सोमवार, 20 अक्टूबर 2025

मझधार

पहले द्वार रंगोली और द्वार श्रृंगार
फिर दिया, पूजन भक्त भक्ति दुलार
लौ की दुनिया सज गई ऊर्जा लेकर
दिया हो सक्रिय निःशब्द देता आधार

कितनी पूजा किसने की ईश्वर जानें
आरती में किसका कितना लयधार
इन बातों से अलग सोचती आराधना
जनमानस का कितना कैसे हो सुधार

अपनी अभिव्यक्ति को पूर्ण कर चुका
लगता कुछ शेष नहीं रुकी वही पुकार
खड़ा हो गया सोचता नव ज्योति लिए
जबतक है जीवन खत्म कहां मझधार।

धीरेन्द्र सिंह
20.10.2025
21.39



रविवार, 19 अक्टूबर 2025

छोटी दीवाली

देहरी पर दिये की झूम रही लौ
प्रहरी घर भर दिये ऊर्जा नव पौ

शुभता भी शक्ति है दिव्य आसक्ति
शुभ्रता मनभाव लिये नव्य युक्ति
ठहरी क्रन्दिनी वंदिनी हस्त भरे जौ
प्रहरी घर भर दिये ऊर्जा नव पौ

छोटी दिवाली की रात्रि दीप पटाखे
ब्रह्मोस्त्र की खेप बुद्धि मीत सखा रे
सीमाएं रहें शांत सुखी ना टेढ़ी भौं
प्रहरी घर भर दिये ऊर्जा नव पौ

मेरे पड़ोसी मुस्लिम घर जलीं लड़ियाँ
निकलें बाहर मिल जलाएं फुलझड़ियाँ
अनेकता में एकता लौ को गुण सौ
प्रहरी घर भर दिये ऊर्जा नव लौ।

धीरेन्द्र सिंह
19.10.2025
21.41




अस्तित्व उदय

उदित होता अस्तित्व
होता हरदम सिंदूरी
उदित गोद में हो
या हो समय की दूरी

प्रसन्नता हो अपरम्पार
द्वार किरण मनधूरि
एक उल्लास मिले खास
एक तलाश हो पूरी

दीये की लौ नर्तन
बर्तन बजते बन मयूरी
दिवस प्रारम्भ ले आशाएं
परिवेश सजा है सिंदूरी

उदित हो जाना जीवन
सज्जित समुचित लोरी
प्यार कहीं आराधना भी
कामना होती तब पूरी।

धीरेन्द्र सिंह
19.10.2025
14.35




शनिवार, 18 अक्टूबर 2025

धनतेरस

सांध्य बेला हो चुकी प्रकाश में बदले बेरस

पूजा-अर्चना घर-घर गूंजे कुहूका धनतेरस


अत्यावश्क हुई खरीद भक्ति भाव अविरल

कथ्यों पर युग बढ़ चला होता भाव विह्वल

आस्था जीवन को मढ़ी हर पीड़ा कर बेबस

पूजा-अर्चना घर-घर गूंजे कुहूका धनतेरस


समरसता की दृष्टि निरंतर होती विकसित

भारत भूमि इसीलिए जग करे आकर्षित

धन-धान्य सुख-वैभव की प्रसारित कर रस

पूजा-अर्चना घर-घर गूंजे कुहूका धनतेरस


दिया लौ द्वार से लेकर  घर के कोने-कोने

हर घर में खुशियां छलकाए नयन-नयन दोने

जो भी कामना आशीष देकर ईश्वर प्रेम बरस

पूजा-अर्चना घर-घर गूंजे कुहूका धनतेरस।


धीरेन्द्र सिंह

18.10.2025

20.06




शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025

जगमगाते


जगमगाते दीपों की तैयारी है
झालरों में ज्योति अँकवारी है
बाती बनकर दीप में सज जाइए
ज्योतिपुंज प्रबल अति न्यारी है

भींग जाने दो दिया जल में अभी
कुम्हार कौशल आपकी बारी है
केवट चरण पखार पाए मुक्ति द्वार
दीपमालाएं सजें विश्वकारी हैं

स्वच्छ चहक किलके चहारदीवारी
ज्योतिपुंज प्रज्ज्वलन गुणकारी है
तमस दूर हो समझ में होए वृद्धि
उत्सवी परिवेश समृद्धिकारी है

देहरी की प्रथम लौ झूम धाए
दिया लिए प्रकाश चमत्कारी हैं
बाती बन आप दिए से जुडें तो
इससे बड़ा कौन हितकारी है।

धीरेन्द्र सिंह
17.10.20२5
19.35




गुरुवार, 16 अक्टूबर 2025

कुछ नहीं आता

व्यक्ति में बौद्धिक सक्रियता सोचे विद्व ज्ञाता
दिवाली हेतु सफाई में सुने कुछ नहीं आता

हर घर दीप पर्व नाते घर में करे साफ-सफाई
मैंने भी सोचा सहयोग देकर पाऊं खूब बड़ाई
रसोई को खाली करने में श्रमदान का इरादा
सहायिका की मदत की सुना कुछ नहीं आता

कांच के बर्तन घेरे रख दिए थे कई ढंग बर्तन
चादर बिछी थी खिसकी शोर संग किए नर्तन
कुछ कांच टूटा सुना ऐसा सहयोग किसे भाता
सहायिका की मदत की सुना कुछ नहीं आता

पेशेवर सफाई कर्मी लेकर घर पहुंचे संग समान
सीढ़ी अलावा चढ़ने को कुछ मांगे ऊंचा स्थान
झट रिवॉल्विंग चेयर दे बोला सब इससे हो जाता
पेशेवर की थी अस्वीकृति लगा कुछ नहीं आता

शाम के सात बजे दो घंटे से सिर्फ किचन सफाई
तीन बाथरूम अभी पड़े हैं समय दे रहा दुहाई
उत्साह में दर्शाया रसोई व्यवस्थित की जिज्ञासा
कौन सामान कहां रहेगा बोले कुछ नहीं आता

क्लीनिंग पेशेवर लगे बैठा सोचा संगी कविता
घर को रखे व्यवस्थित मात्र गृहिणी की रचिता
सात बजे रहे हैं लगे रसोई में दो सफाई ज्ञाता
इस दीपावली ने दिया संकेत कुछ नहीं आता।

धीरेन्द्र सिंह
16.10.2025
07.03
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सोमवार, 13 अक्टूबर 2025

विकल्पविकल्प

विकल्प जब अनेक हों
संकल्प प्रखर सम्मान रहे
रचनाएं तो मिले बहुत
लाईक, टिप्पणी मांग रहे