बस यही खयाल है
काल्पनिक धमाल है
प्यार की रंगीनियाँ
मन के कई ताल हैं
खींच ले हृदय भाव
फिर अबीर गुलाल है
भावनाएं नदी उफनती
कहां क्या सवाल है
प्यार भी विवशता है
होता दो चार साल है
सब दिलों में झांकिए
अभिनय भरा गाल है।
धीरेन्द्र सिंह
22.06.2024
07.26
बस यही खयाल है
काल्पनिक धमाल है
प्यार की रंगीनियाँ
मन के कई ताल हैं
खींच ले हृदय भाव
फिर अबीर गुलाल है
भावनाएं नदी उफनती
कहां क्या सवाल है
प्यार भी विवशता है
होता दो चार साल है
सब दिलों में झांकिए
अभिनय भरा गाल है।
धीरेन्द्र सिंह
22.06.2024
07.26
हल्के से छूकर दिल निकल गई
बहकती हवा थी या तेरी सदाएं
एक कंपन अभी भी तरंगित कहे
ओ प्रणय चल नयन हम लड़ाएं
महकती हैं सांसे दहकती भी हैं
चहकती भी हैं हम कैसे बताएं
हृदय तो झुका है प्रणय भार से
आए मौसम कि अधर कंपकंपाएँ
देह को त्यागकर राग बंजारा हो
चाह की रागिनी तृषित तमतमाए
रूह की आशिकी अगर हो गयी
साधु-संतों की टोली बन गुनगुनाएं।
धीरेन्द्र सिंह
20.06.2025
05.26
होती है बारिश, बरसते हो तुम
कहीं तुम, सावनी घटा तो नहीं
आकाश में हैं, घुमड़ती बदलियां
कहीं तुम, पावनी छटा तो नहीं
बेहद करीबी का, एहसास भी है
तुम हो जरूरी, यह बंटा तो नहीं
उफनती नदी सा, हृदय बन गया
बह ही जाएं कहीं, धता तो नहीं
खयालों में रिमझिम मौसम बना
भींग जाना यह तो बदा ही नहीं
सावन आया घटा झूम बरसी भी
बूंद सबको छुए यह सदा तो नहीं।
धीरेन्द्र सिंह
19.06.2024
07.43
उसने कहा था पद्य से अच्छा लिखते गद्य
कविता से मैं उलझ पड़ा मांजने को पद्य
लगा बांधने उसको शब्दों की वेणी में
काव्य-काव्य ही रच रहा उसके श्रेणी में
तुकबंदी रहित वह रचती कविता सद्य
कविता से मैं उलझ पड़ा मांजने को पद्य
मुझको खुद में गूंथ उसका है काव्य संकलन
ऐसा ना देखा प्रथम प्रकाशन का चलन
ऐसे जनमी बौद्धिक संतान हमारे मध्य
कविता से मैं उलझ पड़ा मांजने को पद्य
नर-नारी संपर्क से संभव होता निर्माण
संबंध नहीं था उससे पर थी वह त्राण
कवयित्री बनते ही हो गयी वह नेपथ्य
कविता से मैं उलझ पड़ा मांजने को पद्य।
धीरेन्द्र सिंह
18.06.2024
10.28
मोहब्बत नहीं बस प्यार चाहिए
सोहबत नहीं आत्मदुलार चाहिए
शायरी की संस्कृति में है पर्देदारी
काव्य सर्जना में सर्वनेत्री है नारी
नारी का सर्वांगीण शक्तिधार चाहिए
सोहबत नहीं आत्मदुलार चाहिए
घूंघट उठाकर चेहरा देखना अपमान
शौर्य भक्ति पर नारी को है अभिमान
नारी संचालित मुखर स्वीकार्य चाहिए
सोहबत नहीं आत्मदुलार चाहिए
मूल भारतीय संस्कृति है नारी उन्मुख
एक भव्य नारी इतिहास है विश्व सम्मुख
ऑनलाइन आक्रमण भंजक वार चाहिए
सोहबत नहीं आत्मदुलार चाहिए।
धीरेन्द्र सिंह
18.06.2024
09.45
प्यार की परिणीति होती है आध्यात्म
ब्लॉक हैं तो ना सोचिए प्यार समाप्त
तेवर, कलेवर, अहं, सुनी-सुनाई बात
लोग चाहें डुबोना करते हैं मीठे घात
सोच प्रभावित होती कुछ होते उत्पात
ब्लॉक हैं तो ना सोचिए प्यार समाप्त
पर्वत सी धीरता, गंभीरता बहुत जरूरी
प्यार में कभी होती नहीं जी हुजूरी
जिसने किया ब्लॉक होगी त्रुटि ज्ञात
ब्लॉक है तो ना सोचिए प्यार समाप्त
प्यार हो गया तो वह ना चुक पाता है
नए आकर्षण पर व्यक्ति झुक जाता है
फिर आकर्षण में ना मिठास ना बात
ब्लॉक है तो ना सोचिए प्यार समाप्त
समय लौटता इतिहास भी दोहराता है
प्यार खो गया सोच मन घबड़ाता है
पुनरावर्तन, प्रत्यावर्तन से सृष्टि नात
ब्लॉक हैं तो ना सोचिए प्यार समाप्त।
धीरेन्द्र सिंह
18.06.2024
04.49
पंडित, पादरी, मौलवी कहें चालबाज है
फरीदाबाद की अतृप्ता तो इश्कबाज है
एक मित्र पूछी क्यों लिखते फरीदाबाद
कहा एक मित्र वहां मृत होकर आबाद
उसने कहा नारी गरिमा का मजाक है
फरीदाबाद की अतृप्ता तो इश्कबाज है
क्यों होती तड़प बन जाते हैं, बेधड़क
ऑनलाइन, हिंदी समूह, इश्क़ ले सड़क
भोले, शालीन, चुप उम्दा नज़रबाज है
फरीदाबाद की अतृप्ता तो इश्कबाज है
इलाहाबाद, अहमदाबाद, हैदराबाद और
अतृप्ता न बदली न बदला उसका तौर
सुसुप्ता, उत्सुकता आदि नाम अंदाज़ हैं
फरीदाबाद की अतृप्ता तो इश्कबाज है।
धीरेन्द्र सिंह
15.06.2024
17.40