शनिवार, 8 फ़रवरी 2025

रिश्ते

 शीतलता सुगंध अद्भुत मलय है

रिश्ते भी ऐसे असीमित वलय हैं


प्रसिद्धि पहचान अद्भुत पनपना

श्रेष्ठ सुंदर सुरभि का ले सपना

कहीं से उलीचे कहीं का लय है

रिश्ते भी ऐसे असीमित वलय है


स्व से द्वय फिर जुड़ते ही जाएं

कुछ से दिल मौन कुछ को गाए

यहां का वहां का रिश्ता प्रलय है

रिश्ते भी ऐसे असीमित वलय है


हर तरंगित रिश्ते में स्व को जोड़ना

लगता कभी धारा को यूं ही मोड़ना

युक्ति कहे जुड़ जा कहता समय है

रिश्ते भी ऐसे असीमित वलय है।


धीरेन्द्र सिंह

08.02.2025

21.18




शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2025

आधे-अधूरे

 आधे-अधूरे ही रह गए होंगे

बेबसी को भी सह गए होंगे

एक जीवन को जीनेवाले ऐसे

एक तिनके सा बह गए होंगे


समय थपेड़ों सा बचना मुश्किल

हासिल कुछ तो कर गए होंगे

पुराने छूट गए टूटकर पड़े हैं

हृदय जब मुस्कराया नए होंगे


जिंदगी करवटों का बिस्तर है

कुछ सोए कुछ रच गए होंगे

सीमित दायरा होता है सभी का

कुछ रोये कुछ हंस गए होंगे


दौर स्वभाव है दौड़ते रहना

क्या मिला जो थक गए होंगे


तह तक पहुंचे उनका कहन अलग

शेष तो सामयिक बुलबुले होंगे।


धीरेन्द्र सिंह

06.25

08.02.2025



गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

बदलियां

 मेरी साँसों में छाई बदलियां हैं

हवाएं अनजानी चल रही हैं नई

सुगंध एक सा है शामिल सब में

दिल में गुनगुना रहे है बसंत कई


कौन घिर आया बिना आहट बेसबब

अदब की सुर्खियों में है तालीम नई

बदलियां शोख कभी खामोश लग रहीं

अदाओं में किसी के तो मैं शामिल नहीं


बरस जाएं तो बदलियों को आराम मिले

सिलसिले साँसों के रियाज कर रहे हैं कई

सुगंध मतवारी हवा संग छू रही ऐसे

शोखियाँ उम्र की दहलीज पर हो छुईमुई


कभी तन उड़ रहा तो मन रहे गुपचुप

बदलियां साँसों में छुपछुप करें खोज कई

एक एहसास की तलाश है जमाने में

कयास के प्रयास से मिल जाए सोच नई।


धीरेन्द्र सिंह

07.02.2025

10.35




बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

पल्लवन

 प्रणय का पल्लवन भी जारी है

दबोचती अक्सर दुनियादारी है


हृदय के मूल बसा रहता प्यार

अपना परिवेश भी देता खुमार

सम्मिश्रण यह धार दुधारी है

दबोचती अक्सर दुनियादारी है


क्यों खींचूं मन चाह है सींचता

क्यों रुकूँ परिवेश राह है खींचता

स्पंदनों में महकती धुन प्यारी है

दबोचती अक्सर दुनियादारी है


उम्र की पंखुड़ियों से है सजा प्यार

अनुभव की मंजुरियां हैं खिली बहार

समझ में बूझ करती चित्रकारी है

दबोचती अक्सर दुनियादारी है।


धीरेन्द्र सिंह

06.02.2025

10.15




संशय

 दिल दहलता जब संशय है

कितना गहरा क्या संचय है


अपने जपने का सिलसिला

इसी में युग को है दुख मिला

लोगों का लक्ष्य तो धनंजय है

कितना गहरा क्या संचय है


कष्ट अपनों का है असहनीय

राह पथरीली तो भी वंदनीय

दर्द ज्यादा पर मन संजय है

कितना गहरा क्या संचय है


दिल फट पड़ने की परिस्थितियां

संस्कार भी और निर्मित रीतियाँ

जूझता बूझता लड़ता सुसंशय है

कितना गहरा क्या संचय है।


धीरेन्द्र सिंह

05.02.2025

19.33 




मंगलवार, 4 फ़रवरी 2025

मैसेज

 "किसने मना किया है"

वह बोल उठी 

और

उठा एक वलय

तत्क्षण मेरे मन मे

कि हां

गलत मैं ही हूँ,


बड़ा आसान होता है

कर देना टाइप

शुभ प्रभात या शुभ दिन

पर प्रतिदिन मात्र यही ?

नहीं न

फिर यदि कुछ टाइप किया जाए

तो निजता उभर आती है

और

रोक देती है यही सोच

प्रतिदिन टाइप करने से,


दो-तीन बार

हुआ है टाइप

हल्का उन्मुक्त संवाद

सहम कर थम कर

उसने भी किया है टाइप

जिसमें एक अलिखित

रेखा थी,

बस रुक गया

सहमकर नहीं

सम्मान से,


आज अचानक

हो गया संवाद

“इस बहाने मेरी याद तो आई”

टाइप की वह

और हो गया मैं हतप्रभ

हो गया टाइप

"रोज करता हूँ याद"

वह तत्काल टाइप की

"मैसेज किया करो न

किसने मना किया है।"


धीरेन्द्र सिंह

04.02.2025

22.06

सोमवार, 3 फ़रवरी 2025

शब्द

 शब्द को निहार कर

भाव को निथार कर

आप लिखे, पढ़ा किए

और मन मढ़ा किए


सृष्टि के विधान में

दृष्टि के सम्मान में

जो जिए पकड़ लिए

जीभर कर फहर लिए


लिख रहें और लिखिए

शब्द भाव न बदलिए

सत्य अभिमान लिए

अपने आसमान लिए


शब्द ही प्रारब्ध है

स्तब्ध ही आबद्ध है

एक जीवन के लिए

कतरन संजीवन के लिए।


धीरेन्द्र सिंह

03.02.2025

23.09