रविवार, 21 दिसंबर 2025

एक प्रेम

एक प्रेम रहा उपज कहीं तुम तो नहीं

तुम बिन उपजे प्रीत वह जमीं तो नहीं


एक दौर था तूफानी रचते नई कहानी

मैं भी दीवाना था तुम भी मेरी दीवानी

आज देखा तो पाया पलटते प्यार बही

तुम बिन उपजे प्रीत वह जमीं तो नहीं


सत्य है उनमें तुमसा प्यार रिसाव ना मिला

तुम थी तो जिंदगी थी कुछ शिकवे गिला

समझौता से कभी प्यार होता है क्या कहीं

तुम बिन उपजे प्रीत वह जमीं तो नहीं


यह तथ्य है कि तुमने मेरा तिरस्कार किया

प्रणय की संवेदना का उपचार क्या किया

हर व्यक्ति की कहानी रचना मेरी ही नहीं

तुम बिन उपजे प्रीत वह जमीं तो नहीं।


धीरेन्द्र सिंह

22.12.2025

06.18




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