बुधवार, 24 दिसंबर 2025

निबद्ध

आप कहें शब्द या प्रारब्ध हैं

मत कहें कि आप आबद्ध हैं


एक धूरी का मैं भी तो समर्थक हूँ

पर विभिन्नता भाव का प्रवर्तक हूँ

हृदय का हृदय से अनजाना सम्बद्ध है

मन कहे कि आप आबद्ध हैं


आप तो स्वीकारती ना ही दुत्कारती

आप हृदय वाले को प्रायः संवारती

मेरे हृदय में आपकी चाहत बुद्ध है

मन कहे कि आप निबद्ध हैं


सहज संयत आपका अद्भुत संयम

मेरी पूंछें भावनाओं में उलझा जंगम

कौन जाने आपसे मेरा क्या संबंध है

मन कहे कि आप निबद्ध हैं।


धीरेन्द्र सिंह

24.12.2025

22.43





मंगलवार, 23 दिसंबर 2025

दीवानगी

सत्य निष्ठा पुस्तकों की बानगी है

लक्ष्य भेदना अब की दीवानगी है


पहुंच जाना पा लेना पसारे डैना

घर से बहक जाने का चाल ले पैना

घर से दर्द उठता है भ्रम चाँदनी है

लक्ष्य भेदना अब की दीवानगी है


पति-पत्नी में पनप रहा है वैमनस्व

परिवार का कंपित हो रहा है घनत्व

अपनेपन प्यार की ना परवानगी है

लक्ष्य भेदना अब की दीवानगी है


हृदय में प्यार लहरे यही तो लक्ष्य है

घर के बाहर प्यार खोजना सत्य है

स्पंदनों में उभरती चाह रागिनी है

लक्ष्य भेदना अब की दीवानगी है।


धीरेन्द्र सिंह

24.12.2025

04.52





सोमवार, 22 दिसंबर 2025

गुदगुदी

मुझे क्यों चुलबुली सी लगती हैं

मुझे क्यों गुदगुदी सी लगती हैं 


आप संग मेरा कोई रिश्ता नहीं है

पर मन मेरा भी सिजता वहीं है

कामनाओं की हदबंदी सी लगती है

मुझे क्यों गुदगुदी सी लगती है


आप मर्यादित सागर की लहरें हैं

समाज, रिश्तों के लगे पहरे हैं

सहज पर छटपटाती सी लगती हैं

मुझे क्यों गुदगुदी सी लगती है


एक यात्रा है और एक जीवन है

हो तुरपाई पर लगे न सीवन है

सांसे दूर से बुदबुदाई सी कहती हैं

मुझे क्यों गुदगुदी सी लगती हैं


आप साफ न बोलतीं, लजजा है

मुझे मालूम संस्कार भी, छज्जा है

अपनी दीवारों में लरजती सी लगती हैं

मुझे क्यों गुदगुदी सी लगती है।


धीरेन्द्र सिंह

23.12.2025

06.44Z



रविवार, 21 दिसंबर 2025

एक प्रेम

एक प्रेम रहा उपज कहीं तुम तो नहीं

तुम बिन उपजे प्रीत वह जमीं तो नहीं


एक दौर था तूफानी रचते नई कहानी

मैं भी दीवाना था तुम भी मेरी दीवानी

आज देखा तो पाया पलटते प्यार बही

तुम बिन उपजे प्रीत वह जमीं तो नहीं


सत्य है उनमें तुमसा प्यार रिसाव ना मिला

तुम थी तो जिंदगी थी कुछ शिकवे गिला

समझौता से कभी प्यार होता है क्या कहीं

तुम बिन उपजे प्रीत वह जमीं तो नहीं


यह तथ्य है कि तुमने मेरा तिरस्कार किया

प्रणय की संवेदना का उपचार क्या किया

हर व्यक्ति की कहानी रचना मेरी ही नहीं

तुम बिन उपजे प्रीत वह जमीं तो नहीं।


धीरेन्द्र सिंह

22.12.2025

06.18




शनिवार, 20 दिसंबर 2025

गर्म लाल लाख

किसी से न बातें या झगड़े में सौ बात

घृणा दर्शाता गलत है करना ब्लॉक


न बोलना या झगड़ना दर्शाता है अपनत्व

बिन बोले ब्लॉक करना अपराध का घनत्व

ब्लॉक कर जीवन से हटा दिया दिशा हाँक

घृणा दर्शाता गलत है करना ब्लॉक


अमावस का भाव है छंट जाएगा अंधियारा

चाँदनी जिसमें दिखे कर ब्लॉक ना दुत्कारा

लड़-झगड़ मनमुटाव पर स्नेह की आँख

घृणा दर्शाता गलत है करना ब्लॉक


सम्मान समक्ष व्यर्थ पद-पैसा-पकवान

स्वाभिमान मे अपनत्व-निजत्व-तत्वज्ञान

तोड़ दिया रिश्ता टपका गर्म लाल लाख

घृणा दर्शाता गलत है करना ब्लॉक।


धीरेन्द्र सिंह

2012.2025

17.01




शुक्रवार, 19 दिसंबर 2025

कामना के छल

सूर्य मुझसे लिपटता है प्रसन्न मना गुनगुनाऊँ

या लोटा जल लेकर कामना के छल चढ़ाऊँ


अनेक ज्योतिषाचार्य एक दशक से रहे बोल

सूर्य को जल चढ़ाएं  उपलब्धि होगी अनमोल

सूर्य को मन प्रणाम करता सूर्योदय जब पाऊँ

या लोटा जल लेकर कामना के छल चढ़ाऊँ


सूर्य है तो सृष्टि है वहीं से ऊर्जा वृष्टि है

सूर्य सा जो तेजस्वी युग की नई दृष्टि है

सनातन में गहन डूब सत्य के समीप जाऊं

या लोटा जल लेकर कामना के छल चढ़ाऊँ


कुंडली में सूर्य कमजोर तो कैसी घबराहट

आत्म सूर्य कर प्रखर भर प्रयास गर्माहट

अंतर्मन की रश्मियों संग सूर्य ओर धाऊँ

या लोटा जल लेकर कामना के छल चढ़ाऊँ


पूजा-पाठ का भला क्यों कोई विरोध करे

पूजा-पाठ पद्धतियों में पर नव प्रयोग करें

सूर्य रश्मि स्पर्श से आशीष सूर्य का पाऊँ

या लोटा जल लेकर कामना के छल चढ़ाऊँ।


धीरेन्द्र सिंह

17-19.12.2025

22.45



बुधवार, 17 दिसंबर 2025

शब्द सार्थक

शब्द सार्थक


प्रस्फुटित हैं भावनाएं उल्लसित हैं कामनाएं

शब्द सार्थक बन रहे हैं साज हम किसको सुनाएं


शोरगुल के धूल हैं सर्जना की हर राह पसर

कौन किसको पढ़े, सुने व्यक्तिगत जो न बताएं

शब्द भर हथेली हजारों कहें यह भी जगमगाए

शब्द सार्थक बन रहे हैं साज हम किसको सुनाएं


यदि कोई मिला और शब्द उनको लगा सुनाने

कठिन हिंदी बोलते हैं, कहें सहजता को अपनाएं

शब्द भी होते कठिन, सरल क्या, समझा ना पाए

शब्द सार्थक बन रहे हैं साज हम किसको सुनाएं


वस्त्र और व्यक्तित्व को ब्रांडेड से करें परिपूर्ण

शब्द अपरिचित लगे शब्द ब्रांडेड ना अपनाएं

भाषा की विशिष्टता उसके शब्द सामर्थ्य भूले

शब्द सार्थक बन रहे हैं साज हम किसको सुनाएं।


धीरेन्द्र सिंह

17.12.2025

18.36