तन मय होकर हो जाते हैं तन्मय
मन मई होकर सज जाते हैं उन्मत्त
यही जिंदगी की चाहत है अनबुझी
इसको पाकर तनमन हो जाते हैं मस्त
तन की सेवा तन की रखवाली प्रथम
मन क्रम, सोच से हो जाता है बृहत्त
इन दोनों से ही हर संवाद है संभव
बिन प्रयास क्या हो जाता है प्रदत्त
चेहरे की आभा में सम्मोहन आकर्षण
नयन गहन सागर मन मोहित आसक्त
प्यार की नैया के हैं खेवैया लोग जमीं के
जी लें खुलकर ना जाने कब हो जाए अस्त।
धीरेन्द्र सिंह
15.11.2025
07.48





