शनिवार, 24 अगस्त 2024

ठरकी

 चालित, स्वचालित या संचालित

यूं रहस्यमय हों जैसे कापालिक

पूर्णता, अपूर्णता या संपूर्णता

प्रगति के दौर बड़े तात्कालिक


रात्रि अलाव दिखा अग्नि भभकी

स्वाहा हो चुका तब पुलिस पहुंची

अहंकार, अहंधार या आत्महुंकार

ढूर-दराज हालत यही सबकी


कौन सहे, कौन गहे, कौन बहे

कौन है सत्य है कौन प्रामाणिक

कौन गहे, कौन मथे, कौन सधे

कौन तथ्य है जो संवैधानिक


दूर कहीं जमघट में हो रही चर्चाएं

अबकी पर्व में कौन होगा सनकी

100 नंबर डायल किया बात हुई

सुबह खबर थी गए पकड़े ठरकी।


धीरेन्द्र सिंह

24.08.2024ठरकी

14.37


शुक्रवार, 23 अगस्त 2024

कुंवारी सांझ

 एक कुंवारी सांझ हो तुम

कोमल मद्धम आंच हो 

दिन बहुत छका चला अब

एक तुम्ही सहेली साँच हो


उपवन में सब फूल सूख रहे

तुम ही करुणा गाछ हो

जरा ठहर सुस्ताए जिंदगी

खुश मौसम का उवाच हो


दिन षड्यंत्र कर चलता बना

वह ढूंढ लिया जहां कांच हो

रात्रि बेला कर रही तैयारी

कब, कैसे उपद्रवी नाच हो


हे सांझ कुंवारी तुम ही कहो

कहां ऊर्जा संचयन खास हो

इधर-उधर जल रही आग है

बुझ जाए ऐसी कोई पांत हो।


धीरेन्द्र सिंह

23.08.2024

16.39




गुरुवार, 22 अगस्त 2024

अनबन

 कथ्य की कटोरी में भावनाओं की छलकन

समझ ना पाएं हो जाती है अजब अनबन


कथ्य एक प्रकार कथा, भावनाएं मनोव्यथा

कहनेवाला कहे यथा भावनाएं होती तथा

अभिव्यक्तियों के लहजा में होती लटकन

समझ ना पाए हो जाती है अजब अनबन


वार्ता में जब होते विषय विचार सोचे सुजय

शब्दों की दौड़ हो संपर्क तब बने अविजय

प्रवाह तंद्रा में कुछ शब्द अजूबे भी बनठन

समझ ना पाए हो जाती है अजब अनबन


चैट में तो चेहरा भी नहीं शब्द ही संसार

रोका न जाए तो भावनाओं की बहे धार

हास्य, किल्लोल, छेड़ना आदि के मनधन

समझ ना पाए हो जाती है अजब अनबन।


धीरेन्द्र सिंह

22.08.2024

19.41



बुधवार, 21 अगस्त 2024

मैसेंजर

 पहली बार जो देखा उनका फोटो

गाल गुलाल कमाल धमाल समान

मुग्धित मन सौंदर्य निरखते बहका

देने लगा नयन, अधर को सम्मान

 

चलते-चलते भाव फिसलते बहलते

श्रृंगारित शब्द लाया प्रणय अभिमान

सक्रिय छुवन अनुभूति चैट एकतरफा

उलझन क्या कहें सुजान या नादान

 

सावन के झूले सा शब्द लगा रहे पेंग

एकतरफा लेखन दूजी ओर संज्ञान

लेखन को रोका विवेक तब शांत हुए

मैसेंजर पर जमे हुए दुई विद्वान।

 

धीरेन्द्र सिंह

21.08.2024

11.35

मंगलवार, 20 अगस्त 2024

कुहूक

 तुम्हें जो सजा दूँ शब्दों से तुम्हारे

महकने लगेंगे वह सारे किनारे

जहां कामनाओं का उपवन सजा

प्रार्थना थी करती सांझ सकारे


एक संभावना हो दबाई कहीं तुम

कई भावनाएं मधुर तुम्हें हैं पुकारे

तुम्हें खोलने को खिल गईं कलियां

सूरज भी उगता है द्वार तुम्हारे


उठा लेखनी रच दो रचना नई

अभिव्यक्तियां भाव हरदम पुकारे

कल्पनाएं सजी ढलने को उत्सुक

प्रीति रीति साहित्य कुहूक उबारे।


धीरेन्द्र सिंह

20.08.2024

21.00


ज़िरह

 आपसे मिल नहीं सकता कभी

क्यों लग रहा सब हासिल है

बेमुरव्वत, बेअदब सिलसिला है

वो मग़रूर हम तो ग़ाफ़िल हैं

 

चंद बातों में खुल गए डैने

यूं लगे आसमां भी शामिल है

उड़ रहा तिलस्म का उठाए बोझा

दिल ही मुजरिम दिल मुवक्किल है

 

उनकी अदालत में डाल दी अर्जियां

अदालत ढूंढ रही कौन कातिल है

मुकर्रर का कुबूल है कह दिए उनको

ज़िरह में देखिए होता क्या हासिल है।

 

धीरेन्द्र सिंह

21.08.2024

14.04



सोमवार, 19 अगस्त 2024

प्रीति

 मन उलझा एक द्वार पहुंच

प्रीति भरी हो रही है बतियां

सांखल खटका द्वार खुलाऊँ

डर है जानें ना सब सखियां


बतरस में भावरस रहे बिहँसि

गति मति रचि सज रीतियाँ

नीतियों में रचि नवपल्लवन

सुसज्जित पुकारें मंज युक्तियां


देख रहे संस्कार पुकार मुखर

दिलचाह उछलकूद निर्मुक्तियाँ

या तो परम्परा की रूढ़ियों गहें

या वर्तमान गति की नियुक्तियां।


धीरेन्द्र सिंह

21.08.2024

12.10