बुधवार, 11 सितंबर 2019

अतुकांत

अधूरी रचनाओं की पंगत में
कहीं खोई सी
एक तरफ लुढ़की
हताश सा विश्वास
भावों को गढ़ रही हो,
अनगढ़ क्या होता है
यदि घट पर हो लहरें
असंभव क्या होता है
यदि लहरों पर हो तिनके
तुम लहर ही तो हो
मेरी सोच का, रचनाओं का
पर न जाने क्यों लुढ़की हो,

लेखन की तुकांत विधा मेरी
कर दोगी विदा ओ चित मेरी
पर हां मानूंगा कहना तुम्हारा
एक चुनौती की तरह
जब तुम कहोगी
कविता वही होती हो
जिसमें रसधार हो
तुकांत हो या अतुकांत
अलहदा खुमार हो,

मेरे लिख देने की क्षमता
संशय के घेरे में
न जाने क्यों
तुम्हारी जुल्फों से
पहचाने शैम्पू की खुश्बू न आए
न लटें बौराएं
न ही वह खिलखिलाहट दिखे
अतुकांत लिखने का संकेत
बोल ही देती हो आजकल,

जब से तुम मिली
कविता कहां लिखा
लिखता भी कैसे
जिए जा रहा था कविता
बस शाब्दिक छींटे द्वारा
संभालने का प्रयास था शब्द सामर्थ्य
कविता जी लेना भी कौशल
यह न तो काव्य विधा
न समीक्षक का विचार बिंदु
फिर भी
लिख ही दिया अतुकांत
क्योंकि न जाने कब से
तुम लुढ़की हो
अधूरी रचनाओं की पंगत में।

धीरेन्द्र सिंह

गुरुवार, 28 मार्च 2019

ज़िन्दगी

बूंदें जो तारों पर लटक रही
तृषा लिए सघनता भटक रही
अभिलाषाएं समय की डोर टंगी
आधुनिकता ऐसे ही लचक रही

चुनौतियों की उष्माएं गहन तीव्र
वाष्प बन बूंदें शांत चटक रही
बोल बनावटी अनगढ़ अभिनय
कुशल प्रयास गरल गटक रही

जीवन में रह रह के सावनी फुहार
बूंदें तारों पर ढह चमक रही
कभी वायु कभी धूप दैनिक द्वंद
बूंदों को अनवरत झटक रही

अब कहां यथार्थ व्यक्तित्व कहां
क्षणिक ज़िन्दगी यूं धमक रही
बूंद जैसी जीवनी की क्रियाएं
कोशिशों में ज़िन्दगी खनक रही।

धीरेन्द्र सिंह

बुधवार, 27 मार्च 2019

तकनीकी संबंध

मधुर मृदुल करतल
ऐसी करती हो हलचल
स्मित रंगोली मुख वंदन
करती आह्लादित प्रांजल

सम्मुख अभ्यर्थना कहां
मन नयन पलक चंचल
फेसबुक, वॉट्सएप, मैसेंजर
दृग यही लगे नव काजल

मन को मन छुए बरबस
भावों के बहुरंग बादल
अपनी मस्ती में जाए खिला
मन सांखल बन कभी पागल

ऑनलाइन बाट तके अब चाहत
नेटवर्क की शंका खलबल
वीडियो कॉल सच ताल लगे
अब प्रत्यक्ष मिलन हृदयातल।

धीरेन्द्र सिंह

मंगलवार, 26 मार्च 2019

दुनिया है तो दुनियादारी है
दाल, चावल, गेहूं, तरकारी है
निजी है तो बेहतर ही होगा
मिल जाता खोट गर सरकारी है

उत्तरोत्तर कर रहा विकास चतुर्दिक
ऐसी प्रगति भी लगे दुश्वारी है
बाजारवाद में अपनी बिक्री की चिंता
रोको, अवरोध, कहां विरोध कटारी है

सत्य कहां निर्मित होता प्रमाण मांग
गर्भावस्था की क्या प्रामाणिक जानकारी है
भ्रूण की किसने देखा संख्या बतलाओ
सत्य हमेशा नंगा बोलो क्या लाचारी है।

धीरेन्द्र सिंह

गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

शिल्पकार

बैठ कर एक शिल्पकार
एक मूर्ति में रहे रमा
ना आकर्षण ना हंगामा
बस रचनाधर्मिता का शमा

न कोई ओहदा न कोई पद
न सुविधाओं का समां
मिट्टी में सनी कल्पनाएं
कलाकृति बन मेहरबां

यह भी तो है व्यक्तित्व
सहज, सरल न बदगुमां
रचते समाज, जीवन सहज
खुशियों के अबोले रहनुमा

ऐसे ही कई व्यक्ति व्यस्त
अलमस्त सृजन उर्ध्वनुमा
जीवन के मंथन में मगन
चूर-चुर पिघल रह खुशनुमा।

धीरेन्द्र सिंह

गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

अनुभूति

मन जब अपनी गहराई में
उतर जाए
एक ख़ामोश सन्नाटा मिले
कुछ कटा जाए
और
एकाकीपन की उठी आंधी
आवाज लगाए
टप, टप, टप
ध्वनित होती जाए;

प्रायः ऐसा हो बात नहीं
पर होता जाए
जब भी मन अकुलाए
खुद में खोता जाए
और
तन तिनके सा उड़ता - उड़ता
उसी नगरिया धाए
छप, छप, छप
कोई चलता जाए।

धीरेन्द्र सिंह

बुधवार, 4 अप्रैल 2018

चाटुकारिता

वहम अक्सर रहे खुशफहम
यथार्थ का करता दमन
अपने-अपने सबके झरोखे
नित करता उन्मुक्त गमन

गहन मंथन एक दहन
सहन कायरता का आचमन
उच्चता पुकार की लपकन
चाटुकारिता व्यक्तित्व जेहन

बौद्धिकता पद से जोड़कर
नव संभावनाएं बने सघन
भारतीय विदेश जगमगाएँ
भारत में साष्टांग चलन

चंद देदीप्य भारतीय भविष्य
अधिकांशतः स्वान्तः में उफन
चंद की उष्माएँ खोलाए
क्रमशः जी हुजूरी दफन।

धीरेन्द्र सिंह