बैठ कर एक शिल्पकार
एक मूर्ति में रहे रमा
ना आकर्षण ना हंगामा
बस रचनाधर्मिता का शमा
न कोई ओहदा न कोई पद
न सुविधाओं का समां
मिट्टी में सनी कल्पनाएं
कलाकृति बन मेहरबां
यह भी तो है व्यक्तित्व
सहज, सरल न बदगुमां
रचते समाज, जीवन सहज
खुशियों के अबोले रहनुमा
ऐसे ही कई व्यक्ति व्यस्त
अलमस्त सृजन उर्ध्वनुमा
जीवन के मंथन में मगन
चूर-चुर पिघल रह खुशनुमा।
धीरेन्द्र सिंह
एक मूर्ति में रहे रमा
ना आकर्षण ना हंगामा
बस रचनाधर्मिता का शमा
न कोई ओहदा न कोई पद
न सुविधाओं का समां
मिट्टी में सनी कल्पनाएं
कलाकृति बन मेहरबां
यह भी तो है व्यक्तित्व
सहज, सरल न बदगुमां
रचते समाज, जीवन सहज
खुशियों के अबोले रहनुमा
ऐसे ही कई व्यक्ति व्यस्त
अलमस्त सृजन उर्ध्वनुमा
जीवन के मंथन में मगन
चूर-चुर पिघल रह खुशनुमा।
धीरेन्द्र सिंह
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