मंगलवार, 3 दिसंबर 2024

कवि सम्मेलन

 शब्द किसी दायरे के रूप हो गए

रचनाकार रचकर स्वयं अनूप हो गए


दायरा यह शब्द का व्यक्ति का भी

अनवरत जुगाड़ में यह रचनाकार सभी

साहित्य गुट में गुटबाज खूब हो गए

रचनाकार रचकर स्वयं अनूप हो गए


वही रचनाएं वही कुम्हलाई गलेबाजी

यह मंच क्या बने रची हिंदी जालसाजी

जहां मंच वहीं साहित्य सबूत हो गए

रचनाकार रचकर स्वयं अनूप हो गए


एक रचनाकार होता मंच पर अपवाद

उसके दम पर संयोजन साहित्यिक दाद

आयोजक भी पुड़िया के भभूत हो गए

रचनाकार रचकर स्वयं अनूप हो गए।


धीरेन्द्र सिंह

03.12.2024

06.26




रविवार, 1 दिसंबर 2024

निज गीता

 मन के भंवर में

तरंगों की असीमित लहरें

कामनाओं के अनेक वलय

लगे जैसे

कृष्ण कर रहे हैं संचालित

प्यार और युद्ध का

एक अनजाना अंधड़,

तिनके सा उड़ता मन

इच्छाओं का इत्र लपेटे

चाहता समय ले पकड़,


लोगों के बीच बैठे हुए

उड़ जाता है व्यक्ति

जैसे लपक कर लेगा पकड़

मंडराते अपने स्वप्नों को

किसी छत के ऊपर,

कितना सहज होता है

छोड़ देना साथ करीबियों का

पहन लेने के लिए उपलब्धि,


उड़ रहे हैं स्वप्न

उड़ रहे हैं व्यक्ति

अपने घर के मांजे से जुड़े,

ऊपर और ऊपर की उड़ान

कई मांजे मिलते जैसे तीर कमान

एक-दूसरे को काटने को आमादा,

किंकर्तव्यमूढ़ देखता है व्यक्ति

कभी स्वप्न कभी घर

और उदित करता है विवेक

एक कृष्ण

रच जाती है निज गीता।


धीरेन्द्र सिंह

01.12.2024

22.25