गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025

धर्मनिरपेक्ष

कभी अनुभव किया है आपने

धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में

धर्म के स्पंदन,

होते हैं ऊर्जावान

नीतिवान

और सृष्टि संचयन में

निमग्न,


कभी देखा है आपने

धर्मों के धर्मपालक को

एक विशिष्ट रंग,

एक विशिष्ट ढंग,

एक अभिनव कार्यप्रणाली,

देते यथोचित उत्तर

यदि पूछे

कोई जिज्ञासू भक्त,


बदल दिए जाते हैं अर्थ

सार्थक अभिव्यक्तियों के,

चुपचाप बढ़ते पदचाप

और जतलाते हैं

वसुधैव कुटुंबकम को

विश्व जीतने का ख्वाब,

धर्म को दृढ़ता से

करना होगा स्थापित

अपनी परिभाषाएं,


अर्थ का अनर्थ न हो

अपने मन से क्यों अर्थ गढ़ो,

रोकता है धर्मनिरपेक्ष विचार,

नींव मजबूत है पर

होनी चाहिए सशक्त दीवार।


धीरेन्द्र सिंह

39.10.2025

19.33

अपने कदम

साथ कोई चलता नहीं, चले अपने कदम

यह है मेरा वह चितेरा, हैं सुंदर सपने वहम


जीवन के अंकगणित में है जोड़ना-घटाना

लक्ष्य की चुनौतियों में प्रयास कष्ट घटाना

समझौतों की स्वीकार्यता कभी खुश तो सहम

यह है मेरा वह चितेरा, हैं सुंदर सपने वहम


यदि बंधे नहीं मानव सहज न जी है पाता

एक भीड़ न हो परिचित जीवन लगे अज्ञाता

अपने को छोड़ सबसे जुड़ा लगे सशक्त कदम

यह है मेरा वह चितेरा, हैं सुंदर सपने वहम


जीने की एक आदत को समझते हैं प्रायः प्यार

कितना चले कोई अगर छोड़ दे अपना पतवार

स्वार्थ अति महीन रूप में जाए पनपाते दहन

यह है मेरा वह चितेरा, हैं सुंदर सपने वहम।


धीरेन्द्र सिंह

30.10.2025

19.25



बुधवार, 29 अक्टूबर 2025

जरूरी है

 सुनो प्यार करने के लिए जानना जरूरी है

सितारे भरे आकाश हेतु जागना जरूरी है

सुलग गयी हृदय में भाव कुछ नई खिली

उस भाव से भी भागना कहो क्या जरूरी है


तुमसे मुझे प्यार है कहना नहीं है दबंगता

प्यार कसकर छुपा लें यह कैसी मजबूरी है

हृदय के स्पंदन कर रहें आपका अभिनंदन

चीख चिल्लाकर कहना प्यार क्या जरूरी है


हाँ जो बंध गए हैं बंधनों में समाज खातिर

ऐसे लोग नहीं मानव चर्चा क्या जरूरी है

व्यक्ति स्वयं के स्पंदनों संग जी ना सके तो

स्वतंत्र व्यक्ति नहीं वह उसकी बात अधूरी है


चंचल नहीं प्रांजल नहीं आदर्शवादिता नहीं

जीवन की सहज कामनाएं भी जरूरी है

सहज व्यक्ति सा सीमाओं संग उड़ रहे हैं

आप संग उड़ें ना उड़ें नहीं यह मजबूरी है।


धीरेन्द्र सिंह

29.10.2025

20.26


मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025

एक तुम

 चाहे तो जिंदगी समेट सब विषाद लें

चाहें तो बंदगी आखेट से प्रसाद लें

दर्द, दुख, पीड़ा की चर्चा समाज करे

चाहे तो हदबन्दगी में तुमसे उल्लास लें


व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी, पुरानी बात

प्रौद्योगिकी प्रमाणित जरूरी नहीं साथ लें

प्यार मनकों सा टूट रहा बिखर रहा बिफर

तृष्णा अपनी समझ परे फिर क्यों प्यास लें


चार लोग मिल गए उभर पड़ी वहां चतुराई

रंगराई की अंगड़ाई में तनहाई आजाद लें

तुरपाई की रीति निभाई बौद्धिक लुढ़कन

भौतिक ही यथार्थ का हितार्थ आस्वाद लें


कौन जिए उन्मुक्त घुटन की अनुभूतियाँ

एक तुम जिससे मनीषियों का नाद लें

सहज, शांत, सुरभित मिलने पर तुमसे

और कहीं भटकें तो परिस्थितियां विवाद दें।


धीरेन्द्र सिंह

28.10.2025

22.15


रविवार, 26 अक्टूबर 2025

पदचाप

जब हृदय वाटिका में गूंजे पदचाप तुम्हारे
टहनियां पुष्प की लचक अदाएं दिखलाती
कलियां खिल उठें मंद पवन सुगंधित चले
धमनियों में दौड़ पड़ो अलमस्त सी इठलाती

हृदय की धक-धक की पग लय जुड़ी थाप
सरगमी इतनी तुम कि धुन नई रच जाती
हृदय वाटिका झंकृत होकर झूमने लगता
पदचाप की छुवन अक्सर लगती मदमाती

आत्मा से आत्मा का प्यार अधूरा कथन है
देह से देह परिचय में नवरंग है झूम आती
आत्मिक परिणय की तुम हो जीवन संगिनी
हृदय वाटिका में बेहिचक नेह सी छा जाती।

धीरेन्द्र सिंह
27.10.2025
06.31

रिश्ते

 सूई की तरह चुभते हुए रिश्ते
खोखली मुस्कराहटों के किस्से
किस तरह बीच चलें अपनों के
कुछ तो अपने हों सबके हिस्से

घर, कुनबा वही स्थल पुरखों का
लोग बढ़ते गए लोग कहीं खिसके
खंडहर बन रहा है खानदानी घर
गांव खाली हवा गलियों में सिसके

सब के सब बस गए हैं पकड़ शहर
मिलना-जुलना भी जर्जर किस्म के
रिश्ता स्वार्थ बन गया है खुलकर
रिश्तेदारियां औपचारिक जिस्म के

यह परिवर्तन है स्वाभाविक दोष नहीं
यहां-वहां बिखरे सब अपने हित ले
एक घर में जितने हैं खुश रहें मिलकर
स्वार्थी रिश्तों में जान किस तिलस्म से।

धीरेन्द्र सिंह
26.10.2025
21.38


शनिवार, 25 अक्टूबर 2025

मन उचटता है

 कल्पनाओं में वही सूरज उगता है

मन उचटता है


याद है प्रातः आठ बजे की नित बातें

ट्रेन दौड़ती स्टेशन छूटता है न यादें

मन बौराया वहीं अक्सर भटकता है

मन उचटता है


कैसे पाऊं फिर वही सुरभित सी राहें

कहां मिलेगी हरदम घेरे रसिक वह बाहें

कभी-कभी तड़पन देता आह उछलता है

मन उचटता है


अब भी बोलता मन है अक्सर भोर में

तुम क्या सुन पाओगी हो तुम शोर में

यादों की टहनी पर नया भोर तरसता है

मन उचटता है।


धीरेन्द्र सिंह

26.10.2025

07.11