निज़ता
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ताअभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई हैदिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017
शब्द सहमत नहीं
भावनाएं ढल रहीं
खयाल उनका है ऐसा
लचक कहीं बल कहीं
घनेरे बादलों से घिरा
लगे आसमां चपल नहीं
बिजलियाँ चमक रहीं
लगे क्यों धवल नहीं
यादें ऐसे ही तड़पायें
तन में हलचल नहीं
यह स्थिरता है अजब
स्पंदन पल-पल कहीं
अभिव्यक्तियाँ मस्तियाँ बनी
सम्प्रेषण में कलकल नहीं
एक आकर्षण सहज सा
प्रिये जहां मन भी वहीं।
मैं भी तो किसी जिस्म की फरियाद हूँ
कल्पनाओं में अभी तक अविजित नाबाद हूँ
ज़िन्दगी को जिस तरह जिलाओ जी लेती है
मैं भी तो किसी खयालों का प्यारा आफताब हूँ
कहीं कभी तो किसी को छू लेगा मन मेरा भी
चूनर की चुनहटों में फुसफुसाती एक आवाज हूँ
मन मयूर की तरह फैलाए है पंख ऐ जहां
जहां में मेरी भी जन्नत जहां मैं लाजवाब हूँ
मेरी प्रिये मन में जिये कुछ फलसफे लिए
मैं आवारगी के चमन का दिलफेंक आदाब हूँ।
शनिवार, 11 मार्च 2017
रंग-रंग परिवेश है, लेकर अपनी आस
चाहत चठख रंग तलाशे, अपनी-अपनी प्यास
फागुन आया लिए फुहारें, तन-मन हर्षाए
नयन-नयन पिचकारी, ढूंढे कोई ख़ास
कान्हा-कान्हा पुरुष बने, नारी राधा हिय साथ
अर्पित मन अकुलाय के, मांगे प्रीत विश्वास
अबीर-गुलाल कमाल किए, हिय से हिय छुए
हर्ष-विषाद सब रंग हुए, बन एक दूजे के ख़ास
विपुल संपदा, व्यापक संस्कृति, जग पाए गति
रंग बिखेरें छटाएं और फागुन भारत उल्लास
सभी भाव मुखरित हों, सब के माफिक रंग
समरसता की होली यह मन में लाए मधुमास
फागुन एक त्यौहार नहीं जीवन का रसधार
रंग लगाकर हर्षित हो मन स्नेह का अहसास
इन शब्दों में भर रंगों को आप को शुभ होली
अल्हड़, अलमस्त, अलहदा फागुन का है मास।
शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017
ताश के पत्तों की तरह फेंट रहा दिल
कोशिश यही कि जाएं खूब हिलमिल
दिल का मिलना है जैसे सूर्यमुखी खिलना
और फिर चहक उठें दिल दो खिल-खिल
सब प्यार की चादर से दुआ प्रीत की मांगें
अरमान दिल में संग मीत को लिए भागें
छू न सके छाया, माया, प्रतिकाया कातिल
चाहत के धागों से जो सजी चुनरी झिलमिल
परिचय में प्रस्फुटित एक नया मचान है
नयनों में अंकित प्रेम का फरमान है
तरल भावनाएं उमंगित रही तलाश साहिल
परिचय भी हो गहरा यूँ तो चाहे नई मंजिल
खयालों में शब्दों में सब समेट रहा हूँ
उत्साह लिए दिल को नित फेंट रहा हूँ
एक शबनमी सुबह से मिले रश्मियाँ खुशदिल
क्या बात रहे फिर जो जवां दिल जाएँ मिल।
गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017
स्मिति की परिधि में उल्लास तुम्हारा
एक शक्ति पुंज का मिल गया है सहारा
मैं भ्रमर सा यायावर पुष्प डाल का
एक डाल ज़िन्दगी का बन गयी है नज़ारा
स्पंदन, शीतल चन्दन, भाव में वंदन
जिस क्षण हम मिले उस पल का अभिनन्दन
कश्ती को लहरों का मिला है सहारा
सागर की हुंकारों में है नाम तुम्हारा
उलझी ना डगर है पर पेंच मगर है
कुछ दूरियां कुछ व्यस्तताओं का समर है
धड़कनों को अनवरत तुम्हारे नाम का सहारा
तुम विश्व हो और अभिसार का चौबारा
पल्लवित, पुष्पित तुम्हारी हर क्यारी है
ह्रदय में विभिन्न छटाएं ही तुम्हारी हैं
अनुभूतियों ने क्षण को निखारा है संवारा
स्मिति की परिधि में विश्वास का नजारा।
रविवार, 19 अप्रैल 2015
तुम हो मेरे साथ तो
ज़िंदगी की कैसी यह चाल है
ऊबड़ खाबड़ अनचीन्ही टाल है
मंद है तो द्वंद है कभी अति प्रचंड
तुम हो मेरे साथ तो एक ताल है
सागर के थपेड़ों का था एक खौफ
जीवन प्रवाह में तो कई कमाल है
शीर्ष पर आसीन भूमि पर गिरे
वर्चस्वता के लिए वर्चस्व का अकाल है
तुम ना होती साथ तो होता क्या
हर कदम पर चुनौतियों का द्वारपाल है
तुम हो शृंगारपूरित या कि शक्तिस्वरूपा
तुमसे ही उन्नत यह भाल है
नर नारी का सम्मिश्रण सफल जीवन
एक अकेला तो महज एक काल है
नारी है आधार जीवन महल का सशक्त
नर तो सामाजिक सक्रिय चौपाल है।
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
ऊबड़ खाबड़ अनचीन्ही टाल है
मंद है तो द्वंद है कभी अति प्रचंड
तुम हो मेरे साथ तो एक ताल है
सागर के थपेड़ों का था एक खौफ
जीवन प्रवाह में तो कई कमाल है
शीर्ष पर आसीन भूमि पर गिरे
वर्चस्वता के लिए वर्चस्व का अकाल है
तुम ना होती साथ तो होता क्या
हर कदम पर चुनौतियों का द्वारपाल है
तुम हो शृंगारपूरित या कि शक्तिस्वरूपा
तुमसे ही उन्नत यह भाल है
नर नारी का सम्मिश्रण सफल जीवन
एक अकेला तो महज एक काल है
नारी है आधार जीवन महल का सशक्त
नर तो सामाजिक सक्रिय चौपाल है।
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
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