बस मुनादी
ध्वनि उदासी
उत्सवी रह-रह तमाशा
राजभाषा
जो रहा 80 दशक में
जारी है अब भी मसक के
नवीनता लिए हताशा
राजभाषा
प्रबंधन ने दी स्वतंत्रता
कार्यान्वयन बस मंत्रणा
खूब शब्दों ने तराशा
राजभाषा
हैं स्वतंत्र वैचारिक परतंत्र
नीतियों में उलझे से यंत्र
नई सोच तरसे जन जिज्ञासा
राजभाषा
कौन है राजभाषा अधिकारी
क्या शब्दों कार्यान्वयन गुणकारी ?
इनपर ही क्यों टिकी बस आशा
राजभाषा।
धीरेन्द्र सिंह
ध्वनि उदासी
उत्सवी रह-रह तमाशा
राजभाषा
जो रहा 80 दशक में
जारी है अब भी मसक के
नवीनता लिए हताशा
राजभाषा
प्रबंधन ने दी स्वतंत्रता
कार्यान्वयन बस मंत्रणा
खूब शब्दों ने तराशा
राजभाषा
हैं स्वतंत्र वैचारिक परतंत्र
नीतियों में उलझे से यंत्र
नई सोच तरसे जन जिज्ञासा
राजभाषा
कौन है राजभाषा अधिकारी
क्या शब्दों कार्यान्वयन गुणकारी ?
इनपर ही क्यों टिकी बस आशा
राजभाषा।
धीरेन्द्र सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें