कभी अनुभव किया है आपने
धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में
धर्म के स्पंदन,
होते हैं ऊर्जावान
नीतिवान
और सृष्टि संचयन में
निमग्न,
कभी देखा है आपने
धर्मों के धर्मपालक को
एक विशिष्ट रंग,
एक विशिष्ट ढंग,
एक अभिनव कार्यप्रणाली,
देते यथोचित उत्तर
यदि पूछे
कोई जिज्ञासू भक्त,
बदल दिए जाते हैं अर्थ
सार्थक अभिव्यक्तियों के,
चुपचाप बढ़ते पदचाप
और जतलाते हैं
वसुधैव कुटुंबकम को
विश्व जीतने का ख्वाब,
धर्म को दृढ़ता से
करना होगा स्थापित
अपनी परिभाषाएं,
अर्थ का अनर्थ न हो
अपने मन से क्यों अर्थ गढ़ो,
रोकता है धर्मनिरपेक्ष विचार,
नींव मजबूत है पर
होनी चाहिए सशक्त दीवार।
धीरेन्द्र सिंह
39.10.2025
19.33