अर्धरात्रि हो चली है
और मन
किसी महिला से
चैट करने को आमादा है,
प्रयास मेसेंजर को
खंगाल लिया पूरा
कोई भी ऑनलाइन नहीं,
कामनाएं पुष्पित हो
चाहत की सुगंध
कर रही हैं प्रसारित,
कोई भी ऑनलाइन नहीं
यही तथ्य है
और सुविचारित,
अर्धरात्रि को मन
प्यार की बात करे
यह पुरानी सोच है,
कोई मिले अपने सा
जिससे कह दें
भावनाओं में मोच है,
बड़े कारगर होते हैं
नारीत्व के विवेक धावक
कर देते हैं व्यवस्थित
चुटकियों में
सबकुछ,
एक बार फिर टटोला
मेसेंजर को
कोई नारी ऑनलाइन नहीं,
इसे ही कहते हैं भाग्य
प्रारब्ध के संवाहक यही,
हंसी आ रही है आपको
हम यूँ एकल बह जाएं
इससे अच्छा कि
हम सो जाएं।
धीरेन्द्र सिंह
07.11.2025
23.26
