उड़ न चलो संग मन पतंग हो रहा है
देखो न आसमान का कई रंग हो रहा है
एक तुम हो सोचने में पी जाती हो शाम
फिर न कहना मन क्यों दबंग हो रहा है
आओ चलें समझ लें खुद की हम बातें
कुछ बात है खास या तरंग हो रहा है
एक सन्नाटे में ही समझ पाना मुमकिन
चलो उडें यहाँ तो बस हुडदंग हो रहा है
मत डरो सन्नाटे में होती हैं सच बातें
मेरी नियत में आज फिर जंग हो रहा है
ऊँचाइयों से सरपट फिसलते खिलखिलाएं हम
देखो न मौसम भी खिला भंग हो रहा है
आओ उठो यूँ बैठने से वक़्त पिघल जायेगा
फिर न कहना वक़्त नहीं मन तंग हो रहा है
एक शाम सजाने का न्योता ना अस्वीकारो
बिखरी है आज रंगत तन सुगंध हो रहा है.
प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (22/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
आओ उठो यूँ बैठने से वक़्त पिघल जायेगा
जवाब देंहटाएंफिर न कहना वक़्त नहीं मन तंग हो रहा है
बहुत खूबसूरत रचना ..
एक शाम सजाने का न्योता ना अस्वीकारो
जवाब देंहटाएंबिखरी है आज रंगत तन सुगंध हो रहा है.
यह सुगंध बनी रहे!
एक सन्नाटे में ही समझ पाना मुमकिन
जवाब देंहटाएंचलो उडें यहाँ तो बस हुडदंग हो रहा है
बेहद खूबसूरत रचना। डटे रहो।
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
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जवाब देंहटाएंआओ उठो यूँ बैठने से वक़्त पिघल जायेगा
फिर न कहना वक़्त नहीं मन तंग हो रहा है
बहुत खूबसूरत रचना !
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