मन ने उबालकर छान लिया है
यादों को सहेजना जान लिया है
मिल जाती हैं अशुद्धियां समय में
हो जाती यादें धूमिल ज्ञान लिया है
सब भूल पाना संभव कहां होता
कुछ यादों ने समेट जान लिया है
एक राग बसा है मन के तारों में कहीं
कर देता उजाला वही तान लिया है
यादों की जुगलबंदी की है महफ़िल
यही इश्क़ का दरिया है मान लिया है।
धीरेन्द्र सिंह
16.12.2025
09.00
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