शब्द सार्थक
प्रस्फुटित हैं भावनाएं उल्लसित हैं कामनाएं
शब्द सार्थक बन रहे हैं साज हम किसको सुनाएं
शोरगुल के धूल हैं सर्जना की हर राह पसर
कौन किसको पढ़े, सुने व्यक्तिगत जो न बताएं
शब्द भर हथेली हजारों कहें यह भी जगमगाए
शब्द सार्थक बन रहे हैं साज हम किसको सुनाएं
यदि कोई मिला और शब्द उनको लगा सुनाने
कठिन हिंदी बोलते हैं, कहें सहजता को अपनाएं
शब्द भी होते कठिन, सरल क्या, समझा ना पाए
शब्द सार्थक बन रहे हैं साज हम किसको सुनाएं
वस्त्र और व्यक्तित्व को ब्रांडेड से करें परिपूर्ण
शब्द अपरिचित लगे शब्द ब्रांडेड ना अपनाएं
भाषा की विशिष्टता उसके शब्द सामर्थ्य भूले
शब्द सार्थक बन रहे हैं साज हम किसको सुनाएं।
धीरेन्द्र सिंह
17.12.2025
18.36

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