कोई गौर से पलक चूनर ओढ़ाके
हक अपना जताकर फलक कर दिए
हकबकाहट में दिल समझ ना सका
भाव उनका कहे संग चल दे प्रिए
सांझ चूनर ढली हम भी देखा किए
चुंदरिया सौगात में मिली किसलिए
एक आलोक फैला दी चुनर वहीं
ना चाहते हुए भी हम हंस दिए
कब जगता है रमता है ऐसा प्यार
एक द्वार खोल हलचल कर दिए
उसकी उम्मीद बीच जिंदगी जो पुकारी
पहन चूनर पर ओढ़नी संग चल दिए
आज भी है लहरती चूनर जज्बात में
ओढ़नी से चुपके ढंक चुप कर दिए
कौन जाने किस हालात में वह कहीं
दीप चूनर के हम प्रज्ज्वलित कर दिए।
धीरेन्द्र सिंह
18.12.2023
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