व्यक्ति निरंतर
ऊर्जाओं से घिरा है
कभी लगता समझदार
कभी लगे सिरफिरा है,
जीवन इन्हीं ऊर्जा लहरों में
खेल रहा है
व्यक्ति ऊर्जाओं से घिरा
बेल रहा है,
प्रतिकूल परिस्थितियां
या
अनियंत्रित भावनाएं
आलोड़ित कामनाएं
किसे कैसे अपनाएं,
इन्हीं झंझावातों को
झेल रहा है
व्यक्ति आसक्तियों से घिरा
गुलेल रहा है,
भंवर में संवरने का
संघर्षमय प्रयास
अंजुली भर नदी
रेगिस्तान सी प्यास,
आस में आकाश नव
रेल रहा है
वादियां गूंज उठी
कहकहा है,
खुद को निचोड़कर
निर्मलता का प्रयास
ताशमहल निर्मित कर
सबलता का कयास,
खुद से निकल खुद को
ठेल रहा है
कारवां से प्रगति का ऐसा
मेल रहा है।
धीरेन्द्र सिंह
13.12.2025
10.59

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