शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

हद है कि इश्क़ अब दीवान हो गया
इंसान भी गुम होकर महान हो गया

इश्क़ तकिया कभी बिछौना सा बनाएं
आरामगाह तो कभी अभियान हो गया

उनके गेसुओं में उलझने का न मौका 
तत्काल टिकट सा इश्क़ सामान हो गया

किसको पड़ी निगाहों में उतरने की फिक्र आज
अब यूं लगे कि इश्क़ बेजुबान हो गया

सिर्फ बाहों के घेरे के अधिकांश चितेरे भरे
झटपट फटाफट लिपट का कद्रदान हो गया

धडकनों, तड़पनों, उलझनों का मज़ा भूले
इश्क़ एहसास ना रहा बड़ा नादान हो गया।

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