आखिर में तय कर लिया दिल ने कि
  चाहत के हुलास का 
  मन के गुलाब का
  नज़रों के शबाब का
  कोई विवेचनात्मक तर्क नहीं होता है, 
  प्यार का संकल्प होता है 
  पर
  दीवानगी का कोई विकल्प नहीं
इसलिए 
  अब तुम्ही बतलाओ 
  तुम्हे पाने की ज़िद में
  यह दीवानगी 
  किस तर्क को मानेगी
तुम्हारे सिवा
  क्या समझेगी क्या जानेगी
  इसलिए या तो तुम
  मेरा हुलास, गुलाब और शबाब 
  बन जाओ 
  या फिर
  मेरी दीवानगी को यूँ ही रहने दो,
  याचनाओं के बल पर
  प्रीति की रीत नहीं बना करती, 
  प्यार को प्रश्न की तरह सुलझाना  
  मात्र एक बौद्धिक छलावा है.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.