सोमवार, 15 जुलाई 2024

आप भी

 सौंदर्य का सृष्टि पर उपकार है

आप भी तो प्रकृति उपहार हैं


पुष्प रंग और सुगंध दंग कर रहे

पुलकित हृदय नए प्रबंध कर रहे

टहनी लचक कमनीयता झंकार है

आप भी तो प्रकृति उपहार हैं


बारिश बूंदे फूटे झरने मस्त फुहार

शीतल जल चरणों का करे दुलार

आप नयन से बरसें जैसे गुहार हैं

आप भी तो प्रकृति उपहार हैं


मन आपका वादियां आकर्षित जन

तन आपका शर्तिया व्योम का रहन

एक प्रतिरूप आप, कामना द्वार है

आप भी तो प्रकृति उपहार हैं।


धीरेन्द्र सिंह

16.07.2024

09.29




रविवार, 14 जुलाई 2024

उनकी अदाएं

 यह ना सोचिए कि हम बात नई करते हैं

उनकी अदाएं न कहे बात नहीं करते हैं


एक सुगबुगाहट,गुदगुदाहट की अनुभूतियां

ध्यान में डूब जाती हैं सब जग नीतियां

आपकी स्पंदनों से भाव छुईमुई करते हैं

उनकी अदाएं न कहे बात नहीं करते हैं


उनकी डीपी ही है उनका ज्ञात स्थूल रूप

भावनाओं की तारतम्यता में क्या स्वरूप

अलौकिन चेतनाओं में ही मीत उभरते हैं

उनकी अदाएं न कहे बात नहीं करते हैं


अति सूक्ष्म तरंगित होता है जीव प्यार

प्रत्यक्ष हो न हो अचेतन करता स्वीकार

प्यार की गहनता में शब्द सीप तरते हैं

उनकी अदाएं न कहे बात नहीं करते हैं।


धीरेन्द्र सिंह

15.07.2024

05.23

आवारगी

 मेरी आवारगी को हवा देती हैं

एक नौका को यूं वह खेती हैं


भावनाएं ही कल्पना की कृतियाँ

आप से ही जाना अर्चना रीतियाँ

आप तट लहर हर प्रहर संवेदी हैं

एक नौका को यूं वह खेती हैं


शब्द मिलते भाव की ले गिलौरी

चाह प्रत्यक्ष मिले यह कहां जरूरी

सुगंध भी कहाँ दर्शन देती है

एक नौका को यूं वह खेती है


आपकी भावनाओं के चलते चप्पू

आपकी अर्चना के हम हैं साधू

धूनी जलती है मन जगा देती है

एक नौका को यूं वह खेती है।


धीरेन्द्र सिंह

15.07.2024

05.00



शनिवार, 13 जुलाई 2024

उपवन

 विचारों के उपवन में मिलती हैं आप जब

सितारों सी अभिव्यक्तियां टिमटिमाती हैं

भावनाएं परखती हैं भावनाओं के नृत्य

जाने-अनजाने नई कविता रच जाती है


यूं ही अनायास उठे आपका वही सुवास

सर्जना सुगंध पा मचल कुलमुलाती है

आपके नयन के पलक छुपे भाव खिले

शब्द बारात लिए भावना आतिशबाजी है


कहन जतन श्रृंगार आपका ही उपहार

सौंदर्य भाव पट खोल खूब इतराती है

सच कहूँ आप ही निज रचना प्रताप

सर्जना आपके प्रणय की एक बाती हैं।


धीरेन्द्र सिंह

13.07.2024

13.36

दृग पनघट

 पनघट दृग अंजन अनुरागी

सहमत दृढ़ पलक अतिभागी

नीर प्रवाह झलक प्रथम हो

सुख-दुख का भी प्रतिभागी


नयन भाव अति सत्य प्रवक्ता

पनघट जुड़ाव रचि नित्यभागी

धवल-श्याम नित भाव प्रतिपल

निज व्यक्तित्व अटूट संभागी


मनफुहार दृग झंकार झुमाए

पनघट भाव प्रबल विज्ञानी

नयनों में झांकें बन चातक

पनघट स्वाति नक्षत्र का पानी।


धीरेन्द्र सिंह

13.07.2024

13.00



गुरुवार, 11 जुलाई 2024

बारिश का मौसम

 कहीं कुछ है भींगा जतन कीजिए

है बारिश का मौसम यतन कीजिए

 

आज बादल है बरसा तो उभरी बूंदे

घटा घनघोर तरसी उठी हैं उम्मीदें

भींगना है या छुपना मनन कीजिए

है बारिश का मौसम यतन कीजिए

 

मेघ गर्जन बूंद नर्तन निखरती विधाएं

सज उठी प्रकृति खिल बिहँसती जगाए

सजाऊँ कहें तो ना दमन कीजिए

है बारिश का मौसम यतन कीजिए

 

यह शीतल पवन खिला मन उपवन

बूंदें जितनी प्रबल उतना मन दहन

आग में न जल जाऊं शमन कीजिए

है बारिश का मौसम यतन कीजिए।

 

धीरेन्द्र सिंह

12.07.2024

09.40



मंगलवार, 9 जुलाई 2024

सुन न

 तुम न, पुष्प में तीर का अदब रखती हो

सुन न, सुप्त के धीर सा गजब करती हो

 

आत्मसंवेदना एकाकार हो स्वीकार करने लगें

आत्मवंचना द्वैताकार को अभिसार करने लगे

धुन न, विलुप्त सी प्राचीर जद बिहँसती हो

सुन न, सुप्त के धीर से गजब करती हो

 

आप, तुम, तू आदि शब्द भाव प्रणय संयोजन

संबोधन है पुचकारता हो उत्सवी नव आयोजन

गुन न, गुणवत्ता में कितनी और निखरती हो

सुन न, सुप्त के धीर में गजब करती हो

 

तू शब्द प्यार में संबोधन गहन रचे मदभार

तू संबोधित ईश्वर असहनीय हो अत्याचार

बुन न, प्रीत चदरिया जिसमें रश्मि बिखरती हो

सुन न, सुप्त के धीर में गजब करती हो।

 

धीरेन्द्र सिंह

11.07.2024

06.30