अधर अमृत आगमन है अनुभूति लिए
आप अपरिचित सा मुहँ मोड़ चल दिए
प्रबल पार्श्वसंगीत परिवेश मादक कर रहा
प्रयोजन परहित का है साधक यह कह रहा
नयन के गमन में सघन आलोकित धर दिए
आप अपरिचित सा मुहँ मोड़ चल दिए
अधर आतुर आत्ममुग्ध लिए अभिव्यक्तियाँ
अगर डगर बोल उठे डोल रहीं आसक्तियां
कदम वहम छोड़कर स्वप्न सार्थक कर लिए
आप अपरिचित सा मुहँ मोड़ चल दिए
दृष्टि विशिष्ट चाहिए निरखने को अधर अमृत
शोखी पहल कर बैठे चर्चा हो गलत कृत
आप नासमझ नहीं जग को भी कह दिए
आप अपरिचित सा मुहँ मोड़ चल दिए।
धीरेन्द्र सिंह
26.12.2025
21.53

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