अकेले अस्तित्व का ही निनाद है
सत्य यह कि निजत्व का विवाद है
प्रश्रय पुंजत्व का मुग्ध पुष्पधारी पक्ष
प्रेम में दुरूहता उभरता जब यक्षप्रश्न
यथोचित उत्तर ही प्रमुख संवाद है
सत्य यह कि निजत्व का विवाद है
अकेले अस्तित्व का ही निनाद है
सत्य यह कि निजत्व का विवाद है
प्रश्रय पुंजत्व का मुग्ध पुष्पधारी पक्ष
प्रेम में दुरूहता उभरता जब यक्षप्रश्न
यथोचित उत्तर ही प्रमुख संवाद है
सत्य यह कि निजत्व का विवाद है
विवाह लगता सामाजिक पोषण है
आधुनिकता में यथार्थ लगे शोषण है
विवाह में दहेज प्रथम सिद्ध पायदान
द्वितीय दुल्हन को बनाएं भव्य पायदान
दूल्हा के लिए परिवार भाव कुपोषण है
आधुनिकता में यथार्थ लगे शोषण है
यहां अपवाद का सम्मान से प्रशंसक हैं
जो निरपवाद है उसके निरोध अंशक हैं
तलाक अब न्यायालय में प्रति क्षण है
आधुनिकता में यथार्थ लगे धोषण है
सास के पारंपरिक समय लुप्त सिद्धांत
आधुनिक युवती सुन हो जाती आक्रांत
कालातीत लम्हों का निरंतर प्रक्षेपण है
आधुनिकया में यथार्थ लगे शोषण।है
अर्थ ही जोड़ता है अर्थ ही तोड़ता है
वैवाहिक जीवन को अर्थ ही मोडता है
प्रणय में अर्थ ही प्रथान सर्वप्रिय कण है
आधुनिकता में यथार्थ लगे शोषण है।
धीरेन्द्र सिंह
27.12.2025
21.46
अधर अमृत आगमन है अनुभूति लिए
आप अपरिचित सा मुहँ मोड़ चल दिए
प्रबल पार्श्वसंगीत परिवेश मादक कर रहा
प्रयोजन परहित का है साधक यह कह रहा
नयन के गमन में सघन आलोकित धर दिए
आप अपरिचित सा मुहँ मोड़ चल दिए
अधर आतुर आत्ममुग्ध लिए अभिव्यक्तियाँ
अगर डगर बोल उठे डोल रहीं आसक्तियां
कदम वहम छोड़कर स्वप्न सार्थक कर लिए
आप अपरिचित सा मुहँ मोड़ चल दिए
दृष्टि विशिष्ट चाहिए निरखने को अधर अमृत
शोखी पहल कर बैठे चर्चा हो गलत कृत
आप नासमझ नहीं जग को भी कह दिए
आप अपरिचित सा मुहँ मोड़ चल दिए।
धीरेन्द्र सिंह
26.12.2025
21.53
आप किससे कह दिए किसकी कहानी है
सैकड़ों की भीड़ ना उस जैसी जवानी है
एक स्वप्न का जलता दिया दिखता सिरहाने
नित चित्र शब्दों का है सिजता रंग मनमाने
गहरी निगाहों में मिलती उसकी कद्रदानी है
सैकड़ों की भीड़ ना उस जैसी जवानी है
ना समझें देह के अवयव की है यह गाथा
हृदय में उतर पाता वही यौवन देख भी पाता
एक ऊर्जा उन्मुक्त करती रहती मनमानी है
सैकड़ों की भीड़ ना उस जैसी जवानी है
उम्र की गिनतियों से यौवन का क्या लेना-देना
हृदय जब तक जीवंत स्वप्नों का रहता बिछौना
जीवन है समस्या, संघर्ष ही का आग-पानी है
सैकड़ों की भीड़ ना उस जैसी जवानी है।
धीरेन्द्र सिंह
26.12.2025
13.03
आप कहें शब्द या प्रारब्ध हैं
मत कहें कि आप आबद्ध हैं
एक धूरी का मैं भी तो समर्थक हूँ
पर विभिन्नता भाव का प्रवर्तक हूँ
हृदय का हृदय से अनजाना सम्बद्ध है
मन कहे कि आप आबद्ध हैं
आप तो स्वीकारती ना ही दुत्कारती
आप हृदय वाले को प्रायः संवारती
मेरे हृदय में आपकी चाहत बुद्ध है
मन कहे कि आप निबद्ध हैं
सहज संयत आपका अद्भुत संयम
मेरी पूंछें भावनाओं में उलझा जंगम
कौन जाने आपसे मेरा क्या संबंध है
मन कहे कि आप निबद्ध हैं।
धीरेन्द्र सिंह
24.12.2025
22.43
सत्य निष्ठा पुस्तकों की बानगी है
लक्ष्य भेदना अब की दीवानगी है
पहुंच जाना पा लेना पसारे डैना
घर से बहक जाने का चाल ले पैना
घर से दर्द उठता है भ्रम चाँदनी है
लक्ष्य भेदना अब की दीवानगी है
पति-पत्नी में पनप रहा है वैमनस्व
परिवार का कंपित हो रहा है घनत्व
अपनेपन प्यार की ना परवानगी है
लक्ष्य भेदना अब की दीवानगी है
हृदय में प्यार लहरे यही तो लक्ष्य है
घर के बाहर प्यार खोजना सत्य है
स्पंदनों में उभरती चाह रागिनी है
लक्ष्य भेदना अब की दीवानगी है।
धीरेन्द्र सिंह
24.12.2025
04.52
मुझे क्यों चुलबुली सी लगती हैं
मुझे क्यों गुदगुदी सी लगती हैं
आप संग मेरा कोई रिश्ता नहीं है
पर मन मेरा भी सिजता वहीं है
कामनाओं की हदबंदी सी लगती है
मुझे क्यों गुदगुदी सी लगती है
आप मर्यादित सागर की लहरें हैं
समाज, रिश्तों के लगे पहरे हैं
सहज पर छटपटाती सी लगती हैं
मुझे क्यों गुदगुदी सी लगती है
एक यात्रा है और एक जीवन है
हो तुरपाई पर लगे न सीवन है
सांसे दूर से बुदबुदाई सी कहती हैं
मुझे क्यों गुदगुदी सी लगती हैं
आप साफ न बोलतीं, लजजा है
मुझे मालूम संस्कार भी, छज्जा है
अपनी दीवारों में लरजती सी लगती हैं
मुझे क्यों गुदगुदी सी लगती है।
धीरेन्द्र सिंह
23.12.2025
06.44Z