एक प्रेम रहा उपज कहीं तुम तो नहीं
तुम बिन उपजे प्रीत वह जमीं तो नहीं
एक दौर था तूफानी रचते नई कहानी
मैं भी दीवाना था तुम भी मेरी दीवानी
आज देखा तो पाया पलटते प्यार बही
तुम बिन उपजे प्रीत वह जमीं तो नहीं
सत्य है उनमें तुमसा प्यार रिसाव ना मिला
तुम थी तो जिंदगी थी कुछ शिकवे गिला
समझौता से कभी प्यार होता है क्या कहीं
तुम बिन उपजे प्रीत वह जमीं तो नहीं
यह तथ्य है कि तुमने मेरा तिरस्कार किया
प्रणय की संवेदना का उपचार क्या किया
हर व्यक्ति की कहानी रचना मेरी ही नहीं
तुम बिन उपजे प्रीत वह जमीं तो नहीं।
धीरेन्द्र सिंह
22.12.2025
06.18

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