गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025

चाहत

चाहता कौन है पता किसको 
धड़कनें सबकी गुनगुनाती हैं
चेहरे सौम्य शांत प्रदर्शित होते
मन के भीतर चलती आंधी है

एक ठहरे हुए तालाब सा स्थिर
जिंदगी तलहटों में कुनकुनाती है
तट पर हलचल की अभिलाषी
लहरें उमड़ने की तो आदी हैं

स्वभाव विपरीत जीना है यातना
जिंदगी यूँ तो सबकी गाती है
निभाव खुद से खुद करे जो
चाहतें वहीं महकती मदमाती हैं।

धीरेन्द्र सिंह
03.10.2025
07.35

सोमवार, 22 सितंबर 2025

 हिंदी के सिपाही - गौतम अदाणी


अदाणी समूह के चेयरमैन गौतम अदाणी दिनांक 22 सितंबर 2025 को एक निजी चैनल पर लाइव थे। आज रुककर अदाणी को सुनने का मन किया इसलिए चैनल नहीं बदला। अंग्रेजी में चार-पांच वाक्य बोलने के बाद अंग्रेजी में बोले गए वाक्यों को अदाणी ने हिंदी में कहा वह भी काव्यात्मक रूप में। यह सुनते ही स्क्रीन पर मेरी आँख ठहर गयी। अदाणी ने फिर अंग्रेजी में कहा और भाव और विचार को काव्यात्मक हिंदी में प्रस्तुत किये। ऐसा चार बार हुआ। आरम्भ से नहीं देख रहा था अचानक चैनल पर टकरा गया था।


सत्यमेव जयते कहकर अदाणी ने अपना संबोधन पूर्ण किया और मैं तत्काल इस अनुभूति को टाइप करने लगा। हिंदी दिवस 14 सितंबर को अपनी महत्ता जतलाते और विभिन्न आयोजन करते पूर्ण हुआ किन्तु इस अवधि में कोई ऐसा व्यक्तित्व नहीं मिला जिसे टाइप करने की अब जैसी आतुरता जागृत हुई हो। अंग्रेजी में बोलनेवाले किसी भी चेयरमैन को अंग्रेजी और फिर काव्य में उसी भाव को दो या अधिकतम चार पंक्तियों में बोलते अदाणी से पहले किसी को नहीं देखा।


क्यों टाइप कर रहा हूँ इस अनोखी घटना को ? एक श्रेष्ठतम धनाढ्य गौतम अदाणी हैं इसलिए ? यह सब नहीं है इस समय विचार में बस हिंदी है। हिंदी यदि अदाणी जैसे चेयरमैन की जिह्वा पर काव्य रूप में बसने लगे तो हिंदी कार्यान्वयन में इतनी तेजी आएगी कि स्वदेशी वस्तुओं पर स्वदेशी भाषा और विशेषकर हिंदी होगी। एक सुखद संकेत मिला और लगा हिंदी अपना स्थान प्राप्त कर भाषा विषयक अपनी गुणवत्ता को प्रमाणित करने में सफल रहेगी। मैंने चेयरमैन गौतम अदाणी के मुख से अपने संबोधन में कई बार हिंदी कविता का उपतोग करने की कल्पना तक नहीं  थी। 


धीरेन्द्र सिंह

22.09.2025

15.37

रविवार, 21 सितंबर 2025

शारदेय नवरात्रि

 आज प्रारंभ है अर्चनाओं का आलम्ब है

शारदेय नवरात्रि यूं मातृशक्ति का दम्भ है


अपनी-अपनी हैं विभिन्न रचित भूमिकाएं

श्रद्धा लिपट माँ चरणों में आस्था को निभाए

नव रात्रि नव रूप माता का निबंध है

शारदेय नवरात्रि यूं मातृशक्ति का दम्भ है


सनातन धर्म जीवन मार्ग सज्जित बतलाएं

नारी का अपमान हो तो कुपित हो लजाएं

नवरात्रि नव दुर्गा आदि शक्ति ही अनुबंध हैं

शारदेय नवरात्रि यूं मातृशक्ति का दम्भ है


माँ का आक्रामक रूप राक्षस संहार के लिए

मनुष्यता में दानवता भला जिएं किसलिए

नारी ही चेतना नारी शक्ति भक्ति आलम्ब है

शारदेय नवरात्रि यूं मातृशक्ति का दम्भ है।


धीरेन्द्र सिंह

22.09.2025

07.54

कहीं भी रहो

 सुनो, मेरी मंजिलों की तुम ही कारवां हो

तुम कहीं भी रहो पर तुम ही ऋतु जवां हो


वह भी क्या दिन थे जब रचे मिल ऋचाएं

तुम भी रहे मौन जुगलबंदी हम कैसे बताएं

मैं निरंतर प्रश्न रहा उत्तर अपेक्षित बयां हो

तुम कहीं भी रहो पर तुम ही ऋतु जवां हो


सर्द अवसर को तुम कर देती थी कैसे उष्मित

अपनी क्या कहूँ सब रहे जाते थे हो विस्मित

श्रम तुम्हारा है या समर्पण रचित रवां हो

तुम कहीं भी रहो पर तुम ही ऋतु जवां हो


वर्तमान भी तुम्हारी निर्मित ही डगर चले

कामनाओं के अब न उठते वह वलबले

सब कुछ पृथक तुमसे फिर भी दर्मियां हो

तुम कहीं भी रहो पर तुम ही ऋतु जवां हो।


धीरेन्द्र सिंह

21.09.2025

22.27

शनिवार, 20 सितंबर 2025

पितृपक्ष

 संस्कार हैं संस्कृति, हैं मन के दर्पण

उन अपने स्वर्गवासियों का है तर्पण


रक्त में व्यक्त में चपल चेतना दग्ध में

शब्द में प्रारब्ध में संवेदना आसक्त में

दैहिक विलगाव पर आत्म आकर्षण

उन अपने स्वर्गवासियों का है तर्पण


पितृपक्ष नाम जिसमें सभी बिछड़े युक्त

देह चली जाए पर लगे आत्मा संयुक्त

भावना की रचना पर हो आत्मा घर्षण

उन अपने स्वर्गवासियों का है तर्पण


मनुष्यता उन अपनों के प्रति है कृतज्ञ

आत्मा उनकी शांत मुक्ति का है यज्ञ

श्रद्धा भक्ति से उनके प्रति है समर्पण

उन अपने स्वर्गवासियों का है तर्पण।


धीरेन्द्र सिंह

21.09.2025

06.40


शुक्रवार, 19 सितंबर 2025

दर्पण

 सत्यस्वरूपा दर्पण मुझे क्या दिखलाएगा

नयन बसी छवि मेरी वही तो जतलाएगा


सृष्टि में बसे हैं भांति रूप लिए जीव

दृष्टि में मेरे वही प्रीति स्वरूपा सजीव

प्रतिबिंबित अन्य को तू ना कर पाएगा

नयन बसी छवि मेरी वही तो जतलाएगा


मानता हूँ भाव सभी निरखि करें अर्पण

जीवन अनिवार्यता तू भी है एक दर्पण

क्या इस आवश्यकता पर तू इतराएगा

नयन बसी छवि मेरी वही तो जतलाएगा


हो विषाद मन में रेंगता लगे है मन

दर्पण में देखूं तो तितली रंग गहन

अगन इस मृदुल को तू कैसे छकाएगा

नयन बसी छवि मेरी वही तो जतलाएगा।


धीरेन्द्र सिंह

29.09.20२5

09.10




मात्र प्रकृति नहीं

मात्र प्रकृति नहीं


सूर्य आजकल निकलता नहीं

फिर भी लग रहा तपिश है

बदलितां भी ढक सूर्य परेशान

बेअसर लगे बादल मजलिस है


सितंबर का माह हो रही वर्षा

यह क्या प्रयोग वर्ष पचीस है

जल प्रवाह तोड़ रहा अवरोध

दौड़ पड़े वहां खबरनवीस हैं


बूंदें बरसाकर बहुत खुश बदली

किनारों पर कटाव आशीष है

बांध लिए घर तट निरखने

धराशायी हुए कितने अजीज हैं


सलवटों में सिकुड़ा शहर कैसे

सूरज तपिश संग आतिश है

बदलियां बरस रहीं गरज कर

सूर्य बदली संयुक्त माचिस है।


धीरेन्द्र सिंह

20.09.2025

06.38