शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

बस मुनादी
ध्वनि उदासी
उत्सवी रह-रह तमाशा
राजभाषा

जो रहा 80 दशक में
जारी है अब भी मसक के
नवीनता लिए हताशा
राजभाषा

प्रबंधन ने दी स्वतंत्रता
कार्यान्वयन बस मंत्रणा
खूब शब्दों ने तराशा
राजभाषा

हैं स्वतंत्र वैचारिक परतंत्र
नीतियों में उलझे से यंत्र
नई सोच तरसे जन जिज्ञासा
राजभाषा

कौन है राजभाषा अधिकारी
क्या शब्दों कार्यान्वयन गुणकारी ?
इनपर ही क्यों टिकी बस आशा
राजभाषा।

धीरेन्द्र सिंह

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