धरा की धमनियों में कितना रिसाव
माटी से पूँछें तो जल तक पहुंचाए
भू खनन, वृक्ष गमन, निर्मित अट्टलिकाएँ
एक अक्षत ऊर्जा सभी मिल भुनाएं
पर्वतों को तोड़े प्रगति कर धमाके
कंपन का क्रंदन कौन सुन पाए
सुनामी के लोभी रचयिता कहीं
जलतट पाट कर भवन ही बनाएं
धर रहा धरा को धुन लिए कहकहा
हरित संपदा, पेय जल कहां पाए
सूख रहे कुएं, नदी तेज गति से
मटकियां झुलस रहीं बोतल को धाए
हिमालय भी पिघल करे प्रकट रोष
गंगा की भक्ति आरती नित सजाए
अर्चनाएं आक्रांता की सद्बुद्धि उचारें
धरती की धार चलें मिल चमकाएं।
धीरेन्द्र सिंह
14.03.23
15.23