गुरुवार, 31 जुलाई 2025

धर्माचार्य

 वासना से जुड़कर अब चर्चा चरित्र हो गयी

दो धर्माचार्य की टिप्पणियां पवित्र हो गयी


सृष्टि के आरंभ से पनपती रही हैं कामनाएं

वृष्टि आर्थिक विकास की बलवती वासनाएं

नई परिभाषाएं भाव चरित्र में विचित्र बो गईं

दो धर्माचार्यों की टिप्पणियां पवित्र हो गयी


देह की दालान से जुड़ा पवित्रता का मचान

धर्मग्रंथों में है उल्लिखित पवित्रता का विधान

कर्म कहीं दब गया देह छोड़ पवित्र लौ गयी

दो धर्माचार्यों की टिप्पणियां पवित्र हो गयी


नारी शोषण है नारी देह की रचित शुद्धता

पुरुष दबंगता से रही लड़ती नारी निहत्था

विकसित बौद्धिक समाज प्रज्ञा कौंध गयी

दो धर्माचार्यों की टिप्पणियां पवित्र हो गयी


यह न राजनीति और ना बात विवादास्पद

मानवीय समाज और परिवार उत्पादक

वैवाहिक संस्था रही टूट प्रथा कैसी हो गयी

दो धर्माचार्यों की टिप्पणियां पवित्र हो गयी।


धीरेन्द्र सिंह

01.08.2025

10.54

न्यायालय

 तत्व छूट जाता सत्य रहता लड़खड़ाता

न्यायालय कथ्य उबाल तथ्य न ले आता


सत्ता और शक्ति में संभव है असंतुलन

नागरिकता ज्वलंत न तो संभव है दलन

आत्मा विचलित को विधि बांध न पाता

न्यायालय कथ्य उबाल तथ्य न ले आता


आदर्श, सिद्धांत, नैतिकता लगे तकिया

यह दुखद ऐसी समाज में चर्चित बतियां

मानवता के मूल्यों में कांध न लग पाता

न्यायालय कथ्य उबाल तथ्य न ले आता


गरजकर बरसकर दमभर सबका है सफर

राह अपनी चाह अपनी अन्य कुछ बेकदर

कृत्रिम जीवन संस्कृति को दीमक चाट छाता

न्यायालय कथ्य उबाल तथ्य न ले आता।


धीरेन्द्र सिंह

31.07.2025

19.25



बुधवार, 30 जुलाई 2025

रीता है

 सब लोग कहें कुशल-मंगल सब बीता है

कौन जाने किसके जीवन में क्या रीता है


सभी प्रयास सभी सावधानियां नियमावली

बढ़ते कदम अथक पर घुमाती रही वही गली

कभी कर्म कभी भाग्य कहीं प्रारब्ध लीला है

कौन जाने किसके जीवन में क्या रीता है


कर्म के मर्म को समझ धर्म निरखें नर्म-गर्म

भाग्य के भाष्य में साक्ष्य के पथ्य पार्श्व कर्म

कर्मवाद भाग्यवाद बहुविवाद कौन जीता है

कौन जाने किसके जीवन में क्या रीता है


हर व्यक्ति कर भक्ति किसी नशे से कर आसक्ति

शालीन कोई अशालीन नशे से चाहे दर्द मुक्ति

शिष्ट और अशिष्ट व्यक्ति परिस्थितियों का छींटा है

कौन जाने किसके जीवन में  क्या रीता है।


धीरेन्द्र सिंह

30.07.2025

21.18


मंगलवार, 29 जुलाई 2025

भूंरी पत्ती

हवा के झोंके से आ गयी चिपक

भूंरी सी कम नमी वाली वह पत्ती

चिहुंक मन जा जुड़ा वहीं पर फिर

जहां जलती ही रहती भाव अगरबत्ती


थोड़ी कोमल थोड़ी खुरदुरी सी लगे

उम्र भी हो गयी देह की अपनी सूक्ति

हल्की खड़खड़ाहट से बोलना चाहे

मुझको छूते चिकोटी काटते भूंरी पत्ती


खयाल भी अकड़ जाते हल्के से जैसे

हवा संग दौड़ती-भागती यह भूंरी पत्ती

कभी लगता वही कोमलता सिहरन वही

अब सब ठीक लगे भटका दी भूंरी पत्ती


अचानक उड़ गई झोंका हवा का था तेज

रोकना, पकड़ना चाहा हवा से करते आपत्ति

कितनी गहराई से हम मिले वर्षों बाद जी

कहीं खोती ने दिल की हो गयी संपत्ति।


धीरेन्द्र सिंह

30.07.2025

08.55 

सोमवार, 28 जुलाई 2025

अविरल

 हरे पत्ते पर तैरता दीया

लय में बहती लहरें मंथर

भाव मेरे दीपक मान लो

और तुम लहरों सी निरंतर


समय हवा सा बहते जाता

दीया की लौ लचक धुरंधर

आस्था का गुंजन आह्लादित

तुम लगती हो कोई मंतर


लहरें खींचे और दीया बढ़े

लहर स्वभाव में गति अंतर

लौ की लपक चाहे कहना

लहर उचकती पढ़ने जंतर


दीया में है लौ जिया

लहरों में रही तृष्णा फहर

जीवन प्रवाह अविरल कलकल

चाहें भी तो ना पाएं ठहर।


धीरेन्द्र सिंह

29.07.2025

09.53





रविवार, 27 जुलाई 2025

ज्योति कालरा

 उम्र वरिष्ठता की सोच धर्म अब आसरा

53 वर्ष में करती हैं मुग्ध ज्योति कालरा

न तो उम्र छुपातीं न रंग बाल हैं छकाती

स्वयं पर ध्यान विशिष्ट स्वाभाविक माजरा


किसी व्यक्ति पर लिखना मतलब श्रेष्ठ है

उम्र की वरिष्ठता में आकर्षण ला धरा

सहज, स्वाभाविक नारी की अदाएं लिए

जीवन को जी रहीं कर पहल स्वभरा


नृत्य में निपुणता अभिव्यक्ति की भरमार

उम्र कुछ नहीं होता कहें विचारिए परंपरा

आज ही कुल चार वीडियो जो देखा तो

वरिष्ठों की बदलती सोच हैं ज्योति कालरा


गरिमा भी है गहनता भी और शोखियाँ

आसक्ति स्वयं पर अभिव्यक्ति भाव भरा

क्या खूब एक जीवंत वरिष्ठ पतंग सी लगें

मोहिनी हैं, आसक्त असंख्य ज्योति कालरा।


धीरेन्द्र सिंह

27.07.2025

13.27

शनिवार, 26 जुलाई 2025

हिंदी अज्ञानी

 अपशब्द कहिए हिंदी साहित्यकारों को

हिंदी में नया सार्थक करना कठिन है

गुटबंदी, चाटुकारिता विभिन्न विशेषण

सत्तर के दशक से हिंदी के यही दिन है


हिंदी और उर्दू को सगी बहन रहिए कहते

हिंदी की लिपि हिंदी के लगे दुर्दिन है

ना मंच मिला ना ही उद्घोषणा अवसर

अब हिंदी अंग्रेजी मिश्रित ताकधीन हैं


न्यायालयों और थाने की भाषा रही उर्दू

हिंदी उपेक्षा सतत हाशिए की गाभिन है

सभ्यता और संस्कृति से सीधे जुड़ी भाषा

वर्तमान में हिंदी कुछ राज्य में दीन है


हिंदी साहित्य का इतिहास चिंतन प्रथम

भारतीय संविधान राजभाषा नीति साथिन है

पाठ्यपुस्तकों की हिंदी की गुणवत्ता देखिए

चुनौतियां बहुत पर हिंदी किस अधीन है


वर्षों सीधे हिंदी प्रयोग से जो हैं जुडें

वह कर्म करते आरोपों के ना भिन-भिन हैं

अपनी योग्यता से हिंदी को समर्थित करें

अधूरे हिंदी ज्ञानियों की गूंजती धुन है।


धीरेन्द्र सिंह

26.07.2025

23.55

घूंघट

 बौद्धिकता में निहित नव हर्षिता

मनुष्यता का मुकुट है पारदर्शिता

बुद्धिमत्ता से संबंधों में भी घूंघट

विरले ही खुलकर जीते अर्पिता


स्पष्ट प्रदर्शन स्वयं की निमित्तता

क्लिष्ट जीवन क्यों क्या रिक्तिता

साफ-साफ कह दे वह ना मुहंफट

जितना स्वयं को खोलें उन्मुक्तता


दुनियादारी में पर्देदारी है कायरता

जैसा हैं वैसा दिखाएं स्व दग्धता

क्या मिलेगा जीवन में लेते करवट

चतुराई स्व से गैरों को न फर्क पड़ता


धर्म के बड़बोले धर्म की आतुरता

कर्म का दिखावा सोच में निठुरता

बहुसंख्यक घूंघट में बेसुरे खटपट

जैसा हो वैसा कहो स्व में मधुरता।


धीरेन्द्र सिंह

26.07.2025

15.20


शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

क्षमायाचना

 कड़वाहट भरे शब्द से दिया धिक्कार

"समय नहीं मिला" था उनका प्रतिकार

लंबा लिख अंग्रेजी में हम कुपित हो गए

"सॉरी" अंग्रेजी में लिख वह चुप हो गए


बैठा था अंधड़ था लड़खड़ाते कई विचार

"खेद पहुंचाना उद्देश्य न था" आंग्ल विचार

मेरे समर्पण मेरी गहनता से क्यों खेल गए

"एक्सीडेंट कल हुआ था" सहज बोल गए


यह नारी किस क्यारी की निर्मित प्रकार

समझें भी तो कैसे युग करता रहा विचार

मेरी उग्रता का वह गहन शमन कर गए

कुछ शब्द नहीं निकला ऐसे वह ढह गए


एक पीड़ा भाव क्रीड़ा सांस पश्चाताप हुंकार

नारीत्व विशालता समक्ष पुरुषत्व लगे कचनार

ईश्वर से प्रार्थना उन्हें कर स्वस्थ करें नए

करबद्ध क्षमायाचना हम यह क्या कर गए।


धीरेन्द्र सिंह

25.07.2025

14.44

गुरुवार, 24 जुलाई 2025

उलाहना

 "भूल गए लगता"

पढ़ क्या कहता

व्यस्तता कारण नहीं

प्यार रहता हंसता


लिख रहा आध्यात्मिक

चिंतन वहीं रहता

ऐसा यदि बोलूं

प्यार क्यों करता


चूके जाएं चपड़ियाएँ

कौन है सहता

चाहत बन चकोर

मेरा संदेश तकता


शालीन सी शिकायत

शंखनाद सा विचरता

समर्पण ही साध्य

प्यार ऐसे निखरता


वह रहें शांत

उनका संदेश धीरता

पहल नहीं करतीं

भाव चटपटा बिखरता।


धीरेन्द्र सिंह

24.07.2025

18.41



बुधवार, 23 जुलाई 2025

साहित्य

 एक शब्द

ओढ़े हुए

अर्थ का वस्त्र,

ढूंढ रहा था

उपयुक्त भाव,


एक भाव

अभिव्यक्ति का

असर मिले

ढूंढ रहा था 

उपयुक्त शब्द,


संप्रेषण

टेबल पर

रखी चाय का

उड़ता महकता

वाष्प,


रचयिता

तल्लीनता से

रच रहा था

नव रचना

करता समृद्ध साहित्य,


साहित्य

पाठक मन में उड़ता

पुस्तकों में घुमड़ता

सितारों की तरह

टिमटिमा रहा है।


धीरेन्द्र सिंह

23.07.2025

19.13



मंगलवार, 22 जुलाई 2025

आत्मपैठ

मुझे मजबूर करती है मोहब्बत तुम्हारी

कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी


प्रणय के पल्लवन पर है तुम्हारी चंचलता

हृदय तुमको सराहा है लिए व्याकुलता

हृदय कहता है तुम ही हो नमन दुलारी

कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी


मुझे मालूम हैं समवेत सामाजिक चपलता

मेरी आत्मा करे प्रसारित निज धवलता

मोहब्बत कुछ नहीं कुछ चाहतों की तैयारी

कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी


वही फिर ठौर अपना वही उभरे चंचलता

दिलफेंक हूँ जो प्यार पर अक्सर लिखता 

आध्यात्मिक यात्रा में आत्मपैठ की खुमारी

कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी।


धीरेन्द्र सिंह

23.07.2025

08.31




शनिवार, 19 जुलाई 2025

रिश्ते

चेहरे प्रसन्न दिखें अंतर्मन रहे सिसकते

तार-तार हो गए पर हैं तार से अब रिश्ते


मोबाइल से बात है कम खुशी या गम

उड़ रहा है उड़ता जा देखते हैं अब दम

एक चुनौती प्रतियोगिता सब अंदर रिसते

तार-तार हो गए पर हैं तार से अब रिश्ते


दोनों छोर तार की पकड़ जर्जर ले अकड़

एक बैठा देखते कब दूजा चाहे ले पकड़

मानसिक द्वंद्व है ललक मंद है खिसकते

तार-तार हो गए पर हैं तार से अब रिश्ते


इलेक्ट्रॉनिक सुविधाओं में घुल रहे संबंध

खानदानी समरसता जैसे भटका विहंग

अविश्वासीआंच पर संबंध जलते सिंकते

तार-तार हो गए पर हैं तार से अब रिश्ते।


धीरेन्द्र सिंह

19.07.2025

19.44




शुक्रवार, 18 जुलाई 2025

दीजिए

 उचित अब यही रुचि ज्ञान दीजिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए


उचित अब यही है रुचि ज्ञान दीजिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए


प्रत्येक में कुछ श्रेष्ठता और विशिष्टता

हर एक की अलग पहल तौर श्रेष्ठता

समाज न हो विचलित ध्यान दीजिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए


दिल के कमरे में नित व्यग्र चहलकदमी

मस्तिष्क है घिरा होकर तिक्त अग्र वहमी

संताप है पदचाप बन आघात नचनिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए


एक दिया लौ से जले अनेक दिया लौ

मानवता भ्रमित हो आपके रहते क्यों

आप में अपार शक्ति व्यक्ति मान भजिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए।


धीरेन्द्र सिंह

19.07.2025

03.50

बुधवार, 16 जुलाई 2025

सत्य

 सत्य को पसंद कर्म की अर्चना है

स्वयं की अभिव्यक्ति ही सर्जना है

आत्मद्वंद्व प्रत्येक प्राणी स्वभाव भी

सहजता क्रिया में आत्म विवेचना है


अभिव्यक्तियों की हैं विभिन्न कलाएं

प्रत्येक कला प्रथम आत्म वंदना है

अभिव्यक्ति को बांध जीता है जो भी

क्या करे मनुष्य वह सही संग ना है


खुलने के लिए खिलना प्रथम चरण

खिल ना सके मन जीवन व्यंजना है

मुरझाए पुष्प लिए झूमती टहनियां हैं

सब जीते हैं कहते जीवन तंग ना है


एक दृष्टि से सृष्टि को न देखा जा सके

विभिन्नता ही भव्य जीवन अंगना है

स्वयं को निहारना मुग्ध मन से जो हो

समझिए जीवन घेरे सूर्यरश्मि कंगना है।


धीरेन्द्र सिंह

17.07.2025

10.39




तीन चरवाहे

 चेतना के चाहत के तीन चरवाहे

तीनों में होड़ लगी कौन आगे भागे


मनसा, वाचा, कर्मणा ही तीन प्रमुख

धरती, आकाश, पाताल जीव सम्मुख

इन तीनों में संतुलन बौद्धिकता मांगे

तीनों में होड़ लगी कौन आगे भागे


यश, कीर्ति, तीर्थ में निमग्न चेतनाएं

काम, क्रोध, मोह से मुक्ति को धाएं

अभिलाषाएं तुष्ट लगें या मन में पागें

तीनों में होड़ लगी कौन आगे भागे


काव्य, कथा, संस्मरण के सब शरण

लेखन की होड़ में गुणवत्ता का क्षरण

साहित्य सुजानता से खुले हिंदी भागे

तीनों में होड़ लगी कौन आगे भागे।


धीरेन्द्र सिंह

16.07.2025

17.53



मंगलवार, 15 जुलाई 2025

किसलिए

 हो आधा-आधा किसलिए

जरूरत से ज्यादा किसलिए

आपकी जागीर कब तलक

यह शान लबादा किसलिए


हर हलक में अनबुझी प्यास

सांस का इरादा किसलिए

जब तलक चल रहे है पांव 

थकन है पुकारा किसलिए


अपने-अपने हैं युद्ध सभी के

युद्धभूमि एक गवारा किसलिए

शस्त्र कभी शास्त्र लगते खास

रणकौशल वही सहारा किसलिए


चर्चा न हो समीक्षा भी नहीं

ऐसा व्यक्ति बेचारा किसलिए

अपनी धुन में जी रहे जितने

सोचे छोड़ा या दुलारा किसलिए।


धीरेन्द्र सिंह

15.07.2025

19.45







रविवार, 13 जुलाई 2025

अज्ञानी

 क्या सत्य लूट लेगा क्या धर्म की गहनता

यह मन बड़ा है छलिया मानव की सघनता

कर्म प्रचुर दूषित विचारों में भी नहीं दृढ़ता

व्यक्तित्व उलझा सा रह-रहकर है उफनता


बस स्वार्थ की ही दृष्टि अपनी जैसी हो सृष्टि

सभ्य, संस्कारी समझ खुद अन्य पर बरसता

ऐसे कई हैं लोग अभी सामान्य, नामी-गिरामी

न सोच का आधार जिसने सींचा वैसे बरसता


सब कुछ बदल रहा पर ऐसे लोग नहीं बदलते

जहां भी बैठे हैं वह परिवेश घुटन से कहरता

नई सोचवाला कर्म संग जुड़ा है अपनी माटी से

एक दृष्टांत नया हो अपने सत्य लिए फहरता।


धीरेन्द्र सिंह

14.07.2025

09.50


प्यार न तर्क

 प्यार करने को जी चाहे पर एज फर्क

उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क


बिन रिश्ते का यह बन जाता है रिश्ता

बन जाता रिश्ता तो प्यार हैं सिंकता

कौन भला है सोचता प्यार भी खुदगर्ज

उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क


बातें अगर सुहाती हों भाव भरे उत्कर्ष

चैट करते समय शब्द-शब्द खिलें सहर्ष

फिर चाहत में स्थान कहां पा जाता कुतर्क

उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क


कविता थी मेरी या थे मेरे काव्य विचार

मनोयोग से किया उन्होंने भाव सभी स्वीकार

कब कोई भा जाए कैसे बिना किसी शर्त

उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क।


धीरेन्द्र सिंह

13.07.2025

19.38





शनिवार, 12 जुलाई 2025

पहली बारिश

 जब पहली बारिश की बूंद मेरे चेहरे से टकराई

हवा महक दौड़ी सरपट भर अंग सुगंध अमराई

पहली छुवन तुम्हारी चमकी शरमाती सी घबड़ाई

बारिश प्यार का मौसम लगता नयन भरी चतुराई


चेहरा चिहुंक उठा यह कैसा गज़ब छुवन आभास

बूंद ठहर पल सरकी मृदु कोमल बोली ना दो दुहाई

सावन का यह अल्लहड़पन है पहली झमक बरसात

बदली डोली धरती बोली लो खिली प्रकृति अंगड़ाई


जब गहरे भावों से नयन तके मेरे चेहरे को अपलक

तब लगे बूंद टप्प गाल गूंजकर रोम-रोम सहलाई

तुम मिलती हो छा जाती घटा भाव बदलियां घनेरी

बारिश तो बस एक प्रतीक है तो मेरी सावनी दुहाई।


धीरेन्द्र सिंह

13.07.2025

08.57



लोकप्रियता

 यह लोकप्रियता यह साख यह प्रसिद्धियाँ

यह सक्रियता यह लाभ यह युक्तियाँ

कर्म का है पक्ष जिसको नकारना कठिन

व्योम में गुजर रही हैं असंख्य सूक्तियाँ


सद्प्रयास कुप्रयास दोनों की ही दौड़ बड़ी

व्यक्ति है दबा उलझा लिए मन नियुक्तियां

एक पहचान विधान बढ़ाए निज गुमान

शक्ति के मुक्ति की संयुक्त मन रिक्तियां


लक्ष्य की गंभीरता जड़ों की ओर खींचे

प्रशस्ति की गूंज बीच ख्याति अठखेलियाँ

कर्म है भ्रमित मूल ऊर्जा लगे शमित

धर्म के अध्याय में प्रचलित लोकोक्तियाँ


ए आई ऊपर से समेट रहा सृष्टि सजग

प्रौद्योगिकी प्रगति से चढ़ी व्यक्ति भृकुटियां

बुलबुले की ख्याति खातिर के प्रयत्नशील

प्रतिभा खंडित हो यूं बंटी बन टुकड़ियाँ।


धीरेन्द्र सिंह

12.07.2025

13.47




शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

नैतिकता

 आदर्श

अंतर्मन का संग्रहित

सत्य

सिद्धांत

समय के ठोकरों से

निर्मित अनुभव

नैतिकता

सामाजिक संचालन का

अधिसंख्य सीकृति रूप,

ऐसे में डोलता है, कांपता है

उछलता है दिल

और चाहता है

अपने सोच अनुरूप

आदर्श, सिद्धांत, नैतिकता;


ऐसे लोग जो नहीं समझ पाते

साहित्य की विभिन्न विधाएं

जो नहीं कर पाते विश्लेषण

देह-आत्मा-परमात्मा और

लोक-परलोक का

उन्हें अश्लील लगती है रचनाएं

आए वह मौन रहते हैं

खिलखिलाती रचना

साहित्य तुरही संग 

रहती है मुस्कराती,


आत्मा और परमात्मा की

बात करनेवाले लोग

देह को समझते हैं हेय,

आश्चर्य होता है कि

अनेक समूह छोड़

साहित्य मंथन

नैतिकता का पाठ

पढ़ा रहे हैं,


साहित्य ऐसे समूह में

घुट रहा है,

बौद्धिक लेखन अनजानेपन,

अज्ञानता 

साहित्यिक संभावना को

लूट रहा हैं।


धीरेन्द्र सिंह

11.07.2025

20.07



मंगलवार, 8 जुलाई 2025

न जाने कब

 सोशल मीडिया

खत्म करे दूरियां

न जाने कब

परिचित लगने लगता है

एक अनजाना नाम

एक अनचीन्हा चेहरा

और बन जाता है

प्यार का धाम,


शब्द लेखन से

होती अभिव्यक्तियाँ

करती हैं

नव अनुभूति नियुक्तियां

मन होने लगता है

जागृत और सचेत,

होता है अंकुरित प्यार

दूरियों के मध्य,

रहते दोनों सभ्य,


बदलते परिवेश में

बदल रही सभ्यता

कुछ संस्कार

उत्सवी त्यौहार

और

मानवीय प्यार

ढंपी-छुपी चौखट

खुला हुआ द्वार

बदलने को आमादा

दीवारों की टूटन8

और

टूटता मन।


धीरेन्द्र सिंह

11.07.20२5

06.21





जनक

 तुम भावनाओं की जनक हो

तुम कविताओं की सनक हो

तुम व्याप्त सभी रचनाकारों में

तुम लिए साहित्य की खनक हो


आप संबोधन लिख न सका, चाहा

"तुम में" अपनापन की दमक हो

याद बहुत आ रही, झकोरा बन

तुम रचना पल्लवन की महक हो


जो रच पाता, सज पाता वह तुम

जग गाता वह गीत ललक हो

रचनाकार की तुम्हीं कल्पनाशक्ति

शब्दों की गुंजित मनमीत चहक हो।


धीरेन्द्र सिंह

09.07.2025

09.29






चैटिंग

 चैटिंग करते-करते

जब तुम बिन बोले

भाग जाती हो, तो

थम जाता हूँ मैं,

तुम्हारे भागने से

नहीं होती है हैरानी

तुम्हारी अदा है यह,


समेट लेता हूँ

सभी शब्द चैटिंग के

और करता हूँ गहन

विश्लेषण उनका कि

किस वाक्य ने तुम्हें

दौड़ने पर विवश किया

और किस शब्द से

लजा, घबड़ा भाग गई,


बन जाती है

एक कविता और

इस तरह

अक्सर तुम

भावनाओं से गुजर

चैटिंग के शब्दों को

दे जाती हो

भाव दीप्ति।


धीरेन्द्र सिंह

09.07.2025

23.25





सोमवार, 7 जुलाई 2025

जब भी

 जब भी

देखता हूँ आपका फोटो

उभरती है

एक नई कथा जिसमें

उल्लास की

परत दर परत रहती है

छिपी कोई व्यथा

इसीलिए फोटो

करते रहता है

मुझसे बातें, यह बोलते

क्या छुपाएं, क्या बांटे,


नहीं देखता मैं

रूप का सौंदर्य और

नहीं रचता कोई रचना

आपकी फोटो पर

बस मैं पढ़ता हूँ नित

एक नया अध्याय

है मेरे व्यक्तित्व का स्वभाव,


अपने लेखन में

दबा जाती हैं जो भाव

बोल देते हैं फोटो

सहजता से,

बीत जाता है दिन

सहजता से,


गज़ब का प्रभाव

छोड़ जाती है

दुनियादारी के झंझावात से

ताकती, बातें करती

मुस्कराहट।


धीरेन्द्र सिंह

08.07.2025

07.08


रविवार, 6 जुलाई 2025

मन

 मन अगन लगन का गगन

मन दहन सहन का बदन


प्रतिपल अनंत  की ओर उड़े

प्रति नयन गहन रचे तपोवन

प्रतिभाव निभाव का आश्वासन

प्रतिचाह सघन का रचे सहन


मन हर चाह को है अर्पण

मन हर आह का करे मनन

मन चाहे मन में डूबना हर्षित

मन संग व्यक्ति बहे बन पवन


मन मुग्धित होकर कहे मनभावन

मन समझे ना यह पुकार लगन

मन मेरा लिए आपका मन भी

दें अनुमति मन करे मन आचमन।


धीरेन्द्र सिंह

07.07.2025

10.47



मन उपवन

 चेतनाओं की है चुहलबाजियाँ

कामनाओं की है कलाबाजियां

एक ही अस्तित्व रूप हैं अनेक

अर्चनाओं की है भक्तिबातियाँ


एक-दूजे का मन सम्मान करे

हृदय से हृदय की ही आसक्तियां

मन अपने उपवन खोजता चले

विलय मन से मन में हो दर्मियां


यूं ही कदम बढ़ते नही किसी ओर

कोई खींचे जैसे लिए प्यार सिद्धियां

एक पतवार प्यार की धार में चले

कोई सींचे जैसे सावन की सूक्तियाँ।


धीरेन्द्र सिंह

07.07.2025

06.32







शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

हिंदी

 चलिए हम मिलकर प्रयास करें

मद्धम हो रही हिंदी विकास करें


एक आभा थी कहीं खो रही

हिंदी पत्रकारिता भी सो रही

हिंदी दैनिक में अंग्रेजी खास भरें

मद्धम हो रही हिंदी विकास करें


यह सत्य है हिंदी देती नौकरी

अर्थ से हिंदी की रिक्त सी टोकरी

एम.ए. हिंदी में न छात्र, आस करें

मद्धम हो रही हिंदी विकास करें


हिंदी और मराठी लिपि देवनागरी

बोल मराठी तू बोल गूंज इस घड़ी

महाराष्ट्र में मराठी भाषा साँच भरे

मद्धम हो रही हिंदी विकास करें


हम सब लिखते हैं नहीं यह काफी

देवनागरी लिपि बढ़े यही है साफी

आपका साथ हो नव विश्वास भरें

मद्धम हो रही हिंदी विकास करें।


धीरेन्द्र सिंह

04.07.2025

18.19




गुरुवार, 3 जुलाई 2025

शब्द

 शब्द मरते हैं

तो मर जाती है भाषा

शब्द होते घायल

भाषा बन जाती है तमाशा,


शब्दों की  दुनिया में

नित नया होता है तमाशा

क्या करे अभिव्यक्ति तब

शब्द प्रयोग जैसे बताशा,


सबके होते अपने शब्द

पर शब्द ढूंढता नव आशा

सही प्रसंग, संदर्भ सही हो

शब्द योग है नहीं पिपासा


शब्द ब्रह्म है शब्द तीर्थ

शब्द समझ की ही जिज्ञासा

शब्द सहज सुजान नहीं

शब्द अजोड़ बने भाव कुहासा।


धीरेन्द्र सिंह

03.07.2025

22.40