शुक्रवार, 14 नवंबर 2025

मस्त

तन मय होकर हो जाते हैं तन्मय

मन मई होकर सज जाते हैं उन्मत्त

यही जिंदगी की चाहत है अनबुझी

इसको पाकर तनमन हो जाते हैं मस्त


तन की सेवा तन की रखवाली प्रथम

मन क्रम, सोच से हो जाता है बृहत्त

इन दोनों से ही हर संवाद है संभव

बिन प्रयास क्या हो जाता है प्रदत्त


चेहरे की आभा में सम्मोहन आकर्षण

नयन गहन सागर मन मोहित आसक्त

प्यार की नैया के हैं खेवैया लोग जमीं के

जी लें खुलकर ना जाने कब हो जाए अस्त।


धीरेन्द्र सिंह

15.11.2025

07.48



गुरुवार, 13 नवंबर 2025

ब्रेकअप ?

ब्रेकअप कहां की संस्कृति है

एक्स है कहना प्रगति रीति है

प्यार होकर टूट भी जाता है कहीं

कौन जाने किस जग की नीति है


आकर्षण को समझ लेते जो प्यार

प्यार की यही सबसे बड़ी कुरीति है

लुट गया लूट लिया दिल किसी का

कभी न भूल पाए आत्मा का गीत है


प्रणय का समय संग होते हैं प्रकार

अभिव्यक्ति बदलती वैसी संगति है

आत्मा का आत्मा में विलय हो जाता

समर्पित होती उसी प्रकार मति है


एक से अधिक प्यार संभव हो गया

प्रौद्योगिकी की भी इसमें सहमति है

एक बार प्यार हुआ छूटता कभी नहीं

चाहत की दुनिया में यही सम्मति है।


धीरेन्द्र सिंह

13.11.2025

22.39




बुधवार, 12 नवंबर 2025

हिन्दू संस्कृति

 कभी इधर कभी उधर, दृष्टि से गये उतर

सर्वधर्म समभाव डगर, सृष्टि में दिखे किधर


हिन्दू संस्कृति को हिन्दू हैं कितना जानते

हिंदुत्व का प्रवाह प्रखर कई नहीं जानते

कर्म आकृति हिंदुत्व अखंड भारत का सफर

सर्वधर्म समभाव डगर, सृष्टि में दिखे किधर


धर्म की नहीं बात करें, लोग समझते अपराध

धर्म की परिभाषा गलत, लक्ष्य कुछ रहे साध

हिन्दू राष्ट्र भारत है, इसे बोलने में कांपे अधर

सर्वधर्म समभाव डगर, सृष्टि में दिखे किधर


एक वर्ग भटक रहा जबकि बेजोड़ घटक रहा

सर्वधर्म हो पल्लवित स्वाभाविक हिन्दू राष्ट्र कहा

राष्ट्र लय में सब मिल थिरकें धर्म का करते कदर

सर्वधर्म समभाव डगर, सृष्टि में दिखे किधर।


धीरेन्द्र सिंह

12.11.2025

19.34



मंगलवार, 11 नवंबर 2025

फरीदाबाद

चुपके से हो रहे थे आतंकी आबाद

हंगामा रच रहा था शांत फरीदाबाद


पुस्तकों की बौद्धिकता पर करते बातें

बुद्धिजीवी सोचें अभिशाप कैसे बांटे

डॉक्टरों की टीम का है यह विवाद

हंगामा रच रहा था शांत फरीदाबाद


उच्च शिक्षित का किनसे गलत नाते

कौन वह प्रबुद्ध जिनसे डॉक्टर नाचे

हतप्रभ होकर इन डॉक्टरों पर संवाद

हंगामा रच रहा था शांत फरीदाबाद


उच्च शिक्षितों में भी गंवारपन आगे

कैसे सम्मान के यूँ निर्दोष रहें धागे

एक विश्वास टूटकर किया गंदा निनाद

हंगामा रच रहा था शांत फरीदाबाद।


धीरेन्द्र सिंह

11.1१.2025

20.46



शनिवार, 8 नवंबर 2025

देह और दीप

 देह मंदिर सा लगे है

नेह लगे अति समीप

भावना की हवा बहे

हृदय लौ बन दीप


कल्पनाओं की बजे घंटियां

कामनाओं के भजन गीत

अर्चना थाली सा मन बने

वर्जनाएं मिटें मिल दीप


ओस सा मुख निर्मल

कजरारी आंखों की रीत

गाल डिम्पल गहन गूढ़

चेतना चपल मिल मीत


एक आकार से साकार

देह भक्ति मन प्रीत

साकार में ही संसार

देह ध्येय तन दीप।


धीरेन्द्र सिंह

09.11.2025

11.38




भगवती

 भगवती माँ की नित करे अर्चना

सहमति जग की कृति करे अर्चना

सनातन राह पर अटल चले जो

हिन्दू संस्कृति की होए निज सर्जना


मातृ शक्ति स्वरूपा भारत देश हमारा

सिंह आरूढ़ शस्त्र धारिणी की गर्जना

सर्वधर्म को आश्रय यहां विस्मित है जहां

हिन्दू संस्कृति इतर धर्म की ना करे भर्त्सना


माँ भगवती विविध रूप में सब में समाई

जिसने माँ को पा लिया मील दिव्य अंजना

भगवती की कृपा रहे भक्तों पर फलदायी

नत होकर आत्मा करे माँ भगवती की अर्चना।


धीरेन्द्र सिंह

09.11.2025

08.23

मैं और कविता

 मैं कभी नहीं लिखता

कविता

नहीं है संभव किसी के लिए

लिख पाना कविता,

स्वयं कविता चुनती है

रचनाकार और ढल जाती है

रचनाकार के शब्दों में

बनकर कविता,


जीवन के विभिन्न भाव

छूते हैं मन को

और मस्तिष्क लगता है सोचने

वह भाव,

मन की तरंगें उठती हैं

लहराती हैं

और देती हैं मथ

मनोभावों को

और जग उठती है कविता,


रचनाकार उस भाव तंद्रा में

पिरो देता है

उन भावनाओं को

अपने शब्दों में,

संवर जाती है कविता,


रचनाकार नहीं लिखता

अपने आप को

निर्मित कर किसी भाव को,

ऐसे नहीं लिखी जाती

कविता,

भाव के भंवर जब

बन जाते हैं लहर

शब्दों में लिपट

जाती है कविता संवर।


धीरेन्द्र सिंह

08.11.2025

20.04