सोमवार, 24 नवंबर 2025

धर्मेंद्र - श्रद्धांजलि

 बार-बार हृदय देखे नयन वह बसा है

गबरू जवान यौवन धर्मेंद्र का नशा है

अपनी ही मस्तियों से बस्ती को हंसाए

सत्तर दशक की फ़िल्म की यही दशा है


स्वभाविक बदन सौष्ठव हृदय ही घड़कनें

धर्मेंद्र पुरुष पूर्ण थे उन्मुक्तता के कहकहे

शायरी कवित्व में उनके लगे फलसफा है

सत्तर दशक की फ़िल्म की यही दशा है


स्वप्न सुंदरी जिसका कई दशक रहा दीवाना

धर्मेंद्र और हेमा का था मुग्धित नया तराना

नृत्य इनका कब गीत-संगीत बीच फंसा है

सत्तर दशक की फ़िल्म की यही दशा है


अलमस्त हमेशा व्यस्त सब कुछ करते थे व्यक्त

गठीले बदन भीतर कवि हृदय हरदम आसक्त

एक बांकपन से जीवन में मथा कई नशा है

सत्तर दशक की फ़िल्म की यही दशा है।


धीरेन्द्र सिंगज

24.11.2025

19.16



रविवार, 23 नवंबर 2025

सजिए खूब

विवाह का समय है यह तो

सभी करते हैं भरपूर श्रृंगार

डॉक्टर भी कितने नासमझ

कहें सर्दी कारण हृदय विकार


पुरुष भी सलोन में जाकर सजते

अबके पुरुष छवि को देते संस्कार

नारी पारंपरिक सज्जा आधिकारिणी

कैसी लग रही हूँ पूछें होकर तैयार


सौंदर्य सुनियोजित प्रायः है बोलता

दृष्टि प्रशंसात्मक बिन यौन विकार

चाह कर भी बोल न पाए "क्या बात"

कान उमेठ देगा सामाजिक आचार


हृदय के लचीलेपन की है परीक्षा

वैवाहिक दिन में ऐसी होती झंकार

सजिए खूब चमकिए पर्व इसी का

स्वयं की सुघड़ प्रस्तुति भी अधिकार।


धीरेन्द्र सिंह

23.11.2025

19.22



शनिवार, 22 नवंबर 2025

इनबॉक्स

 इनबॉक्स में आपसे चैट करना

कुछ होता निर्मित कुछ का ढहना

क्यों अच्छी लगती आपकी बातें

आप मित्र बन गईं अब क्या कहना


बच्चों जैसी होती उन्मुक्त सी बातें

करतीं आप अनुरोध प्यार ना कहना

अब तक आप पर ही बातें सभी हुईं

खुश हैं आप तो और मुझे क्या करना


मात्र परिचय समूह पोस्ट से हमारी

चेहरा, परिचय अज्ञात लगे यह सपना

आह्लादित, अंजोर हृदय अद्भुत लगता

लंबी-लंबी चैट हमारी कुहूक का गहना


प्यार आप ठुकराती कहती मित्र हैं हम

क्या मित्रता प्यार रहित होती है अंगना

दूरस्थ ऑनलाइन द्वारा शब्द भाव उभरे

जीवन कैसे मोड़ ले रही ओ मेरी सपना।


धीरेन्द्र सिंह

23.11.2025

06.20

शुक्रवार, 21 नवंबर 2025

यकीन

किसी यकीन पर झिलमिलाती चाहत की बूंदे

एक दौर अपनी जिंदगी का सप्तरंगी सजाएं

किसी यथार्थ भूमि की परत खुरदरी यूँ बोले

एकल धमक की ललक को यूँ कैसे समझाएं


वह हिमखंड सा छोटा सिरा दुनिया को दिखलाए

वह ऐसी तो नहीं क्या पता कितने समझ पाए

पताका फहराने भर से विजय का क्यों निनाद

बात है कि सब संग जुड़ अपनों सा झिलमिलाएं


तुम एक द्वीप हो एक देश हो मनभावनी दुनिया

किनारे लोग आमादा क्या पता कौन पहुंच पाए

जो दूर है बदस्तूर है बस नूर है सुरूर अलहदा

यकीन क्यों न हो मोहब्बत उन्हें सोच खिलखिलाए।


धीरेन्द्र सिंह

21.11.2025

22.10



सामाजिक कुरीतियों पर कविता ना वार करे

ऐसे लेखन से भला संवेदनशील कैसे प्यार करे


प्यार एक जीवन है नहीं कुछ समय का तार

जिनमें नहीं वीरता उनका सच्चा नहीं प्यार

प्यार-प्यार लेखन भरा समस्याएं इंतजार करें

ऐसे लेखन से भला संवेदनशील कैसे प्यार करे


लेखन में धार हो रचनाकार 


वामपंथी लेखन की ओर कतई नहीं है ईशारा

लेखन यथार्थ हो तो मिले जीवन को सहारा

कुछ सोचे तथ्य नोचे समीक्षा भी कथ्यवार करे

ऐसे लेखन से भला संवेदनशील कैसे प्यार करे

गुरुवार, 20 नवंबर 2025

दिल

 क्या संभव है दिल एक से जुड़ा रहे

जोंक सा चिपक जाए नहीं उड़ा रहे

इस असंभव को सभी प्रेमी स्वीकारते

हृदय जैसे नग है अंगूठी में जड़ा रहे


चित्त चंचल प्रवृत्ति है आकर्षण स्वभाव

कौन है जो रात्रिभर चाँद संग खड़ा रहे

प्यार भी तो एक सावनी फुहार सा है

पुलकन, सिहरन लिए बारिशों में पड़ा रहे


विवाह एक धर्म है कर्म सामाजिक निभाना

परिवार की संरचना में जीवन मूल्य मढ़ा करे

दायित्व परिणय है आजीवन निभाने के लिए

हृदय को कौन बांध पाया यह फड़फड़ा तरे।


धीरेन्द्र सिंह

21.11.2025

05.23



बुधवार, 19 नवंबर 2025

हिंदी भगवान

सुन रहा हूँ सत्य के अभिमान को

गुन रहा हूँ कथ्य के नव मचान को

आप केंद्र में एक संभावना बन सुनें

कुछ प्रवक्ता चैनल के भव विद्वान को


चैनलों के कुछ एंकर भूल रहे हिंदी

कुछ प्रवक्ता सक्रिय भाषा अपमान को

आप जनता हैं तो सुनिए यही प्रतिदिन

कौन कहे मीडिया के भाषा नादान को


हिंदी को करता दूषित है हिंदी चैनल

हिंदी शब्द बलि चढ़े अंग्रेजी मान को

कुछ एंकर कुछ प्रवक्ता लील रहे हिंदी

आप कहीं ढूंढिए अब हिंदी भगवान को।


धीरेन्द्र सिंह

19.11.2025

19.22