शनिवार, 10 अगस्त 2024

आग लगे

 आग लगे व्यक्ति मरे अपनी बला से

निर्द्वन्द्व प्रेम करें अपनी ही कला से


हर तरफ निर्मित हैं नव लक्ष्मणरेखाएं

मुगलकालीन शौक से जीवन गुनगुनाएं

कुछ न बोलें कुछ न कहें इस हला से

निर्द्वन्द्व प्रेम करें अपनी ही कला से


खींच दी गई हैं लकीरें मध्य रच जाओ

निर्धारित मर्यादा न टूटे ध्यान लगाओ

नेतृत्व है भ्रमित या चाहें भाव गला के

निर्द्वन्द्व प्रेम करें अपनी ही कला से


चार्वाक सोच के कई उभरे अनुपालनकर्ता

विवाद या उलझन ना ही बस वैचारिक जर्दा

शौर्य, पराक्रम, वीर अनुगामी तबला के

निर्द्वद्व प्रेम करें अपनी ही कला से।


धीरेन्द्र सिंह

10.08.2024

18.54




राहुल आनंदा

 यह कैसा फंदा

राहुल आनंदा


बांग्लादेश के लोकप्रिय लोकगायक

लोकसंस्कृति के अच्छे कलानायक

वाद्य धुन मसल दंगा

राहुल आनंदा


आक्रमणकारी भी थे संगीत दीवाने

आपकी धुन पर गाए होंगे संग गाने

लोकसंगीत हतप्रभ शर्मिंदा

राहुल आनंदा


जब मरे होंगे मरा होगा लोकसंगीत

जातिवाद में भ्रमित होंगे सोचे जीत

लोकगीत जल लपट लंका

राहुल आनंदा


भारत के पड़ोसी यहभाव असंतोषी

मंदिर हिन्दू को रौंदे जो हैं नहीं दोषी

सर्वधर्म समभाव वंदना

राहुल आनंदा।


धीरेन्द्र सिंह

10.08.2024

17.11



शुक्रवार, 9 अगस्त 2024

अति बौद्धिक

 अति बौद्धिक होते हैं तार्किक तूफान

तर्क दौड़ाते है घिरता मध्यार्थी मचान


दौड़ना इनको न आता करते चहलकदमी

बचते-बचाते चलें कहीं हो न गलतफहमी

टंकार को झंकार समझाने के हैं विद्वान

तर्क दौड़ाते हैं घिरता मध्यार्थी मचान


इनका व्यक्तित्व कल्पनाओं को है सींचे

ओले पड़ने लगे तो जाएं खटिया नीचे

छुपकर सामना न करने का युक्ति ज्ञान

तर्क दौड़ाते हैं घिरता मध्यार्थी मचान


बौद्धिकता को यह कहते हैं सिरमौर

उद्दंड सिर फोड़ सकता करते न गौर

पुलिस, सेना आदि पास सुरक्षा विधान

तर्क दौड़ाते हैं घिरता मध्यार्थी मचान।


धीरेन्द्र सिंह

09.08.2024

13.23




गुरुवार, 8 अगस्त 2024

मुखौटा

 थक रही हृदय उमंगें, पसार दो

अंकुरित हैं भाव कई, संवार दो


यह समाज है बड़बोला, बड़दिखावा

यथार्थ संभव नहीं तो, करो दिखावा

प्रतिद्वंदियों का दे साथ, पछाड़ दो

अंकुरित हैं भाव कई, संवार दो


ज्ञान की छोड़ो, बस दबंगता रहे

साथ हो न कोई, समर्थन बहे

मुखौटा तुम अपना, उधार दो

अंकुरित हैं भाव कई, संवार दो


सत्य बीच, उन्मादित असत्य भीड़

असत्य की हुंकार, सत्य जलता नीड़

भीड़ उन्मादन, मंत्र वह खूंखार दो

अंकुरित हैं भाव कई, संवार दो।


धीरेन्द्र सिंह

08.08.2024

14.38


मंगलवार, 6 अगस्त 2024

ऐ रचनाकार

 व्यथा लिखे तो हो जाएगी कथा

यथा प्यार के नए भाव तू रचा


टीस पीड़ा की सामाजिक दलन

बकवास है, बता सिहरनी छुवन

सावन में पूजा पर श्रृंगार बता

यथा प्यार के नए भाव तू रचा


व्यक्तिगत जीवन में नई चुनौतियों

फिर क्यों पीड़ा व्यथा हो दर्मियाँ

दर्द भूलें मर्ज को देते हुए धता

यथा प्यार के नए भाव तू रचा


लेखन को लगता क्या लेखन महत्व

रचना में प्रेम, हास्य खोजे निजत्व

ऐ रचनाकार अन्य विधा न जता

यथा प्यार के नए भाव तू जता।


धीरेन्द्र सिंह

07.08.2024

10.31


घाव

 घाव है जख्म है, मूक हो जाएगा

समय एक दवा, सूख खो जाएगा


घाव जख्म जीवन के अटूट अंग

वेदना में सिमटी हर्षदायक तरंग

आज धूमिल कल धवल हो जाएगा

समय एक दवा, सूख खो जाएगा


टोह कर टोक कर कभी गोदकर

उन्मादी करते यूं जीवन का सफर

अयाचित हो वह भी संवर जाएगा

समय एक दवा, सूख खो जाएगा


पल्लवन की चाह में प्रयास उन्नयन

मस्तिष्क कुछ कहे अलग मन उपवन

हुड़दंगई को नया फांस लग जाएगा

समय एक दवा, सूख खो जाएगा।


धीरेन्द्र सिंह

07.08.2024

08.11




संभालिए

 कल की आदर्शवादिता दीखती कहां आज

दलदल में धंसता जा रहा संभालिए समाज


युवाशक्ति संग्रहित विद्यार्थी अनहोनी कर जाएं

नेतृत्व यदि चला गया उसका अंतर्वस्त्र लहराएं

यह कौन सी मर्दानगी पुरुषत्व का है मिजाज

दलदल में धंसता जा रहा संभालिए समाज


अधूरी अपूर्ण विद्यालयीन शिक्षकों का ज्ञान

धर्मावलंबियों का कैसे दबंग ऊंचा है मकान

देखिए छुपी शक्तियां विवेक को रहीं हैं माँज

दलदल में धंसता जा रहा संभालिए समाज


सकारात्मक के विपक्ष उभर रहीं नकारात्मकताएं

हवन करते पुजारी को आसुरी शक्तियां उलझाएं

आत्मिक रणदुदुम्भी से समाज को दे सही साज

दलदल में धंसते जा रहा संभालिए समाज।


धीरेन्द्र सिंह

06.08.2024

21.14