बुधवार, 6 अगस्त 2025

भाग चलें

 खुद में खुद को बांटना चाहता है

व्यक्ति परिवेश से भागना चाहता है

एक घुटन में सलीके से जी रहा है

खुद की ऊष्मा खुद तापना चाहता है


कहीं अकेले किसी पर्वतीय हरियाली

मनचाहे फूलों का एकल बन माली

भाव माला को वरण करना चाहता है

खुद की ऊष्मा खुद तापना चाहता है


सबकी सोचता है उसकी न कोई सोचता

घर की अनिवार्यता घर रहता है खोजता

सबकी निभाता मनचाही कामना बांटता है

खुद की ऊष्मा खुद तापना चाहता है


अब उसे लगता है अपने से है दूर चली गई

दायित्व निर्वहन के नाम दिनचर्या छली गई

यह भीड़ यह व्यस्तता मौन में काटता है

खुद की ऊष्मा खुद तापना चाहता है।


धीरेन्द्र सिंह

07.08.2025

11.01

प्रौढ़ावस्था

 आप चलचल, आप चपल, आप चंचल

आप धवल, आप कंवल, आप कलकल


शिशु कभी दिखता कभी दिखे किशोरावस्था

कभी यौवन उन्मादी सा क्या खूब प्रौढ़ावस्था

भाव चहके मन भी बहके देखें आंखें मलमल

आप धवल, आप कंवल, आप कलकल


अनुभवों के प्रत्येक चरण आपके हैं शरण

अद्भुत जिजीविषा है उमंगों का नहीं क्षरण

जिंदगी कलरव प्रणय कभी रिसी छलछल

आप धवल, आप कंवल, आप कलकल


बढ़ती उम्र ढलती देह भला क्यों सोचे नेह

दृष्टि भाव ही सर्वस्व नयन, अधर भरे स्नेह

आप तरंग, आप विहंग, आप सुगंध पलपल

आप धवल, आप कंवल, आप कलकल।


धीरेन्द्र सिंह

07.08.2025

07.40

विशिष्ट बनिए

 हिंदी में हैं लिखते तो क्यों परिशिष्ट बनिए

कुछ अपना भी आरम्भ कर विशिष्ट बनिए


कुछ नया गठन से निर्मित हो साहित्य सदन

धरा आपको भी पूछे पहचानता हो यह गगन

कभी समूह, कभी संस्था कभी कुछ रचिए

कुछ अपना भी आरम्भ कर विशिष्ट बनिए


देखिए कुकुरमुत्ता सा उभर जाते हैं मौसम

युद्धभूमि सैनिक तंबुओं सा अस्तित्व परचम

अपना भी तंबू रच नाम अपना शीर्ष रखिए

कुछ अपना भी आरम्भ कर विशिष्ट बनिए


हिंदी भाषा कहीं साहित्य कहीं बस अवसरवाद

अपने नाम ख्याति के लिए है साहित्यिक संवाद

हिंदी के हित के बारे में बस निरंतर बोलते रहिए

कुछ अपना भी आरम्भ कर विशिष्ट बनिए।


धीरेन्द्र सिंह

06.08.2025

13.56

मंगलवार, 5 अगस्त 2025

धराली गांव

 उत्तरकाशी का धराली गाँव

गंगोत्री यात्रा का प्रमुख पड़ाव

बादल फटा मलबा बहा प्रचंड

देखते ही देखते कई घर घाव


प्रकृति के करीब प्रकृति अनुसार

व्यक्ति कामना प्रबल बढ़ते द्वार

बादल फटा नदी भरी मलबा धाव

देखते ही देखते कई घर घाव


पहाड़ रहे टूट सागर को रहे पाट

वृक्ष भी कट रहे प्रगति का ठाट

मनुष्य प्रकृति में करे विस्तार प्रस्ताव

देखते ही देखते कई घर घाव


अग्नि, जल, वायु सर्वशक्तिमान हैं

मनुष्य प्रगति के भी कई दांव हैं

धराली पुनः संकेत दे प्रकृति छांव

देखते ही देखते कई घर घाव।


धीरेन्द्र सिंह

05.08.2025

15.57



सोमवार, 4 अगस्त 2025

प्यास

जीवन की टहनियों से शब्दों को लिए तोड़

वह ताक दिए थे बस जीवन को लिए मोड़

आस चढ़ी प्यास कुछ खास हुए एहसास

जाना-बूझा न सुना रिश्ता सा लिए जोड़


टहनी से चुने शब्द पर चढ़ा भाव का मुलम्मा

लिखें या कहें कोशिश कश्मकश संग होड़

एहसास जिसमें प्यास हो वह कैसे खास हो

एक आतुरता एक बेचैनी सागर सा है आलोड़


उनका ताकना उनकी आदत भी अदा भी है

उनमें बहकना स्वाभाविक देख जी उठे मरोड़

व्यक्तित्व का कृतित्व जब जीवंत अस्तित्व लगे

निजत्व के घनत्व का अपनत्व बढ़े तब दौड़


इसलिए भी किसलिए कभी हँसलिए कथ्यलिए

बहेलिए सा चलदिए पहेलियों का जाल ले बढ़ा

उनका ताकना जबसे लगे है कोमल सा बांधना

असीम प्यास लिए आस सम्मान हेतु हो खड़ा।


धीरेन्द्र सिंह

04.08.2025

14.14




शनिवार, 2 अगस्त 2025

गांव

 गलियां सूनी हैं पहेलियों के पांव

निदिया न आए नयन भरे हैं गांव


राहों की माटी पकड़ रही हैं छोड़

धूल बनकर दौड़ती जिंदा कहां मोड़

खेत-खलिहान लगे कौवा की कांव

निदिया न आए नयन भरे हैं गांव


जेठ की भरी दोपहरी सा है सन्नाटा

चहल-पहल खुशियों को लगा चांटा

गिने-चुने लोग तरसे व्यक्तियों को छांव

निदिया न आए नयन भरे हैं गांव


बंटाई व्यवस्था पर अधिकांश हैं खेत

घर एक दूसरे से छुपाते हैं खबर, भेद

परिवार, खानदान में हैं नित नए दांव

निदिया न आए नयन भरे हैं गांव


शाम ढलते ही होती कुछ वही सरगर्मियां

नशा विभिन्न प्रकार के रचते हैं शर्तिया

ग्रामीण संस्कृति में गायब हो रहे हैं गांव

निदिया न आए नयन भरे हैं गांव।


धीरेन्द्र सिंह

02.08.2025

15.08




गुरुवार, 31 जुलाई 2025

धर्माचार्य

 वासना से जुड़कर अब चर्चा चरित्र हो गयी

दो धर्माचार्य की टिप्पणियां पवित्र हो गयी


सृष्टि के आरंभ से पनपती रही हैं कामनाएं

वृष्टि आर्थिक विकास की बलवती वासनाएं

नई परिभाषाएं भाव चरित्र में विचित्र बो गईं

दो धर्माचार्यों की टिप्पणियां पवित्र हो गयी


देह की दालान से जुड़ा पवित्रता का मचान

धर्मग्रंथों में है उल्लिखित पवित्रता का विधान

कर्म कहीं दब गया देह छोड़ पवित्र लौ गयी

दो धर्माचार्यों की टिप्पणियां पवित्र हो गयी


नारी शोषण है नारी देह की रचित शुद्धता

पुरुष दबंगता से रही लड़ती नारी निहत्था

विकसित बौद्धिक समाज प्रज्ञा कौंध गयी

दो धर्माचार्यों की टिप्पणियां पवित्र हो गयी


यह न राजनीति और ना बात विवादास्पद

मानवीय समाज और परिवार उत्पादक

वैवाहिक संस्था रही टूट प्रथा कैसी हो गयी

दो धर्माचार्यों की टिप्पणियां पवित्र हो गयी।


धीरेन्द्र सिंह

01.08.2025

10.54