खोखली मुस्कराहटों के किस्से
कुछ तो अपने हों सबके हिस्से
कल्पनाओं में वही सूरज उगता है
मन उचटता है
याद है प्रातः आठ बजे की नित बातें
ट्रेन दौड़ती स्टेशन छूटता है न यादें
मन बौराया वहीं अक्सर भटकता है
मन उचटता है
कैसे पाऊं फिर वही सुरभित सी राहें
कहां मिलेगी हरदम घेरे रसिक वह बाहें
कभी-कभी तड़पन देता आह उछलता है
मन उचटता है
अब भी बोलता मन है अक्सर भोर में
तुम क्या सुन पाओगी हो तुम शोर में
यादों की टहनी पर नया भोर तरसता है
मन उचटता है।
धीरेन्द्र सिंह
26.10.2025
07.11
शब्दों की थिरकन पर सजा भावना की आंच
पीयूष पांडेय लिखते जग मुस्कराते रहता बांच
भारतीय विज्ञापन का यह गुनगुनाता व्यक्तित्व
सरल शब्दों में प्रचलित कर दिए कई कृतित्व
हिंदी को संवारे विज्ञापन की दुनिया में खांच
पीयूष पांडेय लिखते जग मुस्कराते रहता बांच
हिंदी न उभरती न होती आज ऐसी ही महकती
विज्ञापन की हो कैसी भाषा हिंदी न समझती
जो लिख दिए जो रच दिए अमूल्य सब उवाच
पीयूष पांडेय लिखते जग मुस्कराते रहता बांच
दशकों से हिंदी जगत में पीयूष की निरंतर चर्चा
इतने कम शब्दों में सरल हिंदी का लोकप्रिय चर्खा
आदर, सम्मान, प्रतिष्ठा से हिंदी विज्ञापन दिए साज
पीयूष पांडेय लिखते जग मुस्कराते रहता बांच।
धीरेन्द्र सिंह
26.10.2025
05.41
भक्ति में डूबी वह बोलीं
हम कुछ दूरी रखते हैं
मैंने कहा जिसे मन चाहा
हम तो करीबी रखते हैं
धन्यवाद कर प्रणाम इमोजी
बोलीं भाव कदर करते हैं
पढ़कर रहे सोचते हम
भक्ति किसे सब कहते हैं
उन्होंने कहा करीबी गलत
खुद पर कंट्रोल रखिए
भक्ति कंट्रोल संग हो कैसे
अचल हैं क्या जी, कहिए
भक्ति में अब भी लिंगभेद
पुरुष-स्त्री विभक्त रहिए
मन कहां वश में जानें
साधना और गहन करिए।
धीरेन्द्र सिंह
24.10.2025
18.41