सोमवार, 15 दिसंबर 2025

यादें

मन ने उबालकर छान लिया है

यादों को सहेजना जान लिया है


मिल जाती हैं अशुद्धियां समय में

हो जाती यादें धूमिल ज्ञान लिया है


सब भूल पाना संभव कहां होता 

कुछ यादों ने समेट जान लिया है


एक राग बसा है मन के तारों में कहीं

कर देता उजाला वही तान लिया है


यादों की जुगलबंदी की है महफ़िल

यही इश्क़ का दरिया है मान लिया है।


धीरेन्द्र सिंह

16.12.2025

09.00



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें