुछ भी संभव कहीं भेद लिए देह है।


धीरेन्द्र सिंह

06.06.2025

10.21


बुधवार, 4 जून 2025

क्रिकेट हादसा

 गेंद लेकर दौड़ता एक गेंदबाज

बल्ला चाहे गेंद को दे गति साज


गेंदबाज, बल्लेबाज और क्षेत्ररक्षक

एक विजयी दूजी टीम बनी समीक्षक

बंगलुरू स्टेडियम में जश्न की आवाज

बल्ला चाहे गेंद को दे गति साज


आरसीबी टीम अठारह वर्ष बाद जीत

स्टेडियम द्वार भगदड़ निकली कई चीख

स्टेडियम में  चलता रहा जश्न लिए नाज़

बल्ला चाहे गेंद को दे गति साज


मर गए घायल हुए कई क्रिकेट प्रेमी

कौन दोषी मुक्तभोगी था संयोग नेमी

चैनलों के वीडियो दर्शाते चूक व काज

बल्ला चाहे गेंद को दे गति साज


ना रुकी भगदड़ में मौत व भारी चोट

स्टेडियम में उत्सव बाहर व्यवस्था खोट

क्रिकेट जगत का दुखदाई हादसा माँज

बल्ला चाहे गेंद को गति दे साज।


धीरेन्द्र सिंह

04.06.2025

18.48

सोमवार, 2 जून 2025

अर्थपूर्ण

 एक बात कहूँ आप यूं ना सोचिए

हर बात अर्थपूर्ण कहां होती है

एक समीक्षक की तरह ना देखिए

हर नात गर्भपूर्ण कहां ज्योति है


समझौता ही एकमात्र है विकल्प

जिंदगी स्वप्न जैसी कहां होती है

शोधार्थी की तरह जारी रहे शोध

बंदगी, यत्न ऐसी जहां रीति है


टूटते तारे हों तो है चमकता रिश्ता

रोशनी खास अब यहां कहां होती है

अंधेरा भर रहा धुआं बन सीने में

सुलगन अब कहाँ आग लिए होती है


हर चेहरे पर संतुष्टि का है मेकअप 

चेहरे पर खिली चांदनी कहां होती है

कहिए कि नकारात्मक सोच का लेखन

चहकना सीख ले जिंदगी वहीं होती है।


धीरेन्द्र सिंह

03.06.2025

09.12



रविवार, 1 जून 2025

चश्मा

 तुम भी मुझे उतार दी चश्मा की तरह

लेन्स कमजोर लग रहा था हर शहर


कहा कि साफ कर लो धूल है बहुत

नई चाह में बीमार सा घूमे दर बदर


मारा कुछ छींटे धूल लेंस से तो हटे

गर्दन घुमा लिया तुमने जैसे हो डगर


हर तन कमजोर हो अक्सर नहीं होता

मन भटक चला था बिना अगर-मगर


क्या कर लिया हासिल कुछ तो न दिखे

बवंडर से जा जुड़े उड़ान के कुछ पहर


लिख रहा हूँ तुमको याद जो आ गयी

चश्मा के लेंस संग झांकती वही नजर।


धीरेन्द्र सिंह

02.06.2025

09.55



यह लोग

 यह लोग जो संस्कार की बात करते हैं

जाने शोर किस अधिकार की करते हैं


प्यार यदि छलक सतह पर है निखरता

यही लोग प्यार का धिक्कार करते हैं


यह कभी लगा नहीं शुष्क मन इनका

मनोभावों में यह भी श्रृंगार करते हैं


सारा संस्कार प्यार रचित बातों पर ही

संस्कार बांधकर क्यों व्यवहार करते हैं


भ्रष्टाचार, झूठ बोलना, डीपी गलत लगा

व्यक्तित्व मुखौटा अस्तित्व नाद करते हैं


ईश्वर भी है प्यार तो प्यार भी है ईश्वर

नश्वर बारंबार नव ईश्वर पुकार करते है।


धीरेन्द्र सिंह

01.06.2025

13.00



शनिवार, 31 मई 2025

साहस

 मैं भी चला था दौर में देखा न गौर से

एक दिन भी चाह न छोड़ा मिली और से


अब भी उन्हीं जैसा दिखे तो धड़के दिल

संकोच गति को बांधे मन चीखे आ मिल

मैं अपनी धुन में वह अपने उसी तौर से

एक दिन भी चाह न छोड़ा मिली और से


यह बात नहीं कि वह समझीं न इशारा

एक बार उनकी राह देख मुझको पुकारा

थम गया, संकोच उठा, घबराया कौर से

एक दिन भी चाह न छोड़ा मिली और से


प्यार भी हिम्मत, साहस, शौर्य के जैसा

कदम ही बढ़ ना सके तो पुरुषार्थ कैसा

आज भी वही पल ठहरा हांफते शोर से

एक दिन भी चाह न छोड़ा मिली और से।


धीरेन्द्र सिंह

31.05.2025

17.44